हाल ही में आनुवंशिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) ने आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) सरसों की व्यावसायिक कृषि को स्वीकृति दी है।
GEAC ने धारा मस्टर्ड हाइब्रिड-11 (DMH – 11) की कृषि के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति देने की संस्तुति की है, अब इसे स्वीकृति के लिए MoEF&CC के पास भेजा जायेगा।
धारा मस्टर्ड हाइब्रिड (DMH-11) के बारे में
धारा मस्टर्ड हाइब्रिड (DMH-11) एक स्वदेशी रूप से विकसित ट्रांसजेनिक सरसों है। इसे दिल्ली विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स (CGMCP) द्वारा विकसित किया गया है। इसे सरसों की पूर्वी यूरोपीय किस्म “अर्ली हीरा-2″ म्यूटेंट (बारस्टार) और भारतीय किस्म “वरुण” (बार्नेज लाइन) के मध्य क्रॉस ब्रीडिंग से विकसित किया गया है।
इसमें ‘बारनेज’ नामक जीन पादप में पराग के उत्पादन को बाधित कर उसकी नर जनन क्षमता समाप्त करता है जबकि दूसरा जीन “बारस्टार’ नर जनन क्षमता को पुन: स्थापित करता है। इस प्रकार उत्पन्न किस्म उच्च उपज देने वाली होती है। माशा की जा रही है कि GM सरसों भारत को खाद्य तेल उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने और विदेशी मुद्रा बचाने में सहायक होगी।
GM फसल क्या है?
संशोधित अथवा परिवर्तित फसल (genetically modified – GM Modified crop) उस फसल को कहते हैं जिसमें आधुनिक जैव-तकनीक के सहारे जीनों का एक नया मिश्रण तैयार हो जाता है.
ज्ञातव्य है कि पौधे बहुधा परागण के द्वारा जीन प्राप्त करते हैं. यदि इनमें कृत्रिम ढंग से बाहरी जीन प्रविष्ट करा दिए जाते हैं तो उन पौधों को GM पौधा कहते हैं. यहाँ पर यह ध्यान देने योग्य है कि वैसे भी प्राकृतिक रूप से जीनों का मिश्रण होता रहता है. यह परिवर्तन कालांतर में पौधों की खेती, चयन और नियंत्रित सम्वर्धन द्वारा होता है. परन्तु GM फसल में यही काम प्रयोगशाला में कृत्रिम रूप से किया जाता है.
GM फसल की चाहत क्यों?
- अधिक उत्पादन के लिए.
- खेती में कम लागत के लिए.
- किसानी में लाभ बढ़ाने के लिए.
- स्वास्थ्य एवं पर्यावरण में सुधार के लिए.
GM फसल का विरोध क्यों?
- यह स्पष्ट नहीं है कि GM फसलों (GM crops) का मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर कैसा प्रभाव पड़ेगा. स्वयं वैज्ञानिक लोग भी इसको लेकर पक्के नहीं हैं. कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसी फसलों से लाभ से अधिक हानि है. कुछ वैज्ञानिक यह भी कहते हैं कि एक बार GM crop तैयार की जायेगी तो फिर उस पर नियंत्रण रखना संभव नहीं हो पायेगा. इसलिए उनका सुझाव है कि कोई भी GM पौधा तैयार किया जाए तो उसमें सावधानी बरतनी चाहिए.
- भारत में GM विरोधियों का यह कहना है कि बहुत सारी प्रमुख फसलें, जैसे – धान, बैंगन, सरसों आदि की उत्पत्ति भारत में ही हुई है और इसलिए यदि इन फसलों के संशोधित जीन वाले संस्करण लाए जाएँगे तो इन फसलों की घरेलू और जंगली किस्मों पर बहुत बड़ा खतरा उपस्थित हो जाएगा.
- वास्तव में आज पूरे विश्व में यह स्पष्ट रूप से माना जा रहा है कि GM crops वहाँ नहीं अपनाए जाएँ जहाँ किसी फसल की उत्पत्ति हुई हो और जहाँ उसकी विविध किस्में पाई जाती हों. विदित हो कि भारत में कई बड़े-बड़े जैव-विविधता वाले स्थल हैं, जैसे – पूर्वी हिमालय और पश्चिमी घाट – जहाँ समृद्ध जैव-विविधता है और साथ ही जो पर्यावरण की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है. अतः बुद्धिमानी इस बात में होगी कि हम लोग किसी भी नई तकनीक के भेड़िया-धसान में कूदने से पहले सावधानी बरतें.
- यह भी डर है कि GM फसलों के द्वारा उत्पन्न विषाक्तता के प्रति कीड़ों में प्रतिरक्षा पैदा हो जाए जिनसे पौधों के अतिरिक्त अन्य जीवों को भी खतरा हो सकता है. यह भी डर है कि इनके कारण हमारे खाद्य पदार्थो में एलर्जी लाने वाले तत्त्व (allergen) और अन्य पोषण विरोधी तत्त्व प्रवेश कर जाएँ.
भारत में जीन संवर्द्धित फसलों की वैधानिक कानूनी स्थिति
भारत में, जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (Genetic Engineering Appraisal Committee -GEAC) जीएम फसलों की वाणिज्यिक खेती की अनुमति देने के लिए शीर्ष निकाय है.
GEAC क्षेत्र परीक्षण प्रयोगों सहित पर्यावरण में आनुवंशिक रूप से संवर्द्धित किये गए जीवों और उत्पादों को जारी करने संबंधी प्रस्तावों की मंज़ूरी के लिये भी उत्तरदायी है.
जुर्माने का प्रावधान
अप्रमाणित GM संस्करण का उपयोग करने पर पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1989 के अंतर्गत 5 साल की जेल तथा 1 लाख रुपये का जुर्माना लग सकता है.
किसान जीएम फसलों को क्यों महत्त्व दे रहे हैं?
कम लागत: किसानों द्वारा बीटी कपास के उगाने पर तथा ग्लाइफोसेट का उपयोग करने पर खरपतवार-नाशक की लागत काफी कम हो जाती है.
बीटी बैंगन के संबंध में भी कीटनाशक-लागत कम हो जाने से उत्पादन लागत में कमी हो जाती है.
मेरी राय – मेंस के लिए
पर्यावरणविदों का तर्क है कि जीएम फसलों के लंबे समय तक चलने वाले प्रभाव का अध्ययन किया जाना बाकी है तथा अभी इन्हें व्यावसायिक रूप से अनुमति नही दी जानी चाहिए. इनका मानना है, कि जीन संवर्धन से फसलों में किये गए परिवर्तन लंबे समय में मनुष्यों के लिए हानिकारक हो सकते हैं.
हर बार अवैध जीएम फसलों को इसी तरह से भारत समेत दुनिया के कई देशों में प्रवेश दिया जाता है. उसके बाद सरकार उस अवैध खेती को मंजूरी दे देती है. जीएम बीज बनाने वाली कंपनी पर यह जिम्मेदारी सुनिश्चत होनी चाहिए कि यदि बिना मंजूरी उसका बीज कहीं बाहर मिलता है तो उस पर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए. अवैध बीटी बैंगन के इस समूचे खेत को नष्ट कर दिया जाना चाहिए. वहीं, इस कृत्य में शामिल लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी होनी चाहिए. यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि किसानों को इसके लिए प्रताड़ित किया जाए. अधिकांश किसानों को वैध और अवैध बीजों की जानकारी नहीं होती. फसल नष्ट करने के बाद किसानों को इसका मुआवजा भी दिया जाना चाहिए.