क्या IAS ऑफिसर बनना ही आपका एकमात्र लक्ष्य है?

Sansar LochanSuccess Mantra

जिंदगी में कई बार हम ऐसे लक्ष्य तय कर लेते हैं जिनको पाने में हमें खूब मेहनत करनी पड़ती है और खुद को भूलना पड़ता है. दिन-रात एक करके, सही दिशा और मार्गदर्शन के साथ हम सरहद पर तैनात किसी सैनिक से कम प्रतीत नहीं होते. और सच कहिये तो ऐसा होना भी चाहिए. लक्ष्य-प्राप्ति करना कभी भी छोटा या बड़ा नहीं होता. लक्ष्य, लक्ष्य होता है.

आप यह कभी मत सोचिये कि Banking या SSC निकालने वाले छात्र आपसे कम मेहनत करते हैं. किसी भी लक्ष्य को पाने में की गई मेहनत की तुलना करना गलत होगा. पर आज सुबह-सुबह मेरे दिमाग में एक बात आई कि हम-आप दिन रात मेहनत तो कर रहे हैं और यदि ऊपर वाले की कृपा रही तो हम एक दिन कामयाब भी होंगे…पर क्या सफलता पाने से जो ख़ुशी मिलती है, क्या वह ख़ुशी ताउम्र बरकरार रहेगी?

सुख क्षणिक है

सुख क्षणिक है, ऐसा मेरे माता-पिता ने हमेशा सिखाया. सच कहिये तो सुख और दुःख दोनों क्षणिक है. इसलिए तो हमारे जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं. न हम अधिक दिनों तक लगातार खुश रह सकते हैं और न बहुत दिनों तक दु:खी होकर बैठे रह सकते हैं. यदि मान भी लें कि आपने अपनी ज़िन्दगी का अधिकांश भाग सुख में बिताया है तो आपको दुःख झेलने की शक्ति नहीं होगी. जब आपका दुःख से सामना होगा तो आप टूट कर रह जाओगे.

मैं यह बात ऐसे ही नहीं कर रहा हूँ. मेरी जान-पहचान में एक ऐसी लड़की का उदाहरण है जो क्लास 1 से मास्टर्स तक फर्स्ट लायी और गोल्ड मैडल से उसके घर का शो-केस भरा था. उसने जिंदगी में कभी हार तो दूर, दूसरे स्थान पर आने का दुःख भी नहीं झेला था.

जब वह UPSC के लिए appear हुई तो प्रथम प्रयास में ही इंटरव्यू तक पहुँच गई और उसे disqualify कर दिया गया. फिर वह कुछ इस कदर टूटी कि उसे संभालना परिवार वालों के लिए बहुत ही मुश्किल हो गया. उसने दूसरा प्रयास कभी दिया ही नहीं.

उस लड़की की कहानी मैंने आपको इसलिए सुनाई क्योंकि जीवन में सुख और दुःख दोनों जरुरी हैं, यह आपको भी जानना चाहिए. यदि आपको असफलता मिलती है तो उसे experience के रूप में लेकर आगे बढ़ें और सच कहूँ तो असफल लोग यदि फिर से खड़े होते हैं तो उनकी शक्ति दूसरों से कहीं अधिक होती है. हाँ, पर यह जरुर है कि सिर्फ असफल होकर आपको मात्र खड़ा ही नहीं होना है अपितु आपको अपनी असफलता के कारणों को अच्छे से anyalise करके ही खड़ा होना है. आपसे कहाँ गलती हुई, कहाँ आप कमजोर पड़े, आपसे कहाँ चूक हुई…ये सब पता लगा कर आपको एक बार फिर से battle में कूदना है.

आप IAS बन गए, अब क्या?

आपका रिजल्ट आ गया. आप टॉप 10 रैंक लाए. परिवार, कॉलोनी में सब आपको बधाई दे रहे हैं. टीवी पर आपके इंटरव्यू लिए जा रहे हैं. अखबारों में आपका नाम आ रहा है. शहर के लाडले ने कर दिया करिश्मा….शहर के बेटे ने किया कमाल…ऐसे-ऐसे हेडलाइन अखबारों में आ रहे हैं. आप भी इतरा कर इंटरव्यू दे रहे हैं यह कहते हुए कि मैं बहुत  भावुक हूँ, मैंने जो भी किया है अपने parents की ख़ुशी के लिए किया है. मैं देश की सेवा करूँगा, मैं ये करूँगा, वो करूँगा…..आप बिल्कुल एक स्टार-सा feel करते हो उस समय.

हर तैयारी करने वालों को मसूरी में ट्रेनिंग लेने की बहुत ही उत्सुकता और कौतूहल होता है.. वहां क्या होता होगा, कैसे पढ़ाई होती होगी आदि….

आपने ट्रेनिंग ले भी ली और आपको अपना मनचाहा कैडर भी मिल गया. एक बड़ा-सा quarter मिला, गाड़ियाँ मिलीं, नौकर-चाकर मिल गए. इतने बड़े स्टेटस से marriage field में आपकी value भी बढ़ गयी. आपकी वैल्यू बढ़ी या नहीं (दहेज़ funda), यह तो आप ही बताओगे.

सब कुछ अच्छा हो रहा है आपके जीवन में….आपके आस-पास भी दुःख फटक नहीं रहा. पर फिर से मैं ऊपर के टॉपिक पर आना चाहता हूँ. क्या यह सुख आपका ज़िन्दगी भर साथ देगा? आपको मिला भव्य quarter, नौकर-चाकर, ऑफिस में आपको जी-हुजूरी करते बाबू…. आपको जिंदगी भर ख़ुश रखेंगे?

मेरे अनुसार तो नहीं.

सुख चुनते रहें

सुख किसी खाली मैदान में इस तरह बिखरेपड़े हैं जैसे पतझड़ में पेड़ों के पत्ते बिखरे रहते हैं. आपको सिर्फ जाकर उन्हें चुनना है. सुख क्षणिक है हम जानते हैं पर सुख चुनने में कोई बुराई नहीं है. जिस तरह आपने लक्ष्य को पाने के लिए कड़ी मेहनत की, आपने सुख को चुना है. पर वह सुख स्थाई नहीं है. यदि जीवन भर की ख़ुशी चाहिए तो आपको और भी पत्ते चुनने होंगे. इसलिए आपका यह मान लेना कि एक IAS officer बनने के बाद आपको जिंदगी भर की ख़ुशी मिल जायेगी बहुत हद तक गलत है.

देखिये इस couple को…

ias officer yunus and anjum

जो हैंडसम से इंसान खड़े हैं, उनका नाम युनूस है और वह 2010 batch के IAS officer हैं. बगल में स्माइल करती हुई जो महिला खड़ी हैं, उनका नाम अंजुम है जो 2011 बैच की आईपीएस अधिकारी हैं. इस दंपती ने शहीद नायब सूबेदार परमजीत जी की बेटी खुशदीप कौर को गोद ले लिया. सरहद की सुरक्षा कर रहे परमजीत के सीने में गोले लगी और उन्होंने सरहद पर ही प्राण त्याग दिए. 12 साल की बेटी खुशदीप कौर ने जब अपने पिता को अग्नि दी पूरे देश का दिल पीड़ा से विह्वल हो उठा था. युनूस और अंजुम का अपना एक बेटा भी है. उनका कहना है कि अब उनके बेटे को एक बहन भी मिल गई.

इसी तरह हम ख़ुशी को चुनते रहें तो हमारी जिंदगी ख़ुशी से भर जायेगी. लक्ष्य पाना न पाना तो हमारे हाथ में है…पर केवल लक्ष्य पाकर ही जिंदगी समाप्त नहीं हो जाती है.

लक्ष्य को पाएँ…स्वयं को भी खुश करें और अपने माता-पिता को भी गौरवान्वित करें. युद्ध स्थल में अर्जुन जैसे इतने बड़े तीरंदाज़ का भी हाथ काँप गया था जब उसके समक्ष उसके चचेरे भाई का शरीर लक्ष्य के रूप में खड़ा था. फिर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उसके कर्तव्य की याद दिलाई.

आप भी लक्ष्य के लिए डटे रहें. सफलता और असफलता का निर्णय तो समय करेगा. सफल होने पर घमंड न करें. सुख की खोज करें और दुःख का सामना करने के लिए हौसला रखें.

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