भारत और रूस के बीच सम्बन्ध – India-Russia Relations in Hindi

Sansar LochanIndia and non-SAARC countries, International Affairs

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भारत और रूस के बीच 1947 से ही बेहतर सम्बन्ध रहे हैं. रूस ने भारी मशीन-निर्माण, खनन, ऊर्जा उत्पादन और इस्पात संयंत्रों के क्षेत्रों में निवेश के माध्यम से आर्थिक आत्मनिर्भरता के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में भारत की सहायता की थी.

भूमिका

अगस्त 1971 में भारत और सोवियत संघ ने शांति, मैत्री एवं सहयोग संधि पर हस्ताक्षर किये. यह दोनों देशों के साझा लक्ष्यों की अभिव्यक्ति थी. इसके साथ ही यह क्षेत्रीय एवं वैश्विक शांति और सुरक्षा को सुदृढ़ बनाने की रुपरेखा (blue print) भी थी.

सोवियत संघ के विघटन के बाद दोनों देशों द्वारा जनवरी 1993 में शांति, मैत्री एवं सहयोग की एक नई संधि को अपनाया गया था. उसके बाद 1994 में द्विपक्षीय सैन्य-तकनीकी सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किये गये. वर्ष 2000 में दोनों देशों ने एक रणनीतिक साझेदारी आरम्भ की. इसके साथ ही दोनों देशों द्वारा वर्ष 2017 को राजनयिक सम्बन्धों की स्थापना की 70वीं वर्षगाँठ के रूप में चिन्हित किया गया था.

भारत-रूस सम्बन्धों में ठहराव

जहाँ एक ओर दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सम्बन्ध विवाद सम्बन्ध विवाद मुक्त दिखाई देते हैं, वहीं भू-राजनीतिक आयामों में हाल ही हुए परिवर्तन नए समीकरणों की ओर संकेत करते हैं. इन्हें निम्नलिखित कारकों के माध्यम से समझा जा सकता है :-

रूस और चीन के मध्य बढ़ते आर्थिक सम्बन्ध

आर्थिक गतिहीनता और अमेरिका एवं यूरोपीय देशों द्वारा लगाये गये आर्थिक और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों ने रूसी अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है.

  • रूस ने मुख्यतः यूक्रेन संकट के समय चीन की ओर रणनीतिक पहुँच बनाने के प्रयास किये थे, क्योंकि विश्व स्तर पर भारत की तुलना में चीन के विचार अधिक महत्त्व रखते हैं. हाल ही में रूस ने  चीन को SU-30 30 MKK/MK2 फाइटर और विशेष रूप से S-35, S-400 लॉन्ग रेंज एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइलों को बेचा है.
  • इसके अतिरिक्त रूस का झुकाव पाकिस्तान की ओर भी बढ़ रहा है. रूस पाकिस्तान के साथ सैन्य अभ्यास और रक्षा व्यापार भी आरम्भ कर रहा है.

विविधतापूर्ण रक्षा खरीद

भारत द्वारा अपनी रक्षा खरीद को विविधता प्रदान की जा रही है जिसके परिणामस्वरूप USA, इजराइल और फ्रांस जैसे अन्य भागीदार इसमें शामिल हो गये हैं. इस प्रक्रिया ने भी भारत और रूस के सम्बन्धों को प्रभावित किया है. विदित हो कि भारत-रूस के बीच व्यापक रक्षा सम्बन्ध (Comprehensive defense relationship between India and Russia) बहुत जरुरी है. इन संबंधों में किसी भी प्रकार की गिरावट के भारत-रूस संबंधों (India-Russia Relations) पर प्रतिकूल प्रभाव हो सकते हैं.

संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ भारत की बढ़ती निकटता

भारत और अमेरिका के बीच विस्तृत होते सम्बन्ध एवं बढ़ता रक्षा सहयोग तथा भारत के अमेरिकी नेतृत्व वाले चतुष्पक्षीय समूह (quadrilateral group) में शामिल होने के कारण रूस ने भारत के प्रति अपनी विदेश नीति में रणनीतिक परिवर्तन किये हैं.

सहयोग के संभावित क्षेत्र

  • रक्षा साझेदारी में भारत के विविधीकरण के बावजूद भारत की रक्षा सूची में अभी भी 70% रूस का ही योगदान है. वस्तुतः यदि परमाणु पनडुब्बियों जैसे कुछ महत्त्वपूर्ण सन्दर्भों में देखा जाए तो रूस के महत्त्व को कम नहीं किया जा सकता.
  • यदि ईरान से गुजरने वाला अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण गलियारा (INSC) और व्लादिवोस्तोक-चेन्नई समुद्री मार्ग प्रारम्भ हो जाए तो रूस और भारत के बीच व्यापार के क्षेत्र में अभी भी सुधार की संभावनाएँ विद्यमान हैं.
  • भारत आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, बायो-टेक्नोलॉजी, आउटर-स्पेस और नैनो-टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में रूस के साथ उच्च प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग का लाभ उठा सकता है.
  • भारत अपने शोध और शिक्षा सुविधाओं को आधुनिक बनाने में रूस का सहयोग प्राप्त कर सकता है. इसी प्रकार परस्पर निवेश के अतिरिक्त, ऊर्जा क्षेत्र में भी अपार वृद्धि की संभावनाएँ हैं. प्राकृतिक संसाधनों जैसे काष्ठ और कृषि के व्यापार से भी लाभ उठाये जा सकते हैं.
  • सामरिक और आर्थिक स्तर पर, रूस चीन पर अपनी अत्यधिक निर्भरता पर गंभीरता से विचार कर रहा है तथा पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (EAS) और आसियान के माध्यम से जापान, वियतनाम और अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ अपने सम्बन्धों को प्रगाढ़ करने का भी प्रयास कर रहा है. इन देशों के साथ भारत के दीर्घकालिक सम्बन्ध को देखते हुए, भारत इन संबंधों के संचालन में रूस की सहायता कर सकता है.

निष्कर्ष

  • यदि भू-सामरिक दृष्टिकोण से देखें तो भारत-रूस सम्बन्धों (India-Russia Relations) में गिरावट आने से परिधि बनाम केंद्र प्रतिस्पर्द्धा (periphery vs. core competition) और भी कठोर हो जायेगी जो अभी केवल आकार ही ग्रहण कर रहा है. इससे जहाँ एक ओर भारत मध्य एशिया से बहिष्कृत हो जायेगा वहीं रूस की चीन पर निर्भरता में वृद्धि हो जाएगी. ऐसे में यह निर्धारित करना कठिन होगा कि दोनों के बीच सम्बन्धों में कड़वापन आने से अधिक हानि किसे होगी?
  • इन मतभेदों के बावजूद, सुदृढ़ भारत-रूस सम्बन्धों का होना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह दोनों देशों को अन्य अभिकर्ताओं के साथ बेहतर सौदेबाजी की क्षमता प्रदान करते हैं.
  • दोनों देशों के बीच वार्षिक शिखर सम्मेलन (अक्टूबर, 2018) बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में रूस सहित अमेरिका और चीन के साथ भारत के सम्बन्धों को संतुलित करने और परस्पर विश्वास का पुनर्निर्माण करने के दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था.

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