मानवीय कृत्य – नैतिक आधारभूमि (Ethics Notes Part 3)

Sansar LochanEthics

मानवीय कृत्यों के नैतिक सिद्धांतों के दो मुख्य वर्ग हैं. पहला, कर्तव्यपरक दृष्टिकोण (स्वयं मानवीय कृत्यों पर आधारित) और परिणामवादी दृष्टिकोण (मानवीय कृत्यों के परिणामों पर आधारित).

कर्तव्यपरक एवं परिणामवादी दृष्टिकोणों की तुलना

हम इन दृष्टिकोणों की चर्चा नीतिशास्त्र की शाखाओं के वर्णन के समय कर चुके हैं. नीचे इन दो दृष्टिकोणों में कुछ तुलनात्मक अंतर दिए गए हैं –

  1. एक ओर जहाँ कर्तव्यपरक दृष्टिकोण स्वयं मानवीय कृत्यों पर आधारित है वहीं दूसरी ओर परिणामवादी दृष्टिकोण किसी कृत्य के परिणाम पर आधारित है.
  2. कर्तव्यपरक नीतिशास्त्र में मानवीय कृत्यों मूल्यांकन चरम अथवा प्रश्नातीत मापदंडों अथवा नैतिक सिद्धांतों पर आधारित होता है. किन्तु परिणामवादी दृष्टिकोण में किसी कृत्य का मूल्यांकन उस कृत्य के परिणामों के परिप्रेक्ष्य में किया जाता हैसच पूछा जाए तो परिणामवादी दृष्टिकोण एक “स्थिति नीतिशास्त्र (situation ethics)” है.
  3. कर्तव्यपरक सिद्धांत के अंतर्गत व्यक्ति के लिए नैतिक सिद्धांतों और नियमों की स्पष्ट समझ होना जरुरी होता है. इस प्रकार यहाँ लक्ष्य के लिए अपनाए गए साधन का महत्त्व है. परिणामवादी दृष्टिकोण में नैतिक कर्तव्यों की स्पष्ट समझ की कोई आवश्यकता नहीं है. यदि परिणाम समीचीन है तो कृत्य भी नैतिक हो जाता है (साध्य से साधन का औचित्य है). इस कारण परिणामवादी दृष्टिकोण को व्याख्यात्मक सिद्धांत कहा जाता है.
  4. कर्तव्यपरक दृष्टिकोण में कर्तव्य, दायित्व, उचित-अनुचित पर बल दिया जाता है, परन्तु परिणामवादी दृष्टिकोण में अच्छे, बहुमूल्य एवं वांछनीय परिणाम पर बल दिया जाता है.

व्यावहारिक रूप में देखा जाए तो न तो कर्तव्यपरक दृष्टिकोण से और न ही परिणामवादी दृष्टिकोण से सभी नैतिक समस्याओं का समाधान संभव है. वस्तुतः दोनों दृष्टिकोण भी यदि साथ-साथ लागू कर दिए जाएँ फिर भी मानवीय कृत्यों के विषय में अच्छे-बुरे का निर्णय नहीं हो सकता है.

स्वैच्छिक मानव-कृत्य एवं अस्वैच्छिक मानव-कृत्य

मानवीय कृत्य दो प्रकार के हो सकते हैं –

  1. सोचा-समझा कृत्य
  2. जानबूझ कर नहीं किया गया कृत्य

इनमें नीतिशास्त्र केवल सोचे-समझे मानवीय कृत्यों पर ही लागू होता है. यह जानबूझ कर नहीं किये गए मानवीय कृत्यों अथवा पशुओं द्वारा किए गए कृत्यों पर लागू नहीं होता. अब प्रश्न है कि इस निष्कर्ष पर कैसे पहुँचा जाए कि कोई कृत्य सोच-समझकर किया गया है अर्थात् स्वैच्छिक है अथवा बिना जाने-बूझे अर्थात् अस्वैच्छिक है.

टॉमस एक्विंनस के अनुसार कोई कृत्य स्वैच्छिक है अथवा अस्वैच्छिक है इस बात का निर्णय करने के लिए तीन आधारभूत मापदंड हैं. ये हैं – ज्ञान का होना, इच्छा का होना तथा क्रियान्वयन में स्वतंत्रता का होना. यदि इन तीनों में से कोई एक मापदंड नहीं हुआ तो उस कृत्य को स्वैच्छिक नहीं माना जायेगा.

ज्ञान का होना

किसी कृत्य के मानवीय होने तथा नीतिशास्त्रीय जाँच का विषय होने के लिए ज्ञान का होना आवश्यक है. ज्ञान का अभाव अज्ञान कहलाता है. अज्ञान के चलते बिना जाने-बूझे भी कृत्य किये जा सकते हैं और उनमें मानवीयता का अभाव हो सकता है. यह अज्ञानता दो प्रकार की हो सकती है –

  1. कानून का अज्ञान एवं
  2. कृत्य का अज्ञान

किसी लोक सेवक से कानून की अज्ञानता की अपेक्षा नहीं की जाती. दूसरों के मामलों में, अज्ञानता के चलते हुआ कानून का उल्लंघन विचार योग्य नहीं होता यद्यपि हो सकता है कि अज्ञानतावश किया गया कानून का उल्लंघन किसी को दंड दिला दे, पर उसे नैतिक परीक्षण के योग्य मानवीय कृत्य समझा जाता है.

स्वैच्छिकता का होना

मानवीय कृत्य के रूप में ग्राह्य होने के लिए किसी कार्य का स्वेच्छा से किया जाना अनिवार्य होता है. जो कृत्य बिना स्वेच्छा का किया गया हो उसे मानवीय कृत्य नहीं माना जाता.

स्वतंत्र इच्छा

मानवीय कृत्य के रूप में विचारणीय किसी कृत्य को करते समय उसको  करने वाले की अपनी स्वतंत्र इच्छा का होना जरुरी है. इस विषय में सर्वमान्य नियम (thumb rule) यह है कि यदि कोई व्यक्ति अपनी स्वतंत्र इच्छा से कोई कृत्य कर रहा है (उसके पास विकल्प है, वह उस कृत्य को नियंत्रित कर सकता है, उसे सम्पन्न कर सकता है) तो वह कृत्य नैतिक परीक्षण के योग्य होता है. यदि स्वतंत्र इच्छा का अभाव है तो वह एक बिना इच्छा के किये गए कृत्य के समान है जो मानवीय कृत्य नहीं समझा जायेगा. इसका निहितार्थ यह है कि सभी स्वैच्छिक कार्य स्वतंत्र इच्छा से नहीं भी किये जा सकते हैं, पर स्वेच्छा से किये गए सभी कृत्य स्वैच्छिक कृत्य होते हैं.

मानवीय कृत्य के लिए उत्तरदायी कारकों की जटिल प्रकृति के कारण मानवीय कृत्यों में ऊपर वर्णित किये गए तत्त्व कई प्रकार से दृष्टिगोचर हो सकते हैं. अतः किसी भी कृत्य को मानवीय कृत्य और मानवीयतापूर्ण कृत्य के रूप में वर्गीकृत करना बहुत कठिन होता है. नीचे इसके कुछ उदाहरण (examples) दिए गए हैं –

  1. मानवीय कृत्यों को करने के पीछे जुनून एक सशक्त भाव होता है. “जुनून” मनुष्य पर अपनी छाप छोड़ता है जिसके फलस्वरूप मानव कोई कृत्य करने की ओर अग्रसर हो जाता है. इसके अन्दर क्रोध, दु:ख, घृणा, लालच, प्रेम आदि मानवीय सहज प्रवृत्तियाँ आती हैं. अतः कोई यह तर्क दे सकता है है कि यदि जुनून नहीं है तो स्वतंत्र इच्छा एवं स्वैच्छिकता भी नहीं है और इस प्रकार जुनून के बिना किया गया कोई भी कृत्य नैतिक परीक्षण के योग्य मानवीय कृत्य की कसौटी पर खरा नहीं उतरेगा.
  2. भय की भावना मानवीय कृत्य को इस सीमा तक प्रभावित कर सकती है कि उसका मानवीय कृत्य होना ही असिद्ध हो जायेगा.
  3. शारीरिक अथवा भावनात्मक बल-प्रयोग अथवा हिंसा, भयादोहन आदि जैसे दबाव किसी कृत्य को अमानवीय कृत्य का दर्जा दे सकते हैं.
  4. आदतें, स्वभाव, मानसिक अथवा शारीरिक रोग भी किसी कृत्य की स्वैच्छिकता को प्रभावित कर सकते हैं.

इस प्रकार ऐसे विभिन्न प्रकार के कारक हैं जो हमें यह निर्णय करने में सहायक होते हैं कि कोई कृत्य ऐसा मानवीय कृत्य है जिस पर नैतिक परीक्षण लागू की जा सकता है.

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