सामान्य अध्ययन पेपर – 1
भारतीय कलाकार ने लोक जीवन के भौतिक स्वरूप की अवहेलना नहीं की है. आप इससे कहाँ तक सहमत हैं? (250 words)
यह सवाल क्यों?
यह सवाल UPSC GS Paper 1 के सिलेबस से प्रत्यक्ष रूप से लिया गया है –
“भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे”.
सवाल का मूलतत्त्व
उदाहरण के साथ उत्तर लिखने पर बहुत नंबर मिलता है. पर दुःख की बात है कि आजकल छात्र उदाहरणों का नोट्स नहीं बनाते.
उत्तर :-
यह सही है कि भारतीय कला का प्रधान विषय धार्मिक और आध्यात्मिक है, परन्तु भारतीय कलाकार ने लोक जीवन के भौतिक स्वरूप की कहीं पर भी अवहेलना नहीं की है. मंदिर, स्तूप, चैत्य, विहार आदि धार्मिक भवनों की छतों, दीवारों, स्तम्भों तथा वेदिकाओं को सजाने में भारतीय कलाकार ने लोक जीवन की झाँकी भी अंकित की है. राजा-रानी, साधू-सन्यासी, सेवक-सेविकाएँ, सैनिक-शिकारी, जुलूस-सेनाएँ, नृत्य-संगीत, राजमहल-झोपड़ी, मंदिर-स्तूप, देवी-देवता, यक्ष-किन्नर, गन्धर्व-विद्याधर, सम्पूर्ण पशु-पक्षी (थलचर, नभचर, जलचर) तथा विभिन्न मनोहारी स्वरूप वाली प्रकृति (सघन और फल-फूलदार वृक्ष, लता-गुल्म और पद्म-सरोवर) सभी कुछ तो भारतीय मूर्तिकला तथा चित्रकला में जीवंत हो उठे हैं. इतना ही नहीं विदेशी भी भारतीय कला के फलकों पर सहज ही अंकित हो गये हैं. अजन्ता की चित्रकला का अभ्यंकन, मथुरा कला में यदि शक-शासक विम कडफाइसिस और कनिष्क को देवकुल की प्रतिमाओं में स्थान मिला है तो साँची-शिल्प में अंगूरी लता को उकेरा गया है.
इस प्रकार भारतीय कला में देश-विदेश का जन-जीवन रूपायित किया गया है और “वसुधैव कुटुंबकम्” वाली उक्ति को चरितार्थ किया गया है.
सामान्य अध्ययन पेपर – 1
“भारतीय कला की एक विशेषता उसकी प्रतीकात्मकता में निहित है” – इस कथन की पुष्टि करें. (250 words)
यह सवाल क्यों?
यह सवाल UPSC GS Paper 1 के सिलेबस से प्रत्यक्ष रूप से लिया गया है –
“भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे”.
सवाल का मूलतत्त्व
प्रतीकात्मकता का तात्पर्य आपको समझना पड़ेगा तभी आप उत्तर लिख पायेंगे. आइये नीचे उत्तर पढ़ते हैं कि प्रतीकात्मकता का तात्पर्य इस प्रश्न में क्या है?
उत्तर :-
प्रतीक प्रस्तुत और स्थल पदार्थ होता है जो किसी अप्रस्तुत, सूक्ष्म भाव या अनुभूति का मानसिक आविर्भाव करता है. उदात्त और कोमल भावनाओं, दार्शनिक विवेचनाओं और आध्यात्मिक मान्यताओं को अत्यंत सरल, सुबोध और सुग्राह्य प्रतीकों के माध्यम से दर्शक के अन्तःकरण तक उतार देने का कार्य भारतीय कलाकारों ने किया है. ऐसे प्रतीकों में स्वस्तिक, श्रीवस्त, चक्र, वर्द्धमान, नन्द्यावर्त, पंचांगुल, मीन-मिथुन, कलश, वृक्ष, दर्पण, पद्म, पत्र, हस्ति, सिंह, आसन, वैजयंती आदि अनेक नाम गिनाये जा सकते हैं. किन्तु इनमें से कुछ विशेष लोकप्रिय रहे हैं जैसे स्वस्तिक, पद्म, श्रीलक्ष्मी आदि.
स्वस्तिक की चार आड़ी-बेड़ी रेखाएँ चार दिशाओं की, चार लोकों की, चार प्रकार की सृष्टि की तथा सृष्टिकर्ता चतुर्मुख ब्रह्म की प्रतीक है. इसे सूर्य का प्रतीक भी माना गया है. इसकी आड़ी और बेड़ी डॉ रेखाओं और उसके चारों सिरों पर जुड़ी चार भुजाओं को मिलाकर सूर्य की छ: रश्मियों का प्रतीक माना गया. यह गति और काल का भी प्रतीक है. इसी प्रकार पद्म भौतिक तथा आध्यात्मिक जीवन का बेजोड़ समन्वय प्रदर्शित करता है. जल और कीचड़ से जुड़ा रहकर भी पद्म सदैव जल के ऊपर रहता है, इसके दलों पर जल की बूँदें नहीं ठहरती हैं. इस प्रकार पद्म हमें संसार में रहते हुए भी सांसारिकता से ऊपर उठने का उपदेश देता है. कमल पर स्थित श्रीलक्ष्मी एक ओर भौतिक सम्पन्नता की प्रतीक हैं तो दूसरी ओर पद्मासन पर विराजमान होकर भौतिकता से निर्लिप्त रहने का आशय प्रकति करती हैं. भौतिकता और आध्यात्मिकता का यह अनूठा सम्मिलन न केवल भारतीय संस्कृति का अपितु भारतीय कला का भी एक उल्लेखनीय पहलू है.
सामान्य अध्ययन पेपर – 1
“भारतीय कला के उद्भव में धर्म का बहुत बड़ा हाथ रहा है” – इस कथन की पुष्टि करें. (250 words)
यह सवाल क्यों?
यह सवाल UPSC GS Paper 1 के सिलेबस से प्रत्यक्ष रूप से लिया गया है –
“भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे”.
उत्तर :-
विश्व की प्रायः सभी प्राचीन सभ्यताओं के साहित्य तथा उनके पुरातात्विक साक्ष्यों से यह स्पष्ट हो गया है कि कला के उद्भव में धर्म का बहुत बड़ा हाथ रहा है. भारतीय कला भी इसका अपवाद नहीं है. देश-विदेश के कला एवं इतिहास के विभिन्न विद्वान् ऐसा मानते हैं कि राष्ट्रीय जीवन के ही समान भारतीय कला का स्वरूप भी मुख्यतः धर्म-प्रधान है.
मोटे तौर पर धर्म के दो स्वरूप बतलाये जाते हैं – एक सैद्धांतिक और दूसरा कर्मकांड. धर्म का दूसरा स्वरूप कर्मकांड कला पर ही आधारित है. देव-प्रतिमा, देवालय और देवार्चन ने ही भारतीय मूर्तिकला तथा स्थापत्यकला को विकसित किया है.
किसी भी देश की धार्मिक मान्यताएँ, उसके पौराणिक देवी-देवता, उसके आचार-विचार और उसकी नीति-परम्पराएँ वहाँ की कला में अभिव्यक्ति पाती हैं. साहित्य की भाँति कला भी समाज का दपर्ण है. बल्कि साहित्य में सामाजिक बिम्ब उतना स्पष्ट नहीं हो पाता है जितना कला में है. संसार के विभिन्न क्षेत्रों की सही झाँकी प्रस्तुत करने और उसके आधार पर उस क्षेत्र का सांस्कृतिक इतिहास निर्मित करने में वहाँ की कला ने महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है.
धर्म का जो सैद्धांतिक स्वरूप है उसका सम्बन्ध आध्यात्मिकता से है. वह लौकिक जीवन को पारलौकिक जीवन की ओर ले जाता है. वे विचार अथवा भावनाएँ मूलतः धार्मिक और आध्यात्मिक हैं जिनका प्रकाशन भारतीय कलाकार अपनी मूर्तिकला अथवा चित्रकला के माध्यम से करता है. भारतीय कलाकार की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह कला-संरचना के द्वारा धार्मिक-आध्यात्मिक भावना को अभिव्यक्ति देता है और साथ ही उक्त भावना को अस्तित्व देने वाला प्रतीक भी समुपस्थित करता है. स्वस्तिक, श्रीवत्स, चक्र, पद्म, श्रीलक्ष्मी आदि ऐसे अनेक प्रतीक हैं जिनके माध्यम से भारतीय कलाकार ने भौतिक जीवन के माध्यम से उदात्त आध्यात्मिक जीवन का उपदेश समुपस्थित किया है. इस प्रकार भारतीय कलाकार दार्शनिक पहले है और कलाकार बाद में.
जिन आदर्शों, विचारों, भावनाओं और आस्थाओं के माध्यम से जीवन का चरम लक्ष्य “मोक्ष” पाया जा सकता है, उन सबकी संवाहिका भारतीय कला है. यह सचमुच लोक से परलोक को मिलाने वाला सेतु है और इसीलिए इसे “मोक्षप्रदाम्” कहा गया है.
“संसार मंथन” कॉलम का ध्येय है आपको सिविल सेवा मुख्य परीक्षा में सवालों के उत्तर किस प्रकार लिखे जाएँ, उससे अवगत कराना. इस कॉलम के सारे आर्टिकल को इस पेज में संकलित किया जा रहा है >> Sansar Manthan
2 Comments on “[संसार मंथन] मुख्य परीक्षा लेखन अभ्यास – Culture & Heritage GS Paper 1/Part 11”
Bahot labhdayak sir
Very good and impressive descusen.