[Sansar Editorial] कौन हैं ब्रू शरणार्थी? त्रिपुरा और मिजोरम सरकार का ब्रू-रियांग समझौता

Sansar LochanSansar Editorial 2020, Uncategorized

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में 16 जनवरी को दिल्ली में भारत सरकार, त्रिपुरा और मिजोरम सरकार और ब्रू-रियांग प्रतिनिधियों के बीच में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. यह समझौता मिजोरम के ब्रू-रियांग शरणार्थियों को त्रिपुरा में बसाने के लिए चार पक्षीय समझौता है. इस नए समझौते से करीब 23 वर्षों से चल रही बड़ी मानव समस्या का स्थाई समाधान किया जाएगा और करीब 34,000 व्यक्तियों को त्रिपुरा में बसाया जाएगा. समझौते के अवसर पर मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरामथंगा, त्रिपुरा के मुख्यमंत्री विप्लव कुमार देव, नॉर्थ-ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस के अध्यक्ष हेमंत शर्मा भी सम्मिलित थे.

यह ऐतिहासिक समझौता उत्तर-पूर्व की प्रगति और क्षेत्र के लोगों के सशक्तिकरण के लिए प्रधानमंत्री मोदी के दृष्टिकोण के अनुरूप है. इस मौके पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारत सरकार ने लम्बे समय से हजारों की संख्या में प्रताड़ित लोगों को फिर से बसाने का स्थाई समाधान निकाल लिया है.

इस समझौते के अंतर्गत केंद्र सरकार ने ब्रू-रियांग को फिर से बसाने के लिए त्रिपुरा, मिजोरम राज्य सरकारों और ब्रू-रियांग प्रतिनिधियों से विचार-विमर्श कर एक नई व्यवस्था बनाने का निर्णय लिया. इसके अंतर्गत वह सभी ब्रू-रियांग परिवार जो त्रिपुरा में ही बसना चाहते हैं, उनके लिए त्रिपुरा में ही व्यवस्था करने का फैसला किया गया है. इन सभी लोगों को राज्य के नागरिकों के सभी अधिकार दिए जाएँगे. वे केंद्र और राज्य सरकारों की सभी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठा सकेंगे. इस नए समझौते के बाद वे ब्रू-रियांग परिवार अपना सर्वांगीण विकास करने में समर्थ होंगे. इस नए समझौते को करने के लिए भारत सरकार को त्रिपुरा और मिजोरम सरकारों के साथ ही ब्रू-रियांग प्रतिनिधियों का पूरा समर्थन मिला है.

उत्तर-पूर्व की बड़ी समस्याओं को तीव्र गति से हल किया जा रहा है. ब्रू-रियांग समझौता त्रिपुरा के लिए एक दूसरा महत्वपूर्ण कदम है. आशा है कि जल्द ही पूरे उत्तर पूर्व में पूर्व शांति बहाल कर इस क्षेत्र का पूर्ण विकास किया जाएगा.

प्रधानमन्त्री ने ब्रू-रियांग शरणार्थियों को त्रिपुरा में स्थाई रूप से बचाने के लिए किए गए समझौते का स्वागत किया. उन्होंने कहा कि इस कदम से ब्रू-रियांग शरणार्थियों को बहुत मदद मिलेगी. प्रधानमंत्री ने कहा कि ब्रू-रियांग शरणार्थियों को सरकार के अनेक कार्यक्रमों का लाभ मिलेगा.

ब्रू-रियांग समझौते के तहत क्या-क्या प्रावधान किये गये हैं?

दिल्ली में 16 जनवरी को हुए ब्रू-रियांग समझौते के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने करार के अलग-अलग बिंदुओं के बारे में जानकारी दी. यह समझौता करीब 23 वर्षों से चली आ रही बड़ी मानव समस्या का स्थाई समाधान निकालता है. इसके जरिए करीब 34,200 ब्रू शरणार्थियों को त्रिपुरा में बसाया जाएगा. 1997 में जातीय तनाव के कारण करीब 5,000 ब्रू-रियांग परिवारों ने मिजोरम से त्रिपुरा में शरण ली. इन लोगों को वहाँ कंचनपुर, उत्तरी त्रिपुरा और अस्थाई शिविरों में रखा गया.

  • समझौते के तहत अब इन लोगों को त्रिपुरा में स्थाई तौर से बसाया जाएगा.
  • नई व्यवस्था के तहत विस्थापित परिवारों को 40×30 फीट का आवासीय प्लॉट दिया जाएगा.
  • प्रत्येक परिवार को आर्थिक सहायता भी दी जाएगी.
  • हर परिवार को 4 लाख रु. फिक्स डिपाजिट में दिए जाएँगे.
  • 2 साल तक ₹5,000 प्रतिमाह नकद सहायता दी जाएगी.
  • 2 साल तक मुफ्त राशन दिया जाएगा.
  • मकान बनाने के लिए डेढ़ लाख रुपए दिए जाएंगे.
  • इस नई व्यवस्था के लिए त्रिपुरा सरकार भूमि की व्यवस्था करेगी.
  • नए समझौते के तहत 600 करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता केंद्र सरकार की ओर से दी जाएगी.
  • ब्रू-रियांग शरणार्थियों को त्रिपुरा राज्य में रहने वाले नागरिकों के सभी अधिकार दिए जाएँगे.
  • उन्हें त्रिपुरा की वोटर लिस्ट में शामिल किया जाएगा.
  • वे केंद्र और राज्य सरकारों की सभी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठा सकेंगे.

त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों में शांति के लिहाज से भी यह समझाता बहुत महत्वपूर्ण है. समझौते से त्रिपुरा और मिजोरम के बीच दो दशकों से भी ज्यादा समय से चली आ रही ब्रू शरणार्थी समस्या का समाधान निकल गया है. त्रिपुरा और मिजोरम सरकार ने इस समस्या का समाधान निकालने के लिए केंद्र सरकार का आभार जताया है.

पूर्वोत्तर के राज्यों के तेज विकास की दिशा में यह समझौता मील का पत्थर साबित होगा. केंद्र सरकार की कोशिश है कि पूर्वोत्तर के सभी इलाकों का तेजी से विकास हो. हर इलाके में संपर्क और संचार से जुड़ी सुविधाओं को पहुँचाया जाए. 

ब्रू-रियांग के पुनर्वासन के सन्दर्भ में सरकार के प्रयास

1997 में मिजोरम से त्रिपुरा जाने के बाद से ही भारत सरकार लगातार यह कोशिश करती रही है कि ब्रू-रियांग समुदाय के परिवारों को स्थाई रूप से बसाया जा सके. त्रिपुरा जाने के 6 महीने बाद ही केंद्र सरकार ने इन शरणार्थियों के लिए राहत पैकेज की घोषणा की थी. इसके तहत हर बालिक ब्रू व्यक्ति को 600 ग्राम और नाबालिग को 300 ग्राम चावल प्रतिदिन आवंटित किया जाता था. वहीं पुनर्वास के तहत साल 2014 तक कई बैचों में 1,622 परिवारों को मिजोरम वापस लाया गया.

ब्रू-रियांग विस्थापित परिवारों की देखभाल और उनके पुनर्वास के लिए भारत सरकार समय-समय पर त्रिपुरा और मिजोरम सरकारों की सहायता भी करती रही है. 3 जुलाई, 2018 को भारत सरकार, मिजोरम सरकार, त्रिपुरा सरकार और ब्रू-रियांग प्रतिनिधियों के बीच एक समझौता हुआ था जिसके बाद ब्रू-रियांग परिवारों को दी जाने वाली सहायता में कुछ हद तक बढ़ोतरी की गई थी. समझौते के तहत 5,407 ब्रू परिवारों के 32,876 लोगों के लिए 435 करोड़ का राहत पैकेज दिया गया. इसमें हर परिवार को 4 लाख रु. की फिक्स्ड डिपाजिट, घर बनाने के लिए 1.5 लाख रुपए, 2 साल के लिए मुफ्त राशन और हर महीने ₹5,000 दिया जाना शामिल था. इसके अतिरिक्त त्रिपुरा से मिजोरम जाने के लिए मुफ्त ट्रांसपोर्ट, पढ़ाई के लिए एकलव्य स्कूल, डोमिसाइल और जाति प्रमाण पत्र मिलना था. ब्रू लोगों को को मिजोरम में वोट डालने का हक मिलना तय हुआ था. लेकिन यह मूर्त रूप नहीं ले सका क्योंकि अधिकतर विस्थापित ब्रू लोगों ने मिजोरम वापस जाने से इनकार कर दिया था.

इस समझौते के बाद साल 2018-19 के बीच में दोबारा 328 परिवार, जिसमें 1369 लोग थे, उन्हें त्रिपुरा से मिजोरम वापस लाया गया. हालांकि अधिकांश ब्रू-रियांग परिवारों की यह मांग थी कि ब्रू समुदाय की सुरक्षा चिंताओं के मद्देनजर उन्हें त्रिपुरा में ही बसा दिया जाए. लिहाजा कई विस्थापित ब्रू लोगों ने मिजोरम वापस जाने से इनकार कर दिया था. वहीं पिछले साल अक्टूबर के महीने में भी त्रिपुरा के राहत शिविरों में रह रहे 35,000 ब्रू शरणार्थियों को वापस मिजोरम में भेजने की प्रक्रिया का नौवां और आखरी चरण शुरू हुआ. लेकिन मुश्किल से 860 ही वापस मिजोरम आए. ब्रू शरणार्थियों ने मिजोरम आने का विरोध किया लेकिन दिसम्बर में त्रिपुरा सरकार और ब्रू शरणार्थी मंच के बीच आपसी बातचीत के बाद ब्रू शरणार्थियों ने अपना विरोध वापस ले लिया.

कौन हैं ब्रू शरणार्थी?

ब्रू जनजाति देश के पूर्वोत्तर हिस्से में बसने वाला एक जनजातीय समूह है. हालांकि ब्रू जनजातियों की छिटपुट आबादी पूर्वोत्तर के कई राज्यों में निवास करती है. लेकिन सबसे ज्यादा तादाद में ब्रू समुदाय मिजोरम की मामित और कोलासिब जिले में निवास करते हैं. हालांकि इस समुदाय में भी तकरीबन एक दर्जन उपजातियां आती हैं. कुछ ब्रू समुदाय पूर्वोत्तर भारत के अलावा बांग्लादेश के चटगांव पहाड़ी क्षेत्र में निवास करते हैं. मिजोरम में ब्रू समुदाय को अनुसूचित जनजाति का एक समूह यानी ब्रूस शेड्यूल्ड ट्राइब का एक समूह माना जाता है.

वहीं त्रिपुरा में ब्रू एक अलग जाति समूह है. त्रिपुरा में ब्रू समुदाय को रियांग नाम से पुकारा जाता है. ब्रू  समुदाय की भाषा भी ब्रू है. फिलहाल इस भाषा की अपनी कोई लिपि नहीं है. लेकिन ब्रू लोग जिस राज्य में बसते हैं, वहाँ की भाषाएं भी बोल लेते हैं, जैसे – बंगाली, असमिया या मिज़ो. कुछ ब्रू हिंदी और अंग्रेजी भी बोल लेते हैं. ब्रू पहले झूम खेती करते थे जिसमें जंगल के एक हिस्से को साफ करके वहां खेती की जाती है. फसल पैदा होने के बाद और इसे काटने के बाद जंगल की किसी दूसरे हिस्से में यही कवायद फिर दोहराई जाती है. लिहाजा ब्रू एक बंजारा जाति समूह रहा है.

ब्रू समुदाय का इतिहास

ब्रू समुदाय को अलग-थलग करने और उनके पलायन के पीछे खूनी संघर्ष का इतिहास रहा है. दरअसल ब्रू जनजाति और मिज़ो समुदाय के बीच 1997 में सांप्रदायिक दंगा हुआ था. इस दौरान ब्रू जनजाति और मिज़ो समुदाय के बीच कई हिंसक झड़पें भी हुईं. ब्रू नेशनल लिबरेशन फ्रंट ने एक मिज़ो अधिकारी की हत्या कर दी जिसके बाद दोनों समुदायों के बीच विवाद गहरा गया और दंगे भड़क गए. अल्पसंख्यक होने के कारण ब्रू समुदाय को अपना घर बार छोड़कर त्रिपुरा के शरणार्थी शिविरों में जाकर आश्रय लेना पड़ा. पिछले 23 वर्ष से त्रिपुरा के शरणार्थी शिविरों में ब्रू समुदाय के लोग रह रहे हैं. दो दशक से भी ज्यादा समय से शरणार्थी शिविरों में रह रहे ब्रू जनजाति के लोग लंबे समय से अपने अधिकारों की मांग कर रहे थे.

ब्रू समुदाय मिजोरम का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक आदिवासी समुदाय है. इस समुदाय के करीब 34,000 लोग पिछले 23 सालों से उत्तरी त्रिपुरा की शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं. दरअसल, यह आदिवासी समूह स्वयं को म्यांमार के शान प्रांत का मूल निवासी मानता है. ये लोग सदियों पहले वहन से आकर मिजोरम में बस गए थे. लेकिन 1990 के दशक में इनका बहुसंख्यक मिज़ो लोगों से स्वायत्त डिस्ट्रिक्ट काउंसिल के मुद्दे पर खूनी संघर्ष हुआ था. इसके बाद लगभग 5,000 से अधिक परिवार मिजोरम से पलायन कर गए. मिजोरम की मिज़ो जनजाति ब्रू को बाहरी मानती रही है. हालाँकि कुछ ब्रू शरणार्थी मिजोरम वापस लौटे और इन लोगों को सरकार की ओर से मदद भी दी गई.

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