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आज हम बौद्ध धर्म की दो शाखाओं हीनयान और महायान के बीच अंतर और कुछ रोचक तथ्यों के बारे में जानेंगे. बुद्ध के निर्वाण के 100 वर्ष बाद ही बौद्ध धर्म दो सम्प्रदायों में विभक्त हो गया – 1. स्थविरवादी और 2. महासांघिक.
बौद्धों की द्वितीय संगीति वैशाली में हुई. इसमें ये मतभेद और भी अधिक उभर कर आये. अशोक के समय बौद्धों की तीसरी संगीति के समय तक इनमें 18 सम्प्रदाय (निकाय) विकसित हो गये थे. इनमें 12 स्थविरवादियों के तथा छ: महासान्घिकों के थे.
महासान्घिकों का एक ही सम्प्रदाय था – वैपुल्यवादी. महासांघिक सम्प्रदाय से ही महायान सम्प्रदाय का उद्भव और विकास हुआ.
महायान और हीनयान
महासंघिक सम्प्रदाय ने बुद्ध को अलौकिक रूप देने का प्रयत्न किया. इन्होंने बुद्ध की मूर्तियों की प्रतिष्ठा का प्रचार किया. इसके विपरीत स्थविरवादियों ने बुद्ध के मानव-रूप की रक्षा करने का प्रयास किया. स्थविरवादियों का मत था कि मनुष्य को दुःख निवृत्ति के लिए आत्म-कल्याण का प्रयत्न करना चाहिए.
इसके विपरीत महासान्घिकों का कथन था कि अर्हत् को अपने दुःख की निवृत्ति के लिए अपने तथा प्राणिमात्र दोनों के कल्याण की ओर प्रयत्नशील रहना चाहिए.
महायान और हीनयान – भिन्न शाखाएँ क्यों?
महायान शब्द का वास्तविक अर्थ इसके दो खंडों (महा+यान) से स्पष्ट हो जाता है. “यान” का अर्थ मार्ग और “महा” का श्रेष्ठ, बड़ा या प्रशस्त समझा जाता है. तात्पर्य उस ऊँचे या प्रगतिशील मार्ग से था, जो हीनयान से बढ़कर था. यह लोकोत्तर मार्ग था, जिसका ऊँचा आदर्श था और इसी के कारण ईसा पूर्व पहली शताब्दी में ही बुद्ध धर्म में विभेद हो गया.
वैशाली-संगीति में पश्चिमी तथा पूर्वी बौद्ध अलग-अलग हो गये, जिन्होंने त्रिपिटक में कुछ परिवर्तन किया. पूर्वी शाखा को महासंघिक का भी नाम दिया जाता है, जिससे आगे चलकर महायान का नामकरण किया गया. बोधिसत्त्व की भावना के कारण महायान बोधिसत्त्वयान के नाम से भी साहित्य में प्रसिद्ध है.
महायान और हीनयान में अंतर
महायान और हीनयान के दार्शनिक सिद्धांतों में अनेक मतभेद हैं. बुद्ध के जिस क्षणिकवाद की हीनयानियों ने वस्तों का अभावात्मक रूप कहकर व्याख्या की, महायानियों ने उसकी शून्यवाद के रूप में प्रतिष्ठा की. इनका कहना है कि शून्यवाद अभावात्मक नहीं है, अपितु व्याहारिक जगत से परे पारामार्थिक सत्ता विद्यमान है. यह लौकिक विचारों से अवर्णनीय होने के कारण ही अभावरूप कहलाती है. मन-वाणी से अगोचर होने के कारण ही यह शून्य है.
हीनयान और महायान के निर्वाण की कल्पना में भी थोड़ा-सा मतभेद है. हीनयान के अनुसार निर्वाण सत्य, नित्य, पवित्र और दुःखाभावरूप है. महायानी इस निर्वाण की प्रथम तीन विशेषताओं को स्वीकार करके अंतिम विशेषता में परिवर्तन करते हैं. इनका निर्वाण वेदांत की मुक्ति के सदृश है.
यह भी दृष्टव्य है कि हीनयान सम्प्रदाय के ग्रन्थ अधिकतर पाली भाषा में है, जबकि महायान सम्प्रदाय के ग्रन्थ संस्कृत भाषा में है.
महायान सम्प्रदाय ने जीवन का एक नया उच्च आदर्श जनता के समक्ष प्रस्तुत किया. उन्होंने कहा कि प्राणिमात्र के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर देना ही परम कर्तव्य है. परकल्याण के लिए कुछ भी अदेय नहीं है. इस हेतु उन्होंने बुद्ध के अनेक पूर्व जन्मों की कल्पना बोधिसत्व के रूप में की. बुद्ध पद प्राप्त करने से पहले सिद्धार्थ ने बोधिसत्व के रूप में अनेक जन्म लिए थे. उन्होंने दु:खों से संतप्त प्राणियों की पीडाओं के निवारण के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया था. महायानियों का कथन था कि मनुष्य को चाहिए कि केवल अपना कल्याण ही न करे, अपितु प्राणिमात्र का भी कल्याण करे. सबका कल्याण करने की प्रवृत्ति के कारण उन्होंने अपने को महायानी कहा. शेष बौद्धों को केवल आत्म-कल्याण करने में संलग्न होने के कारण उन्होंने हीनयान नाम दिया क्योंकि इसमें बहुत लोग सवार नहीं हो सकते हैं. हीनयान का साधक अपने ही निर्वाण का प्रयत्न करता है. महायान का साधक अधिक उदार लक्ष्य रखता है.
हीनयान |
महायान |
हीनयान दोनों यानों में अधिक पुराना है |
महायान के बारे में कहा जाता है कि वह पहली शताब्दी ई.पू. उभर कर आया |
हीनयान में पालि भाषा का महत्त्व है |
संस्कृत भाषा का महत्त्व है |
मुख्य रूप से दक्षिण.पू. एशिया (वियेतनाम छोड़कर) में फैला हुआ है |
इसका प्रचार भारत के उत्तर में अधिक है, जैसे – तिब्बत, चीन, मंगोलिया, जापान, उ.कोरिया आदि. |
हीनयान में बुद्ध को शाक्यमुनि के रूप में जाना जाता है |
महायान में बुद्ध एक भगवान् हैं जिनके कई पिछले जन्मों के रूप (बोधिसत्व) हैं और भविष्य में भी कई बुद्ध होने की कल्पना है, जैसे – मैट्रैक |
हीनयान अनित्यता, दु:खता और अनात्मता को मानता है |
महायान आगे बढ़कर इसमें शून्यता जोड़ता है |
हीनयान से साधक को व्यक्तिगत निर्वाण की प्राप्ति होती है |
महायान का आदर्श समस्त संसार को मुक्त कराने का है |
हीनयान पुद्गल-शून्यता को मानता है |
महायान धर्म-शून्यता को |
हीनयान में छह पारमिताएँ बतलाई गई हैं |
महायान में दस पारमिताओं का बारम्बार वर्णन है |
हीनयान में ध्यान-योग का महत्त्व है |
महायान करुणा-प्रधान है. बोधिसत्व का लक्ष्य केवल अपनी बुद्धत्व को प्राप्त करना नहीं, किन्तु सहस्त्र प्राणियों को बुद्धत्व का लाभ कराना है. इसलिए महायान में असंख्य बुद्धों और बोधिसत्वों की कल्पना की गई है और बोधि-चित्त की प्राप्ति के लिए मार्ग बतलाया गया है. दस भूमियाँ – मुदिता, विमला, प्रभाकारी, अचिंष्म्ती, सुदुर्जया, अभिमुक्ति, दूरंगमा, अचला, साधुमति, धर्ममेध महायान की विशेष देन हैं इसका वर्णन हीनयान में नहीं के बराबर है |
बुद्धों की विशेषताएँ यथा – दस बल, चार वैशारद्य, बत्तीस महापुरुष – लक्षण, अस्सी अनुव्यंजन, अष्टादश आवेणिक धर्म यद्यपि हीनयान में भी मिलते हैं |
महायान में इनका विशेष वर्णन किया गया है और इनकी प्राप्ति के लिए सतत प्रयत्न करने को कहा गया है |
हीनयान में अर्हत्व पद एक गौरवपूर्ण पद माना गया है. स्वयं भगवान् बुद्ध भी अर्हत् कहे गये हैं |
महायान में प्रज्ञापारमिता की प्राप्ति की बहुत प्रशंसा की गई है. महायान प्रत्येकबुद्ध और श्रावक को हीन दृष्टि से देखता है. “श्रावक” और “अर्हत्” शब्द का प्रयोग महायान में समान रूप में किया गया है. महायान में सम्यक सम्बोधि ही चरम लक्ष्य मानी गई है. महायान आत्मार्थ को छोड़कर परार्थ की प्राप्ति के लिए प्रेरित करता है |
हीनयान में ध्यान आदि साधनाओं पर अधिक जोर दिया गया है |
महायान में बुद्धों की पूजा का विशेष वर्णन मिलता है |
हीनयान में साधक निर्वाण-प्राप्ति से ही संतुष्ट हो जाता है |
महायान में बुद्ध-ज्ञान, सर्वज्ञता, अनुत्तरज्ञान या “सम्बोधि” जिसे “तथता” भी कहा गया है, उनके लिए सत्व प्रयत्नशील होता है |
हीनयान का परमार्थ महायान के लिए संवृति-सत्य है |
महायान का परमार्थ सत्य या परिनिषपन्न सत्य तो केवल धर्म-शून्यता है |
हीनयान शील और समाधि-प्रधान है |
महायान करुना और प्रज्ञा-प्रधान है |
विस्तार
महायान सम्प्रदाय का उद्भव ईसा की प्रथम शाताब्दी से प्रारम्भ होकर चतुर्थ शताब्दी ई. तक खूब फैला. इस समय तक यह प्रायः सारे भारतवर्ष में फ़ैल गया. भारतवर्ष से बाहार उत्तर-पश्चिम तथा मध्य-एशिया में, चीन और जापान में यह प्रसारित हुआ. हीनयान सम्प्रदाय का प्रसार सिंघल द्वीप वर्मा, दक्षिण-पूर्वी एशिया आदि में अधिक हुआ.
Tags: हीनयान और महायान के बीच अंतर (differences) को जानें in Hindi. बौद्ध धर्म के इन दो संप्रदायों का उत्कर्ष. इनके संस्थापक कौन थे? दोनों के बीच तुलना व सिद्धांत.
12 Comments on “हीनयान और महायान के सम्बन्ध में रोचक जानकारी”
Samrat asok se purv ka kaunsa ullekh budha ke bare men milata hai.
bahut accha sir
Nice Topic Hinyan and mahayan dharma
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Prelims is near so we are focusing much on Quiz. Well, we will be again regular soon.
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A very knowledgeable article about the Buddhism. There’re two sects of Buddhism – Mahayana and Heenyan.
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