आज हम भारत में शिक्षा के प्रचार-प्रसार और विभिन्न education-related commissions or committees की बात करेंगे. हम British period और post-Independence में बने विभिन्न कमिशन और कमिटी जैसे Wood Dispatch of 1854, Hunter Commission 1882, Hartog Committee, Sargent Plan of 1944, Radhakrishnan Commission 1948-49, Mudaliar Commission of 1952-53, Kothari Commission/Ayog 1964-66, National Policy on Education of 1968, Working group of 1985, National Education-policy of 1986, Acharya Rammurti Committe of 1990, Yashpal Committee of 1992 and Modified national policy on education of 1992 इत्यादि सभी चीजों के विषय में बात करेंगे. आपको भी अच्छा लगेगा यह जानकर कि अंग्रेजों ने हमारे देश में किस तरह शिक्षा के क्षेत्र में अपनी पैठ बनाने की कोशिश की…वे कितने सफल रहे और असफल, इसका निर्णय तो आप ही करेंगे.
क्या आपको लार्ड मैकोले (Lord Macaulay-wiki) के बारे में मालूम है?
नहीं मालूम तो मैं बताता हूँ…यह अँगरेज़ इतना घमंडी था कि इसने भारतीय वेदों, उपवेदों आदि की गरिमा का मजाक उड़ाया. उसने कहा कि Indian literature यूरोप के एक लाईब्रेरी के एक shelf में रखी पुस्तकों के बराबर भी नहीं है.
A single shelf of a good European library is worth the whole native literature of India and Arabia
अँगरेज़ भारतीय भूभाग में अपना आधिपत्य दिखाने के बाद भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में सीधा हस्तक्षेप करने के फ़िराक में थे. पर भारतीयों का एक वर्ग ईसाई पादरियों की गतिविधियों को मित्रता की दृष्टि से नहीं देखता था. इसीलिए अंग्रेजों ने अपनी इस योजना को आगे बढ़ाने की धीमी गति से शुरुआत की और 1781 में “कलकत्ता मदरसा” आरम्भ किया और 1791 में “बनारस संस्कृत कॉलेज” की स्थापना की गयी ताकि प्रभावशाली हिन्दू तथा मुस्लिमं नेताओं को संतुष्ट किया जा सके.
1813 में चार्टर एक्ट के शैक्षिक नियम लागू कर कर के अंग्रेजों ने भारत में प्राच्य शिक्षावादी नीति लाने का प्रयास किया.
सरकार के विधि सदस्य “लॉर्ड मैकोले” ने प्राच्यवादी देशी शिक्षा के बजाय पाश्चात्यवादी अंग्रेजी शिक्षा का अपने प्रसिद्ध दस्तावेज में पुरजोर समर्थन किया. मैकोले के अनुसार शिक्षा का आवश्यक उद्देश्य एक ऐसे वर्ग को तैयार करना था जिसे औपनिवेशक सरकार में निचले दर्जे की नौकरियों पर रखा जा सके ताकि यहाँ के लोगों पर शासन करने में आसानी हो.
लॉर्ड मैकोले की सलाह पर तत्कालीन गवर्नर जनरल “लॉर्ड विलियम (Lord William)” ने 1837 में अंग्रेजी को “सरकारी भाषा” का दर्जा दिया. अब सरकारी नौकरियों के लिए अंग्रेजी भाषा अनिवार्य हो गयी.
वुड्ज डिस्पैच 1854-Wood Despatch of 1854
- माध्यमिक स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा शुरू कर के प्रचलित शिक्षा व्यवस्था में सुधार करने पर बल दिया गया जिससे next generation के बच्चे व्यावसायिक जीवन के लिए तैयार हो पाये.
- 1857 में भारतीय प्रदेश सीधे ब्रिटिश सरकार के अधीन हो गया और इसी समय कलकत्ता, मद्रास और बम्बई विश्वविद्यालयों की स्थापना की गयी.
हंटर कमीशन 1882- Hunter Education Commission
- इसकी स्थापना लॉर्ड रिपन (1880-1884 ई.) के द्वारा 1882 में की गयी.
- व्यावसायिक और व्यापारिक शिक्षा पर बल दिया गया.
- हाईस्कूल (High School) में प्रतिवर्ष दो वैकल्पिक परीक्षाओं का आयोजन किया जाने लगा.
- सरकार ने शिक्षा के प्रबंध के लिए उद्द्यमियों से अनुदान राशि लेने का नियम बनाया.
- निजी प्रबंध समितियों की मदद से कई निजी कॉलेज और स्कूल खुले.
- 1896 में “अखिल भारतीय शिक्षा सेवा” का आरम्भ किया गया जिसमें इंग्लैंड में आयोजित की जाने वाली परीक्षा के माध्यम से ही नियुक्ति होती थी, यद्यपि यह परीक्षा भारतीयों के लिए भी खुली हुई थी मगर अधिकांश भारतीय इंग्लैंड जा कर परीक्षा देने में असमर्थ थे.
- आयोग ने सरकार को महिला शिक्षा (Women Education) पर जोर देने को कहा.
In 1882, Lord Ripon organized the Hunter Commission under William Wilson Hunter.
हार्टोग कमेटी 1929- The Hartog Committee Report
- Hartog Committee एक ऐसी committee थी जिसका गठन साईमन कमीशन ने 1929 में शिक्षा के क्षेत्र में सुधार हेतु सुझाव देने के लिए किया था.
- इसका अध्यक्ष Hartog था.
- अधिकांश विद्यार्थी जो पहली कक्षा में प्रवेश लेते थे, चौथवीं-पाँचवी कक्षा तक पहुँचते-पहुँचते पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते थे. अतः committee ने इस अपव्यय को रोकने के लिए सरकार को कुछ सुझाव दिए.
- माध्यमिक शिक्षा में औद्योगिक और वाणिज्यिक विषयों पर जोर दिया गया.
- तकनीकी, वाणिज्य और कृषि हाईस्कूल स्थापित किये गए.
Possible Questions on Hartog Committee…
- Briefly discuss Hartog Committee’s observations and suggestions on Primary Education in India.
- Under what circumstances was the Hartog Committee formed? Give its major recommendations on Primary Education.
- Discuss the problem of wastage in Primary Education as raised by Hartog Committee. What were the Committee’s suggestions?
- Evaluate the recommendations of Hartog Committee for reforms on education.
- Give an account of the educational development during 1921 and 1939.
सार्जेंट प्लान 1944- Sargent Scheme/Plan/Commission
वर्ष 1935 में “भारत सरकार अधिनियम 1935” के द्वारा प्रांतीय सरकारों को स्वायत्तता दे दी गयी. इस समय उच्च शिक्षा का बहुत हद तक विस्तार हुआ मगर माध्यमिक शिक्षा अब भी धीमी थी. 1944 में भारत सरकार के शिक्षा सलाहकार सर जॉन सार्जेंट ने शिक्षा की एक महत्त्वपूर्ण एवं विस्तृत योजना प्रस्तुत की जो सार्जेंट योजना के नाम से जानी जाती है. “Sargent Plan” की सिफारिश (recommendations) थी—
- हाईस्कूल को पुनर्गठित किया जाए. इसे दो प्रकार से बाँटा जाए— a) पहले में कलाओं और मूल विज्ञानों की शिक्षा दी जाए b) दूसरे प्रकार के तकनीकी हाईस्कूल में विज्ञान के साथ-साथ औद्योगिक और वाणिज्यिक विषय पढ़ाये जाएँ.
- 6 से 11 वर्ष तक के बालक-बालिकाओं के लिए व्यापक, निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था हो.
- 11 वर्ष से 17 वर्ष की उम्र तक के लिए 6 वर्षों की शिक्षा की व्यवस्था हो.
- इंटरमीडिएट कक्षाओं तक की पढ़ाई हाईस्कूलों में हो और स्नातक स्तर पर तीन वर्षों का पाठ्यक्रम हो.
- कॉलेज में प्रवेश-सम्बन्धी नियम निर्धारित किये जाएँ तथा देश में एक राष्ट्रीय नवयुवक आन्दोलन आरम्भ किया जाए जिसका उद्देश्य अपने शरीर का निर्माण एवं देश सेवा की भावना की शिक्षा देना हो.
- ग्रामीण पाठ्यचर्या में कृषि पर बल देना होगा
- बालिका शिक्षा के क्षेत्र में एक वैकल्पिक विषय जोड़ा जाए –“गृह विज्ञान”
सार्जेंट योजना के अनुसार देश में 40 वर्षों के अंतर्गत शिक्षा के पुनर्निर्माण का कार्य पूरा किया जाना था, परन्तु कालांतर में इसकी अवधि घटाकर 16 वर्ष कर दी गई. इसकी भी नौबत नहीं आई क्योंकि जल्द ही भारत स्वतंत्र हो गया और स्वाधीन भारतीय सरकार ने नई शिक्षा नीति अपनाई.
पूर्वोक्त वर्णन से अंग्रेजी सरकार द्वारा भारत में शिक्षा, विशेषकर अंग्रेजी शिक्षा के लिए किये गये प्रयासों की जानकारी प्राप्त होती है. शिक्षा प्रसार में 19वीं से 20वीं शताब्दी में स्वयंसेवी संस्थाओं और प्रमुख व्यक्तियों ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई. उदाहरण के लिए रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने शांति निकेतन की स्थापना की. इसी प्रकार आर्य समाज ने वैदिक शिक्षा के पुनरुत्थान के लिए प्रयास किया. अनेक स्थानों पर शिक्षा को राष्ट्रीय आधार पर चलाने के लिए राष्ट्रीय विद्यालयों की भी स्थापना हुई. इन सारे प्रयासों के परिणामस्वरूप 19वीं-20वीं स्थाब्दी में भारत में शिक्षा की पर्याप्त प्रगति हुई.
विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग [राधाकृष्णन आयोग] 1948-49- ‘Radhakrishnan Commission’
स्वतंत्रता मिलने के तत्काल पश्चात् भारत सरकार का ध्यान शिक्षा की तरफ गया. भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्यक्षता में नवम्बर, 1948 में एक कमीशन बहाल किया गया. इस आयोग को विश्वविद्यालय शिक्षा पर अपनी रिपोर्ट देनी थी तथा आवश्यक सुझाव भी देने थे. आयोग ने अपना प्रतिवेदन अगस्त, 1949 में प्रस्तुत किया. इसकी निम्नलिखित सिफारिशें थीं –
- शिक्षा के क्षेत्र में साम्प्रदायिक एवं संकीर्ण विचारों पर रोक लगाई जाए.
- इसने शारीरिक प्रशिक्षण एवं अन्य सामूहिक क्रियाओं पर भी बल दिया.
- आयोग ने इस बात पर विशेष जोर दिया कि माध्यमिक स्तर पर ही सामान्य शिक्षा के अलावा भौतिक वातावरण से पूर्ण परिचय के अतिरिक्त भौतिक तथा शारीरिक विज्ञान के मूल सिद्धांत की जानकारी दी जाये और संचार साधन के रूप में भाषा को स्पष्ट और प्रभावी रूप से प्रयोग किया जाए.
- स्नातक पाठ्यक्रम की अवधि तीन वर्ष होनी चाहिए यह इसी आयोग का सुझाव था.
- विद्यार्थियों के लिए पर्याप्त छात्रवृत्तियों की व्यवस्था हो.
- शिक्षकों की विभिन्न श्रेणियाँ हों, जैसे – प्राध्यापक, प्रवाचक, व्याख्याता एवं शिक्षक.
- विश्वविद्यालय पूर्व (pre-university) 12 वर्ष का अध्ययन.
- विश्वविद्यालयों में परीक्षा दिनों के अतिरिक्त कम से कम 180 दिन पढ़ाई होनी चाहिए जो 11-11 सप्ताहों के तीन सत्रों में बंटी चाहिए.
- सामान्य शिक्षा के अतिरिक्त व्यावसायिक शिक्षा पर बल दिया जाना चाहिए.
- प्रशासनिक सेवाओं के लिए स्नातक की उपाधि अनिवार्य हो.
- शिक्षा को समवर्ती सूची में रखा जाए.
- स्नातकोत्तर प्रशिक्षण एवं शोध तथा स्त्री-शिक्षा का विकास हो.
- विश्वविद्यालयों के अध्यापकों के वेतनों में वृद्धि की जाए.
- एक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग बनाए आये जो देश में विश्वविद्यालय शिक्षा की देख-रेख करे.
सरकार ने राधाकृष्णन आयोग के अनेक सुझावों को स्वीकार कर आवश्यक कदम उठाये. सरकार का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य था – 1953 ई. में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना करना. आगे चलकर स्वतंत्र भारत में शिक्षा के क्षेत्र में अन्य प्रयास भी हुए और अभी भी किये जा रहे हैं.
The commission made an exhaustive study of the problems of Higher Education in India. For this purpose it toured the country extensively in order to acquaint itself with the problems. It circulated a questionnaire to about 600 persons who mattered in the field of education. It interviewed administrators, organisations of the students and educationists. Thus, it tried to gather information in regard to almost all the aspects of university education. Its report runs into two volumes. The first part of the report contains 18 chapters and about 747 pages. The second volume contains the statistics in regard to institutions and other educational problems and the evidence tendered by the witnesses examined by the commission.
मुदालियर आयोग [माध्यमिक शिक्षा आयोग] 1952-53 Mudaliar Commission Recommendations
- माध्यमिक शिक्षा के ढाँचे में सुधार के लिए डॉ. लक्ष्मण स्वामी मुदालियर की अध्यक्षता में सन् 1952 में “माध्यमिक शिक्षा आयोग” की स्थापना की गयी.
- पाठ्यचर्चा में विविधता लाने, एक मध्यवर्ती स्तर जोड़ने, त्रिस्तरीय स्नातक पाठ्यक्रम शुरू करने इत्यादि की सिफारिश की.
- वस्तुनिष्ठ (MCQ) परीक्षण-पद्धति को अपनाया जाए.
- संख्यात्मक अंक देने के बजाय सांकेतिक अंक दिया जाए.
- उच्च तथा उच्चतर माध्यमिक स्तर की शिक्षा के पाठ्यक्रम में एक core subject रहे जो अनिवार्य रहे जैसे—गणित, सामान्य ज्ञान, कला, संगीत etc.
कोठारी आयोग [राष्ट्रीय शिक्षा आयोग] 1964-66 Kothari Commission Recommendations
- इसकी अध्यक्षता प्रो. दौलत सिंह कोठारी ने की.
- इस आयोग के मूल में तीसरी पंचवर्षीय (Third Five-year Plan) योजना रही, जिसने बहुत स्पष्ट शब्दों में देश की शिक्षा पद्धति के पुनर्विचार की बात पर बल दिया है.
- यह आयोग पहला ऐसा आयोग था जिसने विस्तार से भारतीय-शिक्षा पद्धति का अध्ययन किया. इसके परिणामस्वरूप ही वर्ष 1968 में “राष्ट्रीय शिक्षा-नीति” अस्तित्व में आ सकी.
- लगभग सभी education related aspects की तरफ ध्यान खीचा गया, जैसे नारी-शिक्षा (woman education), शिक्षा में होने वाली वित्तीय समस्याओं पर विचार, शिक्षा के प्रति जागरूकता आदि.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968- National Policy on Education
- काठोरी आयोग (शिक्षा आयोग) की सिफारिशों के सम्बन्ध में लोकसभा में व्यापक चर्चा हुई. कालांतर में वर्ष 1968 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन की केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने स्वीकृति दे दी. राष्ट्रीय शिक्षा नीति की प्रमुख बातें:–
- सामान्य रूप से देश के सभी भागों में शिक्षा का समान ढाँचा अपनाना लाभप्रद होगा जो कि 10+2+3 पर आधारित होगा.
- शिक्षा (Education) में निवेश को धीरे-धीरे बढ़ाया जाना चाहिए.
- कमजोर वर्ग के छात्रों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करने के लिए छात्रवृत्ति योजनायें बढ़ायी जाएँ.
- विद्यालयी शिक्षा में विज्ञान, तकनीकी तथा व्यावसायिक शिक्षा को विशेष महत्त्व दिया जाए.
- 14 वर्ष की आयु तक अनिवार्य तथा निःशुल्क शिक्षा.
- विज्ञान तथा अनुसंधान की शिक्षा का समानीकरण (equalisation).
- पाठ्य-पुस्तकों को अधिक उत्तम बनाना और सस्ती पुस्तकों का उत्पादन.
- राष्ट्रीय आय का 6% शिक्षा पर व्यय करना.
शिक्षा कार्यदल 1985- Working group 1985
- इसके अध्यक्ष प्रो.कुलदैस्वामी थे.
- इसका उद्द्येश्य व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देना था.
- कृषि पाठ्यक्रम, व्यवसाय और वाणिज्य पाठ्यक्रम, इंजीनियरिंग तथा प्रौद्योगिक पाठ्यक्रम आदि के लिए सिफारिशें प्रस्तुत कीं.
नवीन शिक्षा-नीति 1986 – New Policy on Education 1986
1980 का दशक भारत में राजनीतिक रूप से उथल-पुथल का दौर तो रहा ही, सामाजिक आर्थिक-वैज्ञानिक तथा तकनीकी क्षेत्र में भी देश को नयी चुनौतियों का सामना करना पड़ा. शिक्षा के पुनरीक्षण तथा पुनर्निर्धारण की आवश्यकता महसूस की जाने लगी. इस सन्दर्भ में “शिक्षा की चुनौती-नीतिगत परिप्रेक्ष्य- Challenges in Education-Policy Perspective” नाम से एक वस्तुस्थिति प्रपत्र भारत सरकार द्वारा बनाया गया. 1986 में यह “नवीन शिक्षा-नीति” के रूप में परिणत हुआ जिसकी प्रमुख विशेषताएँ (features) थीं…..
- 21वीं सदी की आवश्यकताओं के अनुरूप बच्चों में आवश्यक कौशलों तथा योग्यताओं का विकास करना.
- एक गतिहीन समाज को ऐसा स्पन्दनशील समाज बनाना जो प्रतिबद्ध हो, विकासशील हो तथा परिवर्तनशील हो.
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार ही सारे देश में शिक्षा का समान ढाँचा लागू हो, जो 10+2+3 पर आधारित हो. इसके अलावा राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था में एक जैसी केन्द्रिक पाठ्यक्रम पर बल दिया जाए.
- प्रारम्भिक शिक्षा को सर्वव्यापी बनाना.
- शिक्षा का सामाजिक प्रसंग होना चाहिए और पाठ्यचर्या ऐसी बनाई जाए जिससे विद्यार्थियों के मन में संविधान में दिए गये उत्तम सिद्धांतों को विद्यार्थी अपनाएँ अर्थात् –
- वे राष्ट्रीय विरासत में गौरव अनुभव करें.
- वे धर्म निरपेक्षता तथा सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के प्रति वचनबद्ध हों.
- वे देश की एकता तथा अखंडता के प्रति अनुरक्त हों.
- वे अंतर्राष्ट्रीय प्रतिपत्ति एक नियम में कट्टर विश्वासी बन जाएँ.
आचार्य राममूर्ति समिति 1990 Acharya Ramamurti Committee
- वर्ष 1989 में केंद्र में संयुक्त मोर्चा सरकार ने सत्ता में आते ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में संसोधन की कवायद शुरू कर दी.
- इसके अध्यक्ष राममूर्ति थे.
- शिक्षा को सामाजिक आर्थिक, क्षेत्रीय और लिंगभेद के कारण पैदा विषमताओं के व्यापक संदर्भ में देखा जाए ताकि समानता तथा सामाजिक न्याय की सम्प्राप्ति हो सके.
- शिक्षा में मौड्यूल और सेमेस्टर पद्धति (Semester System) अपनायी जाए.
- Skill Development पर जोर.
यशपाल समिति 1992 Yashpal Committee Report
- इसके अध्यक्ष यशपाल थे.
- वर्ष 1992 में शिक्षा-प्रणाली में सुधार, प्राथमिक शिक्षा को अधिक सुरुचिपूर्ण तथा गुणवत्तापूर्ण बनाने, छात्रों की समझ में वृद्धि, पाठ्यक्रम को व्यवस्थित करना उद्देश्य.
- उबाऊ और गुणवत्ताहीन परीक्षा-प्रणाली को रुचिकर/interesting बनाना.
- शिक्षा को तकनीकी से जोड़ा जाए.
संशोधित राष्ट्रीय शिक्षा-नीति 1992 Modified National Policy on Education
- वर्ष 1991 में कांग्रेस के पुनः सत्ता में आने पर पिछली सरकार द्वारा शिक्षा-नीति में किए गए परिवर्तनों का पुनरीक्षण किया गया.
- इसके अध्यक्ष श्री जनार्दन रेड्डी थे.
- प्रत्येक विद्यालय में कम से कम तीन शिक्षकों का प्रावधान.
- Operation Black Board और School Complex जैसी योजनाओं को जारी रखा जाए.
- प्रौढ़ शिक्षा पर जोर और उसी के लिए “जिला साक्षरता अभियान” (District Literacy Movement- DLM) की सिफारिश.
Important Info
Tसजीव सर के नोट्स यहाँ मिलेंगे: Sajiva Sir Notesआपको इस सीरीज के सभी पोस्ट इस लिंक में एक साथ मिलेंगे >> #AdhunikIndia
नई शिक्षा नीति के विषय में पढ़ें > राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020
Summary of the article in English
Here, we discussed about the history of Indian education under the British and after independence in this article. Some of the Britishers in personal endeavor and for political gain showed some interest in spreading education. Some of them were in favour of patronising traditional system of education. But most of others, led by Macaulay, wanted English-centric education so that the interest of British administration could be served. We discussed features or recommendations of Wood Dispatch of 1854, Hunter Commission 1882, Hartog Committee, Sargent Plan of 1944, Radhakrishnan Commission 1948-49, Mudaliar Commission of 1952-53, Kothari Commission/Ayog 1964-66, National Policy on Education of 1968, Working group of 1985, National Education-policy of 1986, Acharya Rammurti Committe of 1990, Yashpal Committee of 1992 and Modified national policy on education of 1992.
33 Comments on “आधुनिक भारतीय शिक्षा का विकास, Development of Modern Indian Education: Related Committees and Commissions”
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Next session in policies n commission pr objective questions aur bana dijiyega
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Knew the various recomondations of the commissions in nutshell. After all these suggestions and progress, we still lack positive thinking, persons, citizens and not to say about sensitivity to others problems and feelings as well