वीजा के नियमों का उल्लंघन, “भारत छोड़ो नोटिस” पर समीक्षा

Sansar LochanGovernanceLeave a Comment

आप्रवासन ब्यूरो (Bureau of Immigration – BOI) के अनुसार, पाँच विदेशी नागरिक CAA के विरुद्ध प्रदर्शन में सम्मिलित हुए जो वीजा के नियमों का उल्लंघन है. BOI ने इन्हें भारत छोड़ने के लिए कहा है. वहीं दूसरी तरफ, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने CAA पर सर्वोच्च न्यायालय में हस्तक्षेप याचिका दायर की है.

भारत सरकार का पक्ष

  • CAA भारत का आंतरिक मामला है और यह कानून बनाने वाली भारतीय संसद के संप्रभुता के अधिकार से संबंधित है.
  • भारत की संप्रभुता से सम्बंधित मुद्दों पर किसी विदेशी या गैर-भारतीय को अपने पक्ष रखने का कोई अधिकार नहीं है.
  • CAA संवैधानिक रूप से वैध है और संवैधानिक मूल्यों का अनुपालन करता है.

क्या भारतीय वीज़ा पर किसी विदेशी को भारत के अन्दर विरोध करने का अधिकार है?

जहाँ अनुच्छेद 19(1)(a) भारत के सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है वहीं अनुच्छेद 14 के अंतर्गत यह कहा गया है कि राज्य, भारत के राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को कानून के समक्ष समता से या कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का निचोड़ यह है कि सरकार भारत में किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं करेगी. इसका निष्कर्ष यह भी निकाला जा सकता है कि विदेशियों को भी शांतिपूर्वक विरोध करने का अधिकार है.

इसके अतिरिक्त, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत किसी व्यक्ति को प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का सरंक्षण का अधिकार प्राप्त है अर्थात् किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रकिया के अतिरिक्त उसके जीवन और वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है.

विदित हो कि केंद्र सरकार को विदेशी नागरिकों को बिना कोई कारण बताओ नोटिस जारी किये देश से बाहर करने का अधिकार नहीं है. दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2019 में एक पाकिस्तानी महिला को जारी “भारत छोड़ो नोटिस” को यह कहते हुए निरस्त कर दिया था कि भारत सरकार ने समुचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया.

इसका तात्पर्य यह हुआ कि भारत सरकार को भारत छोड़ो नोटिस देने से पहले संदिग्ध विदेशी पर्यटक को सुनवाई का उचित अवसर दिया जाना चाहिए और उसके विरुद्ध औपचारिक रूप से नोटिस जारी करना चाहिए या उसे उसके विशिष्ट आरोपों के बारे में सूचित करना चाहिए.

अन्य महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद

  • अनुच्छेद 19(1)(a) : सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है.
  • अनुच्छेद 19(1)(b) :बिना हथियार किसी जगह शांतिपूर्वक इकट्ठा होने का अधिकार है.
  • अनुच्छेद 19(1)(c) :संघ या संगठन बनाने का अधिकार है.
  • अनुच्छेद 19(1)(d) :भारत में कहीं भी स्वतंत्र रूप से घूमने का अधिकार है.
  • अनुच्छेद 19(1)(e) :भारत के किसी भी हिस्से में रहने और बसने का अधिकार है
  • अनुच्छेद 19(1)(f) :इसे हटाया जा चुका है (पहले इसमें संपत्ति के अधिकार का प्रावधान था)
  • अनुच्छेद 19(1)(g) : कोई भी व्यवसाय, पेशा अपनाने या व्यापार करने का अधिकार है.

देशद्रोह किसे कहा जाता है?

  • भारतीय कानून संहिता (आईपीसी) की धारा 124A में देशद्रोह की दी हुई परिभाषा के अनुसार, यदि कोई भी व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता या बोलता है या फिर ऐसी सामग्री का समर्थन करता है, या राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने का प्रयास करता है, तो उसे आजीवन कारावास या तीन वर्ष की सजा हो सकती है.
  • देशद्रोह पर कोई भी कानून 1859 तक नहीं था. यह कानून 1860 में बनाया गया और बाद में 1870 में इसे IPC में सम्मिलित कर लिया गया.

देशद्रोह के आरोप किन पर कब लगे?

  1. 1870 में बने इस कानून का प्रयोग सबसे पहले ब्रिटिश सरकार ने महात्मा गाँधी के खिलाफ किया. ब्रिटिश सरकार को साप्ताहिक जर्नल यंग इंडिया में गाँधीजी द्वारा लिखे आलेख से आपत्ति थी जो ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध था.
  2. बिहार के निवासी केदारनाथ सिंह पर 1962 में राज्य सरकार ने उनके एक भाषण को लेकर उनपर देशद्रोह का मामले दर्ज किया था, जिस पर उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी थी. केदारनाथ सिंह के केस पर सर्वोच्च न्यायालय की पाँच न्यायधीशों की एक बेंच ने भी आदेश दिया था. इस आदेश में कहा गया कि ‘देशद्रोही भाषणों और अभिव्यक्ति को मात्र तभी दंडित किया जा सकता है, जब उसके कारण किसी प्रकार की हिंसा, असंतोष या फिर सामाजिक असंतुष्टिकरण को बढ़ावा मिले.’
  3. 2010 को बिनायक सेन पर नक्सबल विचारधारा फैलाने का आरोप लगाते हुए उन पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया. बिनायक के अतिरिक्त नारायण सान्याल और कोलकाता के उद्योगपति पीयूष गुहा को भी देशद्रोह का दोषी पाया गया था. इन्हें अंततः उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी परन्तु बिनायक सेन को 16 अप्रैल 2011 को सर्वोच्च न्यायालय की ओर से जमानत मिल गई थी.
  4. 2012 में काटूर्निस्टल असीम त्रिवेदी को उसकी वेबसाइट पर संविधान से जुड़ी भद्दी और अश्लील तस्वीरें डालने के कारण से इस कानून के तहत गिरफ्तार किया गया. यह कार्टून उसने मुंबई में 2011 में भ्रष्टारचार के विरुद्ध चलाए गए एक आंदोलन के समय बनाए थे.
  5. 2012 में तमिलनाडु सरकार ने कुडनकुलम परमाणु प्लांट के विरोध में स्वर उठाने वाले 7 हजार ग्रामीणों पर देशद्रोह की धाराएँ लगाईं थी.
  6. 2015 में हार्दिक पटेल और कन्हैया कुमार को देशद्रोह मामले में गिरफ्तार किया गया था.
Print Friendly, PDF & Email
Read them too :
[related_posts_by_tax]

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.