हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण (Criminalisation of Marital Rape) पर केंद्र की प्रतिक्रिया माँगी है।
वैवाहिक बलात्कार
वैवाहिक बलात्कार (या पति-पत्नी के बीच बलात्कार) एक ऐसा कार्य है जिसमें पति या पत्नी में से एक दूसरे की सहमति के बिना संभोग में लिप्त होता है । आज, 100 से अधिक देशों ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित कर दिया है, लेकिन दुर्भाग्य से, भारत उन 36 देशों में से एक है जहाँ अभी भी वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है।
वैवाहिक बलात्कार के विषय में अन्य जानकारियाँ
याचिकाएँ
वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण के मुद्दे को लेकर शीर्ष अदालत में कई याचिकाएँ लंबित हैं ।
याचिकाकर्ताओं ने धारा 375 आईपीसी (बलात्कार) के तहत, जिसमें वैवाहिक बलात्कार को एक अपवाद के रूप में रखा गया है, संवैधानिकता को इस आधार पर चुनौती दी थी कि यह उन विवाहित महिलाओं के साथ भेदभाव करती है जिनका उनके पतियों द्वारा यौन उत्पीड़न किया जाता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस प्रकार की सुनवाई के दौरान निर्णय सुनाया था कि इस तरह की अपील आगे से नहीं की जानी चाहिए अथवा पतियों द्वारा अपनी पत्नियों के साथ गैर-सहमति से यौन संबंध बनाने के लिए कोई मुकदमा करने का कोई तुक नहीं है. इसलिए याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा ठकठकाया.
वैसे यह दिल्ली उच्च न्यायालय का असर्वसहमत निर्णय (split decision) था क्योंकि दिल्ली उच्च न्यायालय की खंडपीठ के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने कहा था कि यह दुर्भाग्य का विषय है कि आईपीसी के लागू होने के 162 साल बाद भी एक विवाहित महिला की न्याय की माँग नहीं सुनी जाती है.
वैवाहिक बलात्कार पर कानून
- आईपीसी की धारा 375 बलात्कार को परिभाषित करती है. इस धारा के अंतर्गत यौन सबंध बनाने की सहमति को लेकर सात धारणाओं को सूचीबद्ध किया गया है. यदि इन सातों धारणाओं से परे यदि कोई पुरुष स्त्री से सम्बन्ध बनाता है तो उसे बलात्कार माना जाता है.
- हालांकि, इन धारणाओं में एक महत्त्वपूर्ण छूट यह है कि यदि पत्नी की उम्र अठारह वर्ष से कम नहीं है और अगर उसका पति उसके साथ यौन संबंध बनाता है या यौन क्रिया में लिप्त होता है तो वह बलात्कार नहीं माना जाएगा।
- यदि कोई विवाहित महिला अपने पति के विरुद्ध कोई केस करना चाहे जो उसके साथ गैर-सहमति से यौन संबंध बना रहा हो तो उस महिला के पास एकमात्र सहारा है कि वह आईपीसी की धारा 498-ए के तहत केस दर्ज कराये जिसमें घरेलू हिंसा या या पति के रिश्तेदारों द्वारा पत्नी के खिलाफ क्रूरता आदि के मामले देखे जाते हैं.
समस्या
यह एक गंभीर मुद्दा है और इस पर भारतीय दंड संहिता पूर्णतः मौन है और वह वैवाहिक जीवन के अंतर्गत बलात्कार के विचार को खारिज करता है
याचिका में उठाए गए सवालों में शामिल है कि क्या एक विवाहित महिला को शारीरिक स्वायत्तता प्राप्त है या नहीं । संक्षेप में, क्या एक पति को यह स्वीकार करना चाहिए कि उसकी पत्नी का “नहीं का मतलब नहीं” है।
वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण के खिलाफ तर्क
एक संस्था के रूप में विवाह को अस्थिर करना: यह परिवारों में पूरी तरह से अराजकता पैदा कर सकता है और विवाह संस्था को अस्थिर कर सकता है।
कानून का दुरुपयोग: यह आईपीसी की धारा 498 ए (एक विवाहित महिला को उसके पति और ससुराल वालों द्वारा किया गया उत्पीड़न) के बढ़ते दुरुपयोग के समान कानून का दुरुपयोग करके पतियों को परेशान करने का एक आसान साधन बन सकता है।
विधि आयोग ने भी नहीं की सिफारिश: भारतीय विधि आयोग और गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने मामले की पूरी तरह से जांच करने के बाद वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण की सिफारिश नहीं की।
कार्यान्वयन के लिए मुद्दे: वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने से गंभीर कार्यान्वयन संबंधी मुद्दे पैदा होंगे जैसे गवाही की सत्यता, अदालतों में सबूत आदि।
संस्कृति में विविधता: निरक्षरता, अधिकांश महिलाओं में वित्तीय सशक्तीकरण की कमी, महिलाओं को लेकर खराब और छोटी मानसिकता, गरीबी आदि गंभीर समस्याओं से भारत स्वयं पहले से ही जूझ रहा है जो वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने से ज्यादा महत्त्वपूर्ण समस्याएँ हैं.
जागरूकता अधिक जरूरी है: केवल वैवाहिक बलात्कार को अपराधीकरण करने से इसे रोका नहीं जा सकता क्योंकि “नैतिक और सामाजिक जागरूकता” इस तरह के कृत्य को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण के पक्ष में दिए गये तर्क
महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना: यह कानून सुनिश्चित करेगा कि महिलाएं अयोग्य जीवनसाथी से सुरक्षित रहें और उन्हें वैवाहिक बलात्कार से उबरने के लिए आवश्यक सहायता प्राप्त हो सके और घरेलू हिंसा और यौन शोषण से खुद को बचा सके।
विवाह लाइसेंस नहीं है: विवाह को एक पति के लिए अपनी पत्नी के साथ जबरन बलात्कार करने के लिए एक लाइसेंस के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। इसके अलावा, एक विवाहित महिला को अपने शरीर पर पूर्ण रूप से उतना ही अधिकार होना चाहिए जितना कि एक अविवाहित महिला को होता है।
शारीरिक सत्यनिष्ठा अनुच्छेद 21 में निहित है: अनुच्छेद 21 में उल्लिखित है कि कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को उसके जीवित रहने के अधिकार और निजी स्वतंत्रता से वंचित नहीं कर सकता है। इसका यह अर्थ निकाला जा सकता है कि एक महिला अपने पति के साथ यौन संबंधों से इनकार करने की हकदार है क्योंकि हर व्यक्ति को अपने शरीर पर स्वामित्व और गोपनीयता का अधिकार है.
अनुच्छेद 14: भारतीय महिलाओं के साथ अनुच्छेद 14 के तहत समान व्यवहार किया जाना चाहिए और किसी व्यक्ति के मानवाधिकारों की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए, जिसमें उनके पति या पत्नी भी शामिल हैं।
जीवन के लिए यातना: एक महिला जिसका एक अजनबी द्वारा बलात्कार किया जाता है उसे अपनी पूरी जिंदगी एक भयानक याद के साथ गुजारनी पड़ती है. जिस महिला का उसके पति द्वारा बलात्कार किया जाता है, वह जीवन भर बलात्कारी के साथ रहने को मजबूर हो जाती है।
अन्य देशों में इसे लेकर क्या कानूनी स्थिति है?
- वैवाहिक बलात्कार के खिलाफ कई देशों में कानून हैं।
- ऑस्ट्रेलिया (1981), कनाडा (1983), और दक्षिण अफ्रीका (1993) ने ऐसे कानून बनाए हैं जो वैवाहिक बलात्कार को अपराध मानते हैं।
- यूनाइटेड किंगडम में, हाउस ऑफ लॉर्ड्स ने 1991 में वैवाहिक बलात्कार को अपराध माना। आर वी आर (R v R) के नाम से जाने जाने वाले इस मामले में अपने ऐतिहासिक निर्णय में, हाउस ऑफ लॉर्ड्स ने यह कहा कि अब यह समय आ गया है कि देश को यह घोषित करना चाहिए कि एक बलात्कारी को बलात्कारी ही कहा जाएगा, भले ही उसके पीड़ित के साथ कोई भी संबंध रहे हों। यूरोपियन कोर्ट ऑफ जस्टिस ने इस निर्णय की समीक्षा की और हाउस ऑफ लॉर्ड्स के निर्णय का समर्थन करते हुए वैवाहिक बलत्कार को अपराध मानना उचित समझा।
- इसके बाद, 2003 में ब्रिटेन में एक कानून द्वारा वैवाहिक बलात्कार को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया ।
Tags: Marital Rape, IPC, Section 498A of IPC, J. S. Verma Committee, Section 375 of the IPC, Domestic Violence Act, 2005, UPSC, IAS, UPSC CSE Previous Year Question, वैवाहिक बलात्कार, आईपीसी, आईपीसी की धारा 498ए, जेएस वर्मा समिति, आईपीसी की धारा 375, घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005, यूपीएससी, आईएएस, यूपीएससी सीएसई पिछले वर्ष के प्रश्न”.
Read Bills and Laws news here – Polity Notes in Hindi