नैतिक सक्षमता का अर्थ एवं उसके तत्त्व (Ethics Notes Part 5)

Sansar LochanEthics

किसी लोक-सेवक को नैतिक रूप से सक्षम होना चाहिए. नैतिक रूप से सक्षम लोक-सेवक वह होता है जो उच्च कोटि के वैयक्तिक एवं व्यावसायिक व्यवहार वाला हो, प्रासंगिक नीतिगत शास्त्र, संहिता एवं विधि का ज्ञाता हो, चुनौतीपूर्ण परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाने पर नैतिक तर्कबुद्धि का प्रयोग करने की क्षमता रखता हो, नैतिकतापूर्ण कृत्य करता हो तथा सार्वजनिक एजेंसियों एवं संगठनों में नैतिकतापूर्ण व्यवहार एवं पद्धतियों को बढ़ावा देता हो.

नैतिक सक्षमता

इस प्रकार नैतिक सक्षमता के मुख्य पाँच तत्त्व हैं –

  1. प्रतिबद्धता
  2. ज्ञान
  3. नैतिक तर्कबुद्धि
  4. कृत्य
  5. प्रोत्साहन

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दूसरे शब्दों में कहा जाये तो किसी लोक-सेवक में नैतिक सक्षमता होने के लिए सर्वाधिक आवश्यक योग्यताएँ हैं –

  • नैतिक सिद्धांतों का ज्ञान
  • नैतिकता से सम्बंधित व्यावसायिक संहिताओं की जानकारी
  • समानता, न्यायपूर्णता एवं प्रतिनिधित्व जैसे सांवैधानिक सिद्धांतों के प्रति सम्मान
  • सार्वजनिक कार्य के बारे में जानने के लोगों के अधिकार का सम्मान
  • विधि के प्रति सम्मान
  • जनहित के प्रति सम्मान
  • नैतिक तर्कबुद्धि

नैतिक निर्णयों को परखने के लिए परीक्षण

विभिन्न प्राचीन एवं आधुनिक दर्शनों के आधार पर नैतिक निर्णयों के निर्धारण के लिए कई परीक्षण प्रस्तावित किए गए हैं, जैसे गंध परीक्षण, उपयोगिता परीक्षण, अधिकार परीक्षण, चयन परीक्षण, न्याय परीक्षण, जनकल्याण परीक्षण, चरित्र अथवा सद्‌गुण परीक्षण आदि. इनमें से प्रत्येक परीक्षण की संक्षिप्त जानकारी नीचे प्रस्तुत की जा रही है –

गंध परीक्षण (Smell Test)

यह परीक्षण इस बात पर बल देता है कि समाज में क्या अच्छा समझा जाता है. यह ऐसे कृत्यों का प्रतिषेध करता है जो जनसाधारण को भला प्रतीत नहीं होता. उदाहरणस्वरूप, सबके बीच नंगा होना एक अच्छा विचार नहीं है और न ही यह नैतिक है क्योंकि लगभग सभी सभ्य समाजों में नंगा होना सामाजिक व्यवहार के विरुद्ध है. गंध परीक्षण की खराबी यह है कि सामाजिक मानदंड लचीले होते हैं और समय के साथ परिवर्तनशील होते हैं. उदाहरण के लिए, प्रारम्भिक मध्यकालीन समय से भारत में सती प्रथा प्रचलित थी, किन्तु यह एक बुरी प्रथा है. इसकी गंध सूँघने में हमें बहुत समय लग गया. इसी प्रकार आज भी समाज में जातिगत भेदभाव की गंध हममें से अधिकांश को बुरी नहीं लगती.

उपयोगिता परीक्षण (Utility Test)

यह परीक्षण उपयोगितावादी सिद्धांत पर आधारित है. यह परीक्षण अच्छे-से-अच्छे परिणाम अथवा प्रतिफल पर बल देती है. इसके अनुसार कोई नैतिक निर्णय सही है यदि यह समाज एवं व्यक्ति को संतोष, लाभ तथा आर्थिक एवं सामाजिक न्याय देता है. उदाहरणार्थ, स्वतंत्रता, समानता एवं भाईचारे के सांवैधानिक आदर्शों के अनुरूप किये गए निर्णय ऐसे नैतिक निर्णय हैं जो उपयोगिता परीक्षण पर खरे उतारते हैं. इस परीक्षण में परिणामों का सही आकलन करना आवश्यक होता है. जटिल परिस्थितियों में किसी निर्णय को उपयोगिता परीक्षण की कसौटी पर कसना कठिन ही नहीं अपितु असंभव हो जाता है.

अधिकार परीक्षण (Rights Test)

यह परीक्षण अधिकार सिद्धांत पर आधारित है. पर सामाजिक मानदंडों की भाँति अधिकार भी शुद्ध यथार्थ नहीं होते वरन् समय के साथ बदलते रहते हैं. यह परीक्षण प्रत्येक मनुष्य के सहज मूल्य पर केन्द्रित है चाहे उसका शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक स्थिति कुछ भी क्यों न हो. इस परीक्षण के लिए आधुनिक युग में मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा एक सशक्त हथियार सिद्ध हुआ है. इसके अतिरिक्त भारत-समेत लगभग सभी लोकतांत्रिक देशों ने प्रत्येक व्यक्ति को कतिपय आधारभूत मूल विधिसम्मत अधिकार दिए हैं. अधिकार परीक्षण के माध्यम से यह देखा जाता है कि किसी नैतिक निर्णय से किसी आधारभूत अधिकार का हनन तो नहीं हो रहा.

चयन परीक्षण (Choice Test)

यह परीक्षण इस तथ्य पर बल देता है कि लोगों को अधिकार है कि वे स्वयं निश्चित करें कि उनके लिए भला क्या है? इस प्रकार यह परीक्षण लोगों की प्राथमिकता को महत्त्व देता है. किन्तु इस परीक्षण में यह आवश्यक हो जाता है कि निर्णय करते समय सम्बंधित व्यक्ति में तार्किकता हो. लोगों को यह निर्धारित करने में सक्षम होना चाहिए कि वे किस बात को महत्त्व देते हैं. पते कि बात यह है कि पागल व्यक्ति अथवा बच्चे यह नहीं समझ पाते हैं कि उनके लिए कौन वस्तु महत्त्व की है.

न्याय परीक्षण (Justice Test)

यह परीक्षण यह सुनिश्चित करता है कि कृत्य-विशेष सर्वसाधारण के लिए सामाजिक एवं आर्थिक न्याय देने वाला है अथवा नहीं. इस परीक्षण का मूल-मन्त्र है : समान व्यक्तियों के साथ समानता का और असमान व्यक्तियों के साथ असमानता का व्यवहार होना चाहिए. परन्तु प्रश्न यह है कि समान व्यवहार की परिभाषा क्या है क्योंकि इसके लिए कोई एक कसौटी नहीं है.

जनकल्याण परीक्षण (Common Good Test)

यह परीक्षण जन-सामान्य के कल्याण पर बल देता है, जैसे- सामाजिक संस्थाएँ, प्राकृतिक एवं प्रौद्योगिक वातावरण एवं समझने के ढंग आदि. यह परीक्षण व्यक्तिवाद का विरोधी है.

सद्‌गुण परीक्षण (Virtue Test)

सद्‌गुण परीक्षण दर्पण परीक्षण भी कहलाता है. इसमें प्रश्न किया जाता है कि यदि मैं यह कृत्य करूँ तो क्या मैं दर्पण में अपना सामना कर सकूँगा? इस प्रकार यह परीक्षण मानवीय सद्‌गुणों पर तथा व्यक्ति के उसके अपने चरित्र के अनुरूप लिए गए निर्णय पर आधारित है.

ऊपर की चर्चा से यह स्पष्ट है कि कुछ परीक्षण व्यक्तिवाद पर बल देते हैं तो कुछ समग्र समुदाय पर. प्रत्येक परीक्षण अपने दृष्टिकोण में अलग है पर सबका परिणाम लगभग एक ही हैं. अतः किसी निर्णय की नैतिकता पर विचार करते समय हमें एक से अधिक परीक्षणों का सहारा लेना चाहिए.

Previous Ethics Notes Are Given Below

Part 1

Part 2

Part 3

Part 4

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