सिन्धु घाटी सभ्यता में कृषि – Agriculture in Indus Valley Civilization

Dr. SajivaAncient History

सिन्धु और पंजाब में प्रतिवर्ष नदियों द्वारा लाइ गई उपजाऊ मिट्टी में कृषि कार्य अधिक श्रम-साध्य नहीं रहा होगा. इस नरम मिट्टी में कृषि के लिए शायद ताम्बे की पतली कुल्हाड़ियों को लकड़ी के हत्थे पर बाँध कर तत्कालीन किसान भूमि खोदते रहे होंगे. मोहनजोदड़ो से पत्थर के तीन ऐसे उपकरण मिले हैं जिनके आकार-प्रकार और भारीपन से इनके शस्त्र के रूप में प्रयुक्त होने की संभावना कम लगती है. इन्हें कुछ लापरवाही से निर्मित किया गया है. ऐसा सुझाव दिया जाता है कि ये हल के फाल थे. हल लकड़ी के रहे होंगे जो अब नष्ट हो गये हैं.

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Picture Source: Wikipedia

सिंचाई के लिए संभवतः बाँधों का प्रयोग किया गया. नगर के आसपास की भूमि में इतना अनाज पैदा होता रहा होगा कि वहाँ के लोग अपनी जरुरत के लिए अनाज रख लेने के बाद शेष अनाज इन नगरों के लिए लोगों के लिए भेज सकते थे.

सिंघु जैसी समृद्ध सभ्यता के पर्याप्त जनसंख्या वाले महानगरों की स्थिति और विकास एक अत्यंत उपजाऊ प्रदेश की पृष्ठभूमि में ही संभव था. सिंघु घाटी सभ्यता के विकसित तकनीक से बने विभिन्न उपकरणों से स्पष्ट है कि वे पेशेवर शिल्पियों की कृतियाँ हैं और उससे यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि उस समय के कृषक निश्चय ही पर्याप्त मात्रा में अतिरिक्त अन्न पैदा करते थे.

अनाज

सिंघु घाटी सभ्यता के लोग गेहूँ उपजाया करते थे जो रोटी बनाने के काम आता था. गेहूँ की दो प्रजातियाँ थीं जिन्हें आज वैज्ञानिक भाषा में ट्रिटीकम कम्पेक्ट और स्फरोकोकम कहा जाता है. जौ की दो प्रजातियाँ थीं – होरडियम बल्गैर और हैक्सस्टिकम.

कुछ विद्वानों का कहना है कि मेसोपोटामिया और मिस्र के साक्ष्य से स्पष्ट है कि वहाँ पर जौ की खेती सिन्धु सभ्यता से पहले से होती थी. जिस जंगली जौ के प्रकार से यह खेती द्वारा उपजाया जौ का प्रकार हुआ है वह अब भी तुर्किस्तान, ईरान और उत्तरी अफगानिस्तान में मिलता है.

वेविलोव (Vatvilov) ने सुझाया है कि मानव द्वारा प्रयुक्त गेहूँ का मूल स्थान हिमालय के पश्चिमी छोर पर अफगानिस्तान में रहा होगा, जबकि कुछ विद्वान् जगरोस (zagros) पर्वत और कैस्पियन सागर में मध्य वाले क्षेत्र को इसका मूल स्थल मानते हैं.

गेहूँ और जौ तो सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों के मुख्य खादान्न थे ही, वे खजूर, सरसों, तिल और मटर भी उगाते थे. सरसों तथा तिल की खेती मुख्य रूप से तेल के लिए करते रहे होंगे. वे राई भी उपजाते थे. हड़प्पा में तरबूज के बीज मिले.

सेलखड़ी की बनी नीम्बू की पत्ती से स्पष्ट है कि वे लोग नीम्बू से परिचित थे. लोथल और रंगपुर से धान (चावल) की उपज के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है.  जबकि हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो से धान की जानकारी का कोई साक्ष्य नहीं प्राप्त हुआ है. सौराष्ट्र में बाजरे की खेती होती थी.

अन्न संग्रहण

हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और लोथल में वृहद् अन्नागारों के संरक्षण हेतु किंचित् उच्च पदाधिकारी, लिपिक, लेखाकार, मजदूर आदि नियुक्त किये जाते होंगे. कर के रूप में वसूल किया गया अनाज इन अन्नागारों में जमा किया जाता होगा. शायद ये अन्नागार आज के सरकारी बैंक या खजाने के रूप में कार्य करते रहे होंगे. अनाज का प्रयोग शायद कर्मचारियों को वेतन देने में किया जाता रहा होगा क्योंकि उस युग में सिक्कों का प्रचलन नहीं था. अनाज विनिमय का एक सबसे महत्त्वपूर्ण माध्यम भी रहा होगा. हड़प्पा का विशाल अन्नागार नदी-तट पर स्थित था. मिस्र के प्राचीन लेखों में भी राजकीय अन्नागारों का और राजा के निजी अन्नागारों का उल्लेख है.

आम लोग घर में बड़े-बड़े घड़ों में अनाज का संग्रहण करते थे. अनाज गड्ढों में भी रखा जाता था. अनाज और अन्य वस्तुओं को चूहों से बचाने के लिए लोगों ने चुहेदानियों का प्रयोग किया जाता था. ये मिट्टी की बनी होती थीं.

फसल लैटिन नाम
गेहूँ (Wheat) ट्रिटीकम कम्पेक्ट और स्फरोकोकम
जौ (Barley) होरेडियम वल्गैंर
मटर (Peas) Pisum Arvese
तिल (Sesamum) Seasamum Indicum
ज्वार (Millet) Setaria Virdis
कपास (Cotton) Gossypium (Mehrgarh), Gossypium Arboreum (Mohenjodaro)

कपास

सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग कपास कि खेती करते थे. वस्त्र बनाना उनका एक महत्त्वपूर्ण व्यवसाय रहा होगा. मोहनजोदड़ो से एक चाँदी के बर्तन में कपड़ों के अवशेष पाए गये हैं . ये कपड़े लाल रंग में रंगे हुए थे. बाद में वहीं से ताम्बे के उपकरणों को लपेटे सूत का कपडा और धागा मिला है. यह साधारण किस्म की कपास का बना है जो भारत में आज भी उगाई जाती है. कालीबंगा से एक बर्तन का टुकड़ा मिला है जिस पर सूती कपड़े के निशाँ हैं. यहीं एक उस्तरे पर भी कपास का वस्त्र लिप्त हुआ मिला. लोथल और रंगपुर के आसपास का क्षेत्र कपास उपजाने के लिए बहुत ही उपयुक्त था. शायद इसलिए कपास का क्षेत्र होने की वजह से यहाँ पर लोगों को अपनी बस्ती बसाने की प्रेरणा मिली हो.

आलमगीरपुर में एक मिट्टी की नांद पर बुने कपड़े के निशान मिले हैं. मेसोपोटामिया में लगश के समीप स्थित उम्मा (Umma) से मिली सिन्धु घाटी सभ्यता की मुद्रा पर कपास से बना कपड़ा लगा था. कताई-बुनाई के लिए प्रयुक्त किये जाने वाले तकुए (spindle) छोटे-बड़े सभी तरह के घरों में पाए गये हैं.  मोहनजोदड़ो से प्राप्त पुरोहित की शिल्प-मूर्ति में शाल पर तिपहिय अलंकरण दिखाया गया है. इससे स्पष्ट होता है कि वस्त्रों पर कढाई भी होती रही होगी. स्वभाविक है कि वस्त्र उद्योग एक महत्त्वपूर्ण उद्योग रहा होगा और कुछ लोग जुलाहे का काम पेशे के तौर पर करते रहे होंगे.

Tags: सिन्धु घाटी सभ्यता में कृषि. Agriculture, wheat, rice, cotton खेती in Harappa and Mohanjodaro से प्राप्त साक्ष्य. लोथल, रंगपुर, गेहूँ, जौ, वस्त्र उद्योग cultivation in Hindi.

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