असमानता एवं नीतिशास्त्र – Inequality and Ethics Notes in Hindi

Sansar LochanEthics

असमानता (inequality) तब होती है जब सभी व्यक्तियों को समान रूप से स्थान, वस्तु, सेवा अथवा अवसर उपलब्ध नहीं होते हैं. ऐतिहासिक रूप से, प्रायः असमानताओं का आरोपण आज्ञापत्रों द्वारा हुआ, जैसे कुलीन वर्ग और संघों की उपस्थिति अथवा रंगभेद, दासता या जातिवाद आदि के रूप में असमानता अस्तित्व में आई. विशेषकर भारत में शास्त्रों और स्मृतियों में ऐसी व्यवस्थाएँ की गईं जिससे समाज में असमानता उत्पन्न हुई.

वर्तमान में लोगों की संसाधनों तक पहुँच को प्रतिबंधित करने के लिए सम्पत्ति के अधिकारों का उपयोग किया जाता है. अतः असमानता की न्यायसंगतता को निर्धारित करते समय इन बातों पर तर्क करना आवश्यक हो जाता है कि कुछ लोग अधिक सम्पत्ति और वस्तुओं, सेवाओं और सामाजिक अवसरों तक अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक पहुँच के पात्र क्यों हैं.

असमानता के समर्थक

असमानता के समर्थक आमतौर पर 3 नैतिक तर्कों में से किसी एक का सहारा लेते हैं :-

डेजर्ट नीतिशास्त्र (Desert Ethics)

डेजर्ट नीतिशास्त्र के अनुसार व्यक्ति जिस योग्य हो, उसके साथ उसी प्रकार का व्यवहार करना ही ठीक है. इसलिए, यदि किसी ने कुछ बनाया है, जैसे कि सम्पत्ति, तो वह उसके स्वामित्व का हकदार है और उसे दूसरों को उसका उपयोग करने से रोकने का सम्पूर्ण अधिकार होना चाहिए.

वोलंटरिस्ट नीतिशास्त्र (Voluntarist Ethics)

इसके अनुसार, वे आदान-प्रदान जो असमान वितिरण का कारण बने, स्वैच्छिक रूप से किये गये थे – अर्थात् लोग इन लेन-देनों के लिए सहमत थे और इस प्रकार वे इनके परिणामों से भी सहमत थे. इसलिए, असमानता केवल उन लेन-देनों का एक परिणाम है जिसके लिए लोगों द्वारा पहले ही सहमति प्रदान की जा चुकी है.

“ग्रोविंग द पाई” का नीतिशास्त्र (The Ethics of “Growing the Pie”)

इस सिद्धांत के अनुसार, कुछ लोगों को उच्चतर वैधानिक स्थिति प्रदान करने से ही अन्य लोगों के लिए अधिक सम्पत्ति और अवसर उपलब्ध होंगे.

लेकिन किसी व्यक्ति द्वारा सम्पत्ति अर्जन करना भाग्य पर निर्भर करता है. अधिकांश लोग अपने परिवेश और पालन-पोषण के उच्च स्तर के चलते ही आर्थिक रूप से सशक्त बन पाते हैं क्योंकि स्वास्थ्य, शिक्षा आदि जैसी सार्वजनिक सेवाओं तक उनकी ही पहुँच हो पाती है जो आर्थिक रूप से सशक्त हैं और ये सेवाएँ सम्पत्ति के अर्जन में प्रमुख भूमिका निभाती हैं.

असमानता का उच्च स्तर

असमानता का उच्च स्तर निम्नलिखित नैतिक मुद्दे उत्पन्न करता है –

असमानता एक निम्न सद्‌गुणों वाला समाज बनाती है क्योंकि –

  • समाज के सदस्यों के बीच आपसी विश्वास का गुण विलुप्त हो जाता है. उदाहरण के लिए, अत्यधिक वंचना किसी व्यक्ति को झूठ बोलना या चोरी करने के लिए बाध्य कर सकती है.
  • निर्णय लेने की क्षमता का गुण विलुप्त हो जाता है क्योंकि असमानता जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए समान अवसरों को समाप्त कर देती है. उदाहरण के लिए, एक अमीर बच्चे के पास किसी गरीब बच्चे की तुलना में शिक्षा और पोषण के बेहतर अवसर उपलब्ध होते हैं.
  • समाज में सम्मान और सहिष्णुता का गुण खत्म हो जाता है.
  • विद्रोह की भावना पनपती है. असमानता के चलते लोग विरोध करना शुरू कर देते हैं, नियमों को तोड़ने लगते हैं और कभी-कभी हिंसक कार्यों को करने लगते हैं.
  • असमानता वितरण मूलक न्याय का उल्लंघन करती है. उदाहरणार्थ, पारिश्रमिक का वितरण किसी व्यक्ति द्वारा श्रम के लिए किये गये प्रयासों के अनुरूप नहीं होता है.
  • अत्यधिक असमानता के कारण गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार, समानता के अधिकार और समान अवसर प्राप्त करने के अधिकार का हनन होता है. इसके परिणामस्वरूप भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल इत्यादि का अभाव उत्पन्न हो जाता है. असमानता आगे बढ़ने में रुकावट पैदा करती है और चयन का अधिकार छीन लेती है.
  • असमानता लोकतंत्र को भी कमजोर करती है क्योंकि यह राजनीतिक व्यवस्था और सत्ता के पदों तक असमान पहुँच का कारण बनती है. (जॉन रॉल्स)

निष्कर्ष

आर्थिक समृद्धि यदि सभी के लिए न्याय सुनिश्चित नहीं करती है तो वह संसार में चिरस्थायी शान्ति, खुशहाली और विकास नहीं ला सकती. इस संसार में शान्ति और सद्भाव के लिए समन्वयपूर्ण विकास आवश्यक है. वे लोग जो जीवन जीने के लिए न्यूनतम साधनों से भी वंचित हो गए हैं, वे उन शक्तिशाली वर्ग के विरुद्ध उठ खड़े होंगे जो उन्हें न्याय देने से इनकार करते हैं और उनका विभिन्न प्रकार से दमन करते हैं. मानव समाज के इतिहास की अनेक क्रांतियों और जनांदोलनों ने स्पष्ट रूप से यह प्रदर्शित किया है.

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