लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने के प्रश्न पर, गृह मामलों की संसदीय समिति ने राज्यसभा में एक रिपोर्ट सौंपी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2011 की जनगणना के अनुसार, केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में जनजातीय आबादी 2,18,355 है, जो कुल 2,74,289 आबादी का 79.61 प्रतिशत है।
समिति सिफारिश करती है कि 5वीं या छठी अनुसूची में लद्दाख को शामिल करने की संभावना की जांच की जा सकती है। इसका जवाब देते हुए गृह मंत्रालय ने कहा कि आदिवासी आबादी को पांचवीं/छठी अनुसूची के तहत शामिल करने का मुख्य उद्देश्य उनके समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास को सुनिश्चित करना है, जिसे केन्द्र शासित प्रदेश का प्रशासन अपने निर्माण के बाद से ही देख रहा है।
ज्ञातव्य है कि पिछले महीने लेह और कारगिल में भारी विरोध प्रदर्शन हुए थे, जिसमें कई लोगों ने छठी अनुसूची के तहत विशेष दर्ज के साथ-साथ लद्दाख को राज्य का दर्जा देने की मांग की थी।
मांग क्यों?
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2019 में अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग करके संघ शासित प्रदेश दर्जा दे दिया गया था, लेकिन लद्दाख में विधानसभा के गठन का प्रावधान नही किया गया। जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के पहले लद्दाख से 4 विधायक जम्मू-कश्मीर विधानसभा में प्रतिनिधित्व करते थे, लेकिन 2019 से लद्दाख का प्रशासन नौकरशाहों के हाथों में ही रहा है।
इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर की तर्ज पर लद्दाख में भी अधिवास (Domicile) नियमों में बदलाव की आशंका भी बनी हुई है, यही कारण है कि अब लद्दाख के सांसद यहाँ की विशेष संस्कृति, भूमि अधिकारों का संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए इसे छठी अनुसूची में शामिल करने के अलावा पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग भी कर रहे हैं। शिया मुस्लिम बहुल कारगिल क्षेत्र में तो कई संगठनों द्वारा फिर से जम्मू-कश्मीर के साथ मिलाये जाने और विशेष दर्ज को बहाल करने की मांग भी की गई है।
लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल किये जाने की सम्भावना
सितम्बर 2019 में राष्ट्रीय जनजाति आयोग ने भी लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने की सिफारिश की थी लेकिन छठी अनुसूची को केवल पूर्वोत्तर राज्यों के 4 राज्यों के विशेष क्षेत्रों के लिए लाया गया था, तथा संविधान में देश के शेष भागों के जनजातीय क्षेत्रों के लिए पाँचवी अनुसूची में शामिल करने का प्रावधान किया गया है। यहाँ तक लगातार मांग किये जाने के बाद भी अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर को भी छठी अनुसूची मे शामिल नही किया गया है, अत: लद्दाख के इसमें शामिल किये जाने की सम्भावना कम है।
हालाँकि लद्दाख को छठी अनुसूची की परिषदों के समान विशेष दर्जा दिया जा सकता है, वर्ष 2020 में इस सम्बन्ध में लद्दाख के प्रतिनिधियों की केन्द्रीय गृह मंत्री से बैठक भी हुई थी, लेकिन उसके बाद केंद्र सरकार की ओर से कोई कदम नहीं उठाया गया।
संविधान की छठी अनुसूची
संविधान के अनुच्छेद 244 के अंतर्गत छठी अनुसूची में स्वायत्त जिला परिषदों (Autonomous District Councils – ADCs) का गठन करके आदिवासी आबादी की संस्कृति एवं उनके अधिकारों की रक्षा करने का प्रयास किया गया है। भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में वर्तमान में 4 उत्तर पूर्वी राज्यों में 10 स्वायत्त जिला परिषदें शामिल हैं। ये असम, मिजोरम, मेघालय और त्रिपुरा में हैं।
इन ADCs की स्थापना के पीछे तर्क यह है कि ‘भूमि के साथ संबंध आदिवासी या जनजातीय पहचान’ का आधार है। अत: भूमि और प्राकृतिक संसाधनों पर स्थानीय जनजातीय लोगों का नियंत्रण सुनिश्चित कर उनकी संस्कृति तथा पहचान को संरक्षित किया जा सकता है। छठी अनुसूची के तहत राज्यपाल को स्वायत्त जिलों को व्यवस्थित करने, पुनःव्यवस्थित करने का अधिकार दिया गया है।
स्वायत्त परिषदों के अधिकार
छठी अनुसूची के तहत गठित स्वायत्त परिषदों में 5 वर्षों के लिए अधिकतम 30 सदस्य हो सकते हैं, ये परिषदें भूमि प्रबंधन, वन प्रबंधन, ग्राम परिषद के गठन, सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता, विवाह, सामाजिक रीति-रिवाजों, खनन, धन उधार देने, संपत्ति की विरासत तय करने, गाँव और नगर स्तर पर पुलिसिंग से सम्बंधित कानून बना सकती हैं।