[Sansar Editorial] BrahMos – ब्रह्मोस मिसाइल के बारे में पूरी जानकारी

Sansar LochanSansar Editorial 2018

ब्रह्मोस का निर्माण हमने रूस के सहयोग से किया है. BrahMos मिसाइल भारतीय सेना को पहली बार 2007 ई. से सौंपी गई थी. अब इसके कई संस्करण तैयार हो चुके हैं.कम ऊँचाई तक बेहतर तरीके से उड़ने वाला ब्रह्मोस का निशाना बिल्कुल अचूक है. यह अमेरिका के Tom Hawk क्रूज मिसाइल से भी बेहतर है. इसे आकाश, धरती या पानी कहीं से भी दागा जा सकता है. चलिए जानते हैं BrahMos के features/विशेषताओं के बारे में और इसमें प्रयोग में लाई जाने वाली तकनीक के बारे में.

brahmos_missile_transparentब्रह्मोस का परिचय

  1. ब्रह्मोस का विकास ब्रह्मोस कोर्पोरेशन ने किया है.
  2. यह भारत के DRDO और रूस के NPO Mashinostroeniya का संयुक्त उपक्रम है.
  3. ब्रह्मोस नाम भारत की नदी ब्रह्मपुत्र और रूस की मस्कवा नदी के नाम पर पड़ा है.
  4. रूस इस परियोजना में प्रक्षेपास्त्र तकनीक उपलब्ध करा रहा है.
  5. उड़ान के दौरान मार्गदर्शन की इसकी क्षमता (navigation power) भारत ने विकसित की है.

विशेषताएँ

  1. यह मिसाइल 3700km/hr के हिसाब से मार सकती है. आमतौर पर इतनी रफ़्तार से उड़ान भरने वाली मिसाइल रडार के कवरेज में नहीं आती है. रडार की कवरेज में नहीं आने की एक और वजह है – इसके अग्र-भाग का non-metallic होना.
  2. इसकी गति ध्वनि की गति से तीन गुणा ज्यादा है.
  3. यह दुनिया की सबसे तेज मारक मिसाइल मानी जाती है.
  4. इसकी गति की दर 2.8 मैक है.
  5. ब्रह्मोस मिसाइल का वजन 3000 kg है.
  6. इसकी लम्बाई 8.4 मीटर है और व्यास 0.6 मीटर है.
  7. इसकी मारक क्षमता 290 km तक है और यह 300 km विस्फोटक अपने साथ ले जा सकता है.
  8. BrahMos एक नियंत्रित क्रूज प्रक्षेपास्त्र है.
  9. BrahMos को जमीन, विमान, पनडुब्बी से छोड़ा जा सकता है.
  10. यह pin point accuracy के साथ टारगेट पर हमला कर सकता है.

भारत ने MTCR यानी अंतर्राष्ट्रीय मिसाइल तकनीक नियंत्रण संधि पर हस्ताक्षर नहीं करने के चलते भारत इस मिसाइल की मारक क्षमता 290 किमी. से अधिक नहीं रख सकता था. लेकिन जून 2016 में भारत ने इस संधि पर हस्ताक्षर कर दिया जिसके चलते अब भारत ब्रह्मोस की मारक क्षमता अपनी जरुरत के अनुसार बढ़ा सकता है.

तकनीक

  1. ब्रह्मोस दो चरणों पर आधारित प्रोपल्शन तकनीक (propulsion technique) के जरिये संचालित किया जाता है.
  2. पहले चरण में ठोस प्रोपेलेंट बूस्टर द्वारा इसे गति दी जाती है.
  3. इसके बाद दूसरे चरण में तरल ईंधन वाली रैमजेट प्रणाली का इस्तेमाल किया जाता है जिससे इसे सुपरसोनिक गति मिलती है.
  4. परम्परागत राकेट प्रोपल्शन की तुलना में रैमजेट प्रोपल्शन तकनीक में ईंधन की तकनीक कम होती है.
  5. ब्रह्मोस में आधुनिक सैटेलाईट नेविगेशन के लिए लम्बी दूरी की KH-555 और KH-101 मिसाइल के साथ GPS Glonass के तकनीक का भी प्रयोग किया गया है.
  6. इसका ईंजन, प्रोपल्शन और लक्ष्य खोजने का सिस्टम रूस ने विकसित किया है.
  7. जबकि डायरेक्शन, सॉफ्टवेर, एयरफ्रेम और फायर कण्ट्रोल सिस्टम का विकास भारत ने किया है.

मेनुवरेबल तकनीक क्या होता है?

कुछ मिसाइल lessuire-guided तकनीक से लैस होती हैं जो लेजर किरणों के आधार पर अपने लक्ष्य को निशाना बनाती हैं. लेकिन अगर लक्ष्य लगातार घूम रहा है या यूँ कहें कि वह स्थिर नहीं है या जगह बदल रहा है तो उसे निशाना बनाने में काफी दिक्कत आती है. ऐसी परिस्थिति में मेनुवरेबल तकनीक काफी मददगार साबित होती है और इसमें ब्रह्मोस अचूक है. इस तकनीक का प्रयोग करके ब्रह्मोस हवा में ही मार्ग बदलने में सक्षम है और गतिमान लक्ष्य को भी यह भेद सकता है.

मेनुवरेबल तकनीक (maneuverable technique) के कारण ब्रह्मोस को vertical और horizontal दोनों तरीके से छोड़ा जा सकता है. भारत में अग्नि 5 और शौर्य मिसाइल में मेनुवरेबल तकनीक का इस्तेमाल किया गया है. लेकिन ब्रह्मोस चूँकि हवा, पानी और जमीन कहीं से भी दागी जा सकती है, इसलिए यह तकनीक BrahMos को ख़ास बना देती है.

Hyper Sonic Version of BrahMos

अभी ब्रह्मोस के hyper sonic version पर काम चल रहा है. इस version का ब्रह्मोस 7 मैक का होगा.

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