[Sansar Editorial] बजट 2021-22: रक्षा बजट विशेषांक

Sansar LochanBudget, Sansar Editorial 2021, Science Tech

वर्षपूँजीगत अनुमानित बजटवृद्धिवृद्धि का %
2019-201,03,394.319,412.1810.01
2020-211,13,734.0010,339.6910.00
2021-221,35,060.7221,326.7218.75
रक्षा सेवाओं में पूंजीगत परिव्यय (रुपये करोड़ में)

केन्द्रीय बजट 2021-22 में रक्षा क्षेत्र के लिए क्या-क्या प्रावधान किये गये हैं, आज इस आर्टिकल में हम उसकी चर्चा करेंगे.

brahmos_missile_transparent

रक्षा बजट से सम्बंधित बजट 2021-2022 में मुख्य बिंदु

  • विदित हो कि केंद्रीय वित्त मंत्री ने एक फरवरी को पेश किए गए बजट में वित्त वर्ष 2021-22 के लिए रक्षा बजट को बढ़ा दिया है. इस बार के बजट में रक्षा बजट को बढ़ाकर 478195.62 करोड़ रुपये किए जाने का प्रावधान किया गया है, जबकि पिछले वर्ष का रक्षा बजट 471378 करोड़ रुपये था.
  • आँकड़े साफ़ बताते हैं कि गत वर्ष की तुलना में 6817.62 करोड़ रुपये की मामूली वृद्धि की गई है, जबकि आज गत वर्ष की तुलना में भारत के समक्ष कई रक्षा चुनौतियाँ विद्यमान हैं.
  • रक्षा बजट में सैन्य आधुनिकीकरण के लिए 135060 करोड़ रुपये निर्धारित किए गए हैं, जबकि गत वर्ष यह राशि 113734 करोड़ रुपये थी.
  • थल सेना को 2020-21 में 33,213 करोड़ रुपये के मुकाबले 36,481 करोड़ रुपये का पूंजी परिव्यय दिया गया है.
  • पूंजीगत व्यय के लिए नौसेना को 33,253 करोड़ रुपये आवंटित किया गया है जो पिछले बजट में 37,542 करोड़ रुपये था.
  • इसी तरह, भारतीय वायु सेना (IAF) को नए प्लेटफार्मों और हथियारों को खरीदने के लिए 53,214 करोड़ रुपये दिए गए हैं. वहीं, 2020-21 के बजट में भारतीय वायुसेना के लिए बजटीय पूंजी परिव्यय 43,281.91 करोड़ रुपये था. कालांतर में संशोधन कर के इसे 55,055 करोड़ रुपये कर दिया गया था.

विश्लेषण

आप जानते ही होंगे कि हाल के दिनों में भारत का अपने पड़ोसी देश चीन के साथ LAC पर जबरदस्त तनाव चल रहा था. वहीं पाकिस्तान की सीमा पर भी खतरे एवं चुनौतियाँ जस के तस हैं. इसके अतिरिक्त समुद्र की ओर से भी भारत को अनेक चुनौतियाँ आये दिन मिलती रहती हैं (चीन सागर). यह भी हम सब जानते हैं कि पाकिस्तान व चीन सहित विश्व के अनेक देश भारत की तुलना में सुरक्षा पर अधिक धन खर्च कर रहे हैं (SIPRI रिपोर्ट याद कीजिए). फिर भी भारत सुरक्षा पर कम धन खर्च कर रहा है. वर्तमान समय में चीन के पास 320 और पाकिस्तान के पास 160 परमाणु हथियार हैं. भारत के पास 150 परमाणु हथियार हैं.

सीमा पर तनाव को मद्देनज़र रखते हुए सैन्य क्रय की विशेष जरूरत थी. सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा ढांचा दृढ करना भी अनिवार्य हो गया है. इसके अतिरिक्त रक्षा क्षेत्र में तकनीकी विकास के लिए भी ज्यादा धन की आवश्यकता थी. वर्तमान सुरक्षा चुनौतियों को देखते हुए यह औसत 2.50 प्रतिशत से अधिक होना चाहिए. ज्ञातव्य है कि वैश्विक रक्षा खर्च का मानक 2.25% है.

भारत का रक्षा बजट भले पाँच लाख करोड़ के निकट आ पहुँचा है, परन्तु अन्य देशों की तुलना में यह अभी भी पर्याप्त नहीं है. रक्षा बजट से सम्पूर्ण देश ही नहीं बल्कि दूसरे देशों के लोग इस बात का कयास लगाते हैं कि भारत की रक्षा तैयारियाँ किस तरह की दृढ़ता की ओर बढ़ रही हैं. हमें नए परिवेश को ध्यान में रखते हुए परंपरागत लड़ाई के साथ साइबर युद्धों की भी तैयारियाँ कर लेनी चाहिए. आज विश्व के विकसित देश इसी ओर अपने कदम बढ़ा रहे हैं और जो देश इसमें पीछे रह जाएगा वे भविष्य में नुकसान भी उठा सकते हैं क्योंकि हम जिन हथियारों को बटोरने में संलग्न हैं आगे जार शायद ही उनकी आवश्यकता पड़े क्योंकि बहुत अधिक संभावना है कि यौद्धिक संक्रियाओं का रुख नवीन युद्ध प्रणालियों की तरफ बढ़ जाएगा.

रक्षा बजट में इन तैयारियों के लिए भी धन निर्धारित किया जाना चाहिए था. रक्षा बजट में की गई नाममात्र की बढ़ोतरी से तीनों सेनाओं के आधुनिकीकरण की योजनाओं के प्रभावित होने की संभावना बनी रहेगी. चीन और पाकिस्तान की तरफ से दी जाने वाली युद्ध की चुनौतियों के लिए भारतीय सेना को हर समय तैयार रखना आवश्यक है.

आगामी वित्त वर्ष के लिए आवंटित 478195.62 करोड़ रुपये में से यदि सेना के पेंशन मद के खर्च को हटा दिया जाए तो 3.62 करोड़ रुपये की धनराशि शेष बचती है जबकि गत वर्ष यह 3.37 करोड़ रुपये मात्र थी.

सरकार की योजना है यह है कि रक्षा क्षेत्र में हमें आत्मनिर्भर बनाना होगा और हम स्वयं उपकरणों का निर्यात करेंगे. ऐसे में तो इतनी रक्षा राशि पर्याप्त नहीं है. 

आने वाले सालों में सेना का खर्च अधिक बढ़ने की आशा है क्योंकि लद्दाख में चीन की चुनौती को देखते हुए लगभग 50000 सैनिकों की तैनाती की जा चुकी है. इसके अतिरिक्त वहाँ टैंकों, विमानों एवं मिसाइलों की तैनाती भी कर दी गई है ताकि युद्ध की स्थिति से निपटा जा सके.

थल सेना

यदि थल सेना की आवश्यकताओं की ओर हम ध्यान दें तो विशाल संख्या में तोपों की खरीद का सौदा किया जा चुका है. अमेरिका से तोपों एवं असाॅल्ट राइफलें खरीदने पर धन खर्च किया जाना अभी शेष है. विशाल संख्या में होवित्जर एम-777, के-9 बज्र होवित्जर एवं धनुश श्रेणी की होवित्जर तोपों की आवश्यकताओं की पूर्ति की जानी है. थल सेना के हेलिकाॅप्टर बेड़े को दृढ़ता प्रदान करने  के लिए हल्के उपयोग वाले हेलिकाॅप्टरों का क्रय किया जाना है.

चीन से लगी उत्तरी एवं पूर्वी सीमा पर ढाँचागत विकास और मद्धम गति से चल रही पर्वतीय डिवीज़न के गठन में तीव्रता लाने की आवश्यकता है जिसके लिए काफी पैसे की जरूरत पड़ेगी.

यही नहीं थल सेना की अन्य आवश्यकताओं में मुख्य युद्धक टैंक टी-90 एमएस की बड़ी संख्या में क्रय किया जाना है. लाखों की संख्या में ए.के.-203 राइफल खरीदे जाने हैं जिन पर करोड़ों रुपये के समतुल्य क्रय होता.

भारतीय सेना को बैरेट्टा स्काॅर्पियो स्नाइपर राइफलों व एम-95 एमएस बैरेट-50 बीएमजी एंटी मैटीरियल राइफलों से लैस होना चाहिए. बुलेट प्रूफ जैकेटों एवं बुलेट प्रूफ हेल्मेटों की आवश्यकताओं को भी पूरा किया जाना है. थल सेना के लिए काॅम्बैट व्हीकल आईसीवी की बड़ी संख्या में आवश्यकता है. एंटी टैंक मिसााइलों व पैदल सैनिकों को जंग के मैदान तक ले जाने वाले एफआईसी वाहनों का क्रय किया जाना अभी भी शेष है. सेना को उच्च क्षमता वाले रेडियो रिले एवं बड़ी मात्रा में लाइट मशीनगनें की भी दरकार है. यह सब आयुध प्रणालियों की खरीद इस बजट से कैसे पूर्ण होंगी, सोचने का विषय है.

वायु सेना

वायु सेना का खर्च सबसे अधिक एवं जरूरी है क्योंकि मिग-27 विमानों के बेड़े अब हमारे पास नहीं हैं. इनके स्थान पर तेजस विमानों के बेड़े तैयार किए जाने हैं. एलसीए तेजस के 83 विमानों को एचएएल से लिये जाने का आर्डर अभी हाल ही में दिया गया है जिनकी कीमत 49797 करोड़ रुपये के ऊपर बैठेगी. इसका भुगतान भी किया जाना भी अभी शेष है.

भारत तेजस मार्क-2 को विकसित करना चाहता है और शीघ्रत: वायु सेना में इसे सम्मिलित करना चाहता है, जिसमें बड़ी धनराशि की आवश्यकता होगी. तेजस विमानों का उत्पादन प्रारम्भ करने के अतिरिक्त वायु सेना को हेलिकाॅप्टरों की आवश्यकता है. राफेल विमानों के क्रय का भुगतान किया जाना बाकी है. सुखोई विमानों के बेड़े में वृद्धि करनी है और इसके लिए भारत और रूस के मध्य खरीदारी होनी हैं. चिनूक व अपाचे अभी हमें पूरी संख्या में नहीं मिले हैं. इन पर भी खर्च किया जाना शेष है. ड्रोन विमानों की भी खरीद की जानी है. एस-400 मिसाइल डिफेन्स सिस्टम, एयर डिफेन्स गनों और डोर्नियर विमानों पर भी धन खर्च होगा. नौसेना की आवश्यकताओं में नए बहुउद्देशीय हेलिकाॅप्टर व पनडुब्बी निरोधक बम सम्मिलित हैं. छह पनडुब्बियों के व्यापार से सम्बंधित सौदा  हाल ही में हुआ है. आने वाले समय में पुराने चेतक हेलिकाॅप्टरों की जगह नए हेलिकाॅप्टरों की खरीद की जानी है जो इस बजट से सम्भव नहीं है.

जल सेना

अरिहन्त श्रेणी की पनडुब्बियाँ, अकुला श्रेणी की परमाणु अटैक करने वाली पनडुब्बियाँ, एसएसएन श्रेणी की परमाणु पनडुब्बियाँ की संख्या में वृद्धि की जानी है. प्रोजेक्ट-75 के अंतर्गत भी कुछ पनडुब्बियों का निर्माण किया जाना है. एस-5 क्लास की एसएसबीएन परमाणु पनडुब्बियां भी चुनौतियों के हिसाब से चाहिए. मात्र यही नहीं, आने वाली पीढ़ी की मिसाइल पोत भी तैयार की जा रही हैं.

नौसेना को युद्ध पोतों का ब्रह्मोस मिसाइलों का बेड़ा  शीघ्रतन चाहिए. यदि मिसाइल क्षेत्र पर गौर फरमाया जाए तो आकाश मिसाइलों के उत्पादन में वृद्धि शेष है, क्योंकि इन मिसाइलों की तैनाती चीन सीमा के निकट लद्दाख क्षेत्र में कर दी गई है. नई पीढ़ी की आकाश मिसाइलों को विकसित किया जाना है. आकाश व ब्रह्मोस मिसाइलों के निर्यात किए जाने की आशा है, इसलिए निर्माण में तीव्रता लानी होगी और इन सभी कार्यों के लिए धन की आवश्यकता है.

Spread the love
Read them too :
[related_posts_by_tax]