भ्रष्टाचार और उसके कारण – Ethics Notes in Hindi

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यह बात सर्वविदित है कि सार्वजनिक सेवाओं में अनेक प्रकार के भ्रष्टाचार आ गए हैं.  भारतीय प्रशासन में इसकी अधिकता और बढ़ गई है. भ्रष्टाचार भारतीय प्रशासन का सबसे बड़ा दुर्भाग्य रहा है. आज संपूर्ण भारतीय समाज में यह व्याप्त है और सारी जनता इससे परेशान हो गई है. प्रत्येक सरकारी विभाग में ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है, जो अपने स्वार्थ के लिए जनहित का कुछ भी खयाल नहीं करते. यही कारण है कि आज जनता और सरकारी सेवकों के बीच दिन-प्रतिदिन खाई बढ़ती जा रही है.

भारतीय प्रशासन में इसके रूप का वर्णन करते हुए एक लेखक ने ठीक ही लिखा है, “मुगल शासकों द्वारा उत्पादित, आंग्ल शासकों द्वारा लाड़-दुलार से पोषित भ्रष्टाचार की यह रूपवती नारी जनजागरण तथा जनकल्याण के लिए पिशाचिनी बन गई है, जिसने आशा, विश्वास तथा धैर्य के स्निग्ध लावण्यमय आलोक की आभा को अपने काले आँचल में लगभग ढँक लिया है.”

आज प्रशासन का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र है जो इस महाछत्र की विशाल छाया से अपने को वंचित रख सका हो. इस प्रकार, चारों ओर भ्रष्टाचार का बोलबाला है और भारत की सीधी जनता उसे बर्दाश्त करती जा रही है. ठीक ही कहा जाता है, “बुराइयों को बर्दाश्त करने का अर्थ बुराइयों का प्रचार करना है.”

भ्रष्टाचार के कारण (Causes of Corruption)

भ्रष्टाचार के कारणों को निश्चित श्रेणियों में नहीं बाँटा जा सकता. इसके कारणों की कोई सीमा नहीं है. फिर भी, मुख्यतः भ्रष्टाचार के तीन कारणों का उल्लेख किया जा सकता है –

  1. सामाजिक,
  2. आर्थिक, और
  3. राजनीतिक

अब तीनों पर अलग-अलग विचार किया जाएगा.

सामाजिक कारण (Social Causes)

भ्रष्टाचार बढ़ने का मुख्य कारण देश की सामाजिक नैतिकता और सामाजिक ढाँचा है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि भारत में सामाजिक नैतिकता का स्तर बहुत गिरा हुआ है. भारतीय समाज और प्रशासन में अनेक अत्याचार होते रहते हैं, परंतु उनके विरुद्ध आवाज उठानेवाले बहुत कम हैं. इसके विपरीत, नाजायज तरीके से भी पैसे कमानेवाले को काफी सामाजिक प्रतिष्ठा मिलती है. एक ईमानदार शिक्षक को समाज में उतनी प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त होती जितनी एक घूसखोर सरकारी कर्मचारी को. दिसंबर, 1957 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में भाषण देते हुए भी पतंजलि शास्त्री ने ठीक ही विचार व्यक्त किया था, “किसी भी ढंग से प्राप्त धन, प्रतिष्ठा, शक्ति और प्रभाव के लिए प्रभावशाली पारपत्र है.”

हमारे समाज का ढाँचा और नैतिकता ही ऐसी है जहाँ भ्रष्टाचार का विकसित होना स्वाभाविक है. एक ओर अधिकारीवर्ग घूस लेने में नहीं हिचकते तो दूसरी ओर नागरिक भी कर से बचना पसंद करते हैं. वास्तव में, कर नहीं चुकाना या कुछ नाजायज खर्च करके उससे बच निकलना असामाजिक और अनैतिक कार्य है. जब तक समाज में नागरिकों और सेवकों की यह धारणा रहेगी, तब तक भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं किया जा सकता.

आर्थिक कारण (Economic causes)

जिस देश की आर्थिक स्थिति दयनीय होगी, वहाँ का प्रशासन भी भ्रष्ट होगा. वास्तव में, आर्थिक व्यवस्था प्रशासन को अपने रूप में ढाल लेती है.  यह निर्विवाद है कि जो देश गरीब रहेगा वह प्रशासकीय कर्मचारियों को उतना वेतन नहीं दे सकता जिससे वे सारी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें. यद्यपि उन्हें अपने वेतन के अनुसार ही अपनी आवश्यकताएँ बनाकर रखनी चाहिए, तथापि व्यवहार में ऐसा संभव नहीं होता. वे भी आरामपूर्ण जीवन व्यतीत करना पसंद करते हैं. फिर, जब आसानी से उन्हें नाजायज तरीके से पैसे की प्राप्ति हो सकती है तो फिर दुःखभरा जीवन क्‍यों व्यतीत करें? यह मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति कर्मचारियों को भ्रष्ट करने में काफी सहायक सिद्ध हुई है. यह बात भी सही है कि प्रशासन में ऐसे लोगों की ही संख्या अधिक है जो अपने वेतन से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकते; अतः वे घूस लेने के लिए बाध्य हो जाते हैं.

राजनीतिक कारण (Political Causes)

भ्रष्टाचार का मुख्य कारण देश की राजनीतिक व्यवस्था है. राजनीतिक दलों के कारण भी भ्रष्टाचार फैलता है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता. भारत में भी भ्रष्टाचार फैलाने में राजनीतिक दल बहुत अधिक सहायक रहे हैं. भारत में प्रशासन की बागडोर बड़े-बड़े राजनीतिक नेताओं के हाथों में है, जिन्होंने भारत में स्वतंत्रता-संग्राम में बहुत त्याग किया था, अतः वे इस बात का दावा करते हैं कि वे आराम और विलासितापूर्ण जीवन के अधिकारी हैं और देश के विकास का भार अब नई पीढ़ी के छोटे लोगों को वहन करना है. अशिक्षित नेतृत्व ने भी भ्रष्टाचार को विकसित करने में काफी सहायता पहुँचाई है. अपने अज्ञान के ही कारण मंत्रियों को प्रशासकों पर काफी निर्भर रहना पड़ता है जो उनकी कमजोरी से लाभ उठाते हैं. वे उन्हें भ्रष्ट बनने से नहीं रोकते, बल्कि स्वयं भी उसी पथ के पथिक हो जाते हैं. यह वास्तव में भारी अयोग्यता ही कही जाएगी कि हमलोग मंत्रियों के उत्तरदायित्व को निभाने के लिए योग्य व्यक्तियों को नहीं खोज सकते. ऊँचे स्तर पर भ्रष्टाचार का एक कारण यह भी बताया जा सकता है कि मंत्रियों और व्यापारियों में सीधा संपर्क होता है. एक लेखक का ठीक ही कहना है, “भ्रष्टाचार का सबसे गंभीर कारण यह है कि राजनीतिक शक्ति प्राप्त करनेवाले व्यक्ति और राष्ट्रीय संपत्ति को नियंत्रित करनेवालों में घनिष्ठ संबंध पाया जाता है. राजनीतिक नेताओं और बड़े व्यवसायियों के बीच की इस संधि ने एक ऐसे वातावरण को जन्म दिया है, जिसमें एक बड़े दैमाने के भ्रष्याचार के लिए राजनीतिक क्षेत्र पर आक्रमण करना संभव हो गया है,”

शक्ति के प्रति आसक्ति के कारण भी राजनीतिज्ञों में भ्रष्टाचार की वृद्धि होती है, क्योंकि वे भ्रष्ट साधनों का प्रयोग करके भी शक्ति प्राप्त करने में नहीं हिचकते हैं. सरकार में भ्रष्टाचार के विकास का एक कारण यह भी है कि मंत्रियों और पदाधिकारियों के साथ समान व्यवहार नहीं रखा गया है. जहाँ पदाधिकारियों के बीच शुद्धता स्थापित करने के लिए अनेक विस्तृत नियम निर्मित किए गए हैं, वहाँ मंत्रियों के लिए एक भी नहीं.” अनेक जाँच आयोगों ने भी इस बात की पुष्टि की है. राजनीतिक दलों द्वारा निर्वाचन कोष में धन जमा करने की प्रवृत्ति भी भ्रष्टाचार को विकसित करने में कम सहायक नहीं रही है. दल की विजय के लिए मंत्रियों द्वारा जिस ढंग से पैसे इकट्ठे किए जाते हैं, उसे उचित नहीं कहा जा सकता. राजनीतिक दलों का संगठित पाया चुनाव के समय विशेष रूप से उभरता है प्रत्येक दल भ्रष्ट तरीकों से चुनाव जीतना चाहता है.

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