[Sansar Editorial] भारत में बैंक विलय और अधिग्रहण का इतिहास – History of Bank Mergers

Sansar LochanBanking, Economics Notes, Sansar Editorial 2018

आज हम इस आलेख में बैंक विलय के विषय में पढेंगे और जानेंगे कि भारत में बैंक विलय और अधिग्रहण का इतिहास (History of Indian Banks’ mergers) क्या रहा है. कोई भी अर्थव्यवस्था बैंक विलय के लिए कब बाध्य हो जाती है, यह भी जानने की कोशिश करेंगे. अभी Bank Merger का topic काफी चर्चा में है. PCA Framework क्या होता है और PCA framework में आने के बाद भारतीय बैंकों के किन अधिकारों पर RBI का नियंत्रण हो जाता है, यह सब इस article में जानने की कोशिश करेंगे in Hindi.

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भूमिका

1969 में इंदिरा गाँधी सरकार ने देश के बैंकिंग सेक्टर की तस्वीर ही बदल डाली थी. पहले 14 और फिर 1980 में कुछ और निजी बैंकों को सरकारी बना दिया गया. इसमें कोई दो राय नहीं है कि बैंकों के अधिग्रहण के बाद दूरदराज के इलाकों और लोगों तक बैंक-व्यवस्था की पहुँच हुई और लोगों को बचत और सरकारी राहत का एक मजबूत और भरोसेमंद तंत्र मिला. लेकिन अब यही सरकारी बैंक परेशानी से जूझ रहे हैं. दिसम्बर 2017 तक इन भारतीय बैंकों में करीब 9 लाख करोड़ रु. से अधिक का NPA हो चुका है जो सरकारी बैंकों की कमर तोड़ रहा है. यदि आप NPA के विषय में नहीं जानते तो इस आर्टिकल को अलग पेज में खोलकर पढ़ लें >> What is NPA in Hindi.

NPA की वजह से बैंकों का घाटा भी बढ़ रहा है. दूसरी समस्या परिचालन लागत की भी है जो घटने का नाम नहीं ले रही है और सेवाओं पर बैंकों का मार्जिन भी लगातार कम हो रहा है. सवाल यह है कि बैंकों को इस परेशानी से कैसे उबारा जाए? इसके चलते सरकार ने बैंकों के विलय के रास्ते पर आगे बढ़ने की कोशिश की है. पिछले साल SBI और उसके सहयोगी बैंकों का विलय एक बड़ा कदम था. इसी कड़ी में अब सरकार कुछ और बड़े बैंकों का विलय कर बैंकिंग व्यवस्था की सूरत बदलने की कोशिश में है. आज हम इस आर्टिकल में बताएँगे कि कौन-से बैंकों के विलय की कोशिशें हो रही हैं. सरकार क्यों यह कदम उठाने जा रही है? NPA इससे कैसे सम्बंधित है?

सार्वजनिक बैंक के कुछ बैंक लगातार घाटे में हैं. इसका इलाज है या तो इन्हें बंद कर दिया जाए या फिर इनका एक-दूसरे से विलय कर दिया जाए. सरकार का विचार है कि घाटे में चल रहे बैंकों को मजबूत बैंकों के साथ मिलाने से हालात सुधर सकते हैं.

बैंकिंग विलय अभी क्यों चर्चा में है?

30 अगस्त, 2019 को भारत सरकार ने कुछ बैंकों का आपस में विलय करने का निर्णय लिया है जिसके फलस्वरूप देश में मात्र 12 सरकारी बैंक रह जाएँगे. विदित हो कि यह संख्या 2017 में 27 हुआ करती थी.

किसका किसमें विलय

  1. पंजाब नेशनल बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ़ कॉमर्स और यूनाइटेड बैंक मिल जाएँगे और यह देश का दूसरा सबसे बड़ा बैंक हो जाएगा.
  2. कैनरा बैंक और सिंडिकेट बैंक मिला दिए जाएँगे.
  3. यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया के साथ आंध्र बैंक एवं कॉर्पोरेशन बैंक का विलय होगा.
  4. इंडियन बैंक इलाहबाद बैंक में मिल जाएगा.

भारत में बैंक विलय का इतिहास

विलय और अधिग्रहण बीते कुछ वर्षों से वैश्विक बाजार में संस्थानों के बीच चर्चा के बड़े मुद्दे बन कर उभर रहे हैं. छोटे या घाटे में चल रहे संस्थानों का आपसी विलय या उनका बड़े संस्थानों में विलय करना दुनिया की हर अर्थव्यवस्था में होता आया है. खासकर बैंकिंग क्षेत्र में भी यह कोई नया विचार नहीं है.

जर्मनी में डूबे हुए कर्ज के चलते घाटे में आये बैंकों का बड़े बैंकों में विलय कर दिया गया था. भारत में भी यह प्रक्रिया वर्षों से अपनाई जा रही है. भारतीय बैंक संघ के आँकड़ों के मुताबिक़ देश में 1985 से अब तक छोटे-बड़े 49 विलय हो चुके हैं. इन विलयों के कुछ महत्त्वपूर्ण उदाहरण निम्नलिखित हैं –

  1. 2017 को भारतीय स्टेट बैंक के सहयोगी बैंकों (State Bank of Patiala, State Bank of Travancore, State Bank of Bikaner and Jaipur, State Bank of Hyderabad, State Bank of Mysore, Mahila Bank) का विलय SBI में हो गया.
  2. 2010 में स्टेट बैंक ऑफ़ इदौर का विलय SBI में हुआ.
  3. 2008 में स्टेट बैंक ऑफ़ सौराष्ट्र का विलय SBI में हुआ.
  4. 2004 में ओरिएण्टल बैंक ऑफ़ कॉमर्स और ग्लोबल ट्रस्ट बैंक के बीच विलय हुआ.
  5. 1993-94 में पंजाब नेशनल बैंक और न्यू इंडिया बैंक का विलय हुआ – इसे दो राष्ट्रीय बैंकों का पहला विलय भी कहा जाता है.

छोटे स्तर पर बैंकों में कई विलय हुए हैं. इसमें हिन्दुस्तान कमर्शियल बैंक का पंजाब नेशनल बैंक में विलय, काशीनाथ भारतीय स्टेट बैंक का SBI में विलय, बनारस स्टेट बैंक का बैंक ऑफ़ बड़ोदा में विलय, HDFC की ओर से Centurion Bank of Punjab में अधिग्रहण, Kotak Mahindra Bank के साथ ING वैश्य बैंक का विलय आदि कई उदाहरण हैं.

सार्वजनिक बैंक

  1. देश में सार्वजनिक क्षेत्र के कुल 21 बैंक हैं.
  2. बैंकिंग सेक्टर का कुल NPA यानी डूब चुके कर्ज में इन बैंकों की हिस्सेदारी 90% है.
  3. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के करीब 8.9 लाख करोड़ रु. डूब चुके हैं.
  4. वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान भारतीय बैंकों को करीब 12 लाख करोड़ रु. के लोन  write off करने पड़े. Write off का अर्थ यह हुआ कि इन बैंकों ने मान लिया कि ये लोन अब कभी भी रिकवर नहीं हो पायेंगे.
  5. इस दौरान देश के सबसे बड़े सार्वजनिक बैंक SBI को 40,196 करोड़ रु. write off करने पड़े.

PCA Framework

PCA का फुल फॉर्म है – Prompt Corrective Action. बैंकों के 2017-18 के वित्तीय नतीजे आने के बाद इन बैंकों की परिसंपत्तियों के पुनर्गठन के लिए सरकार ने एक समिति का गठन किया था. इसके अलावा बढ़ते घाटे और डूबते कर्ज की वजह से सार्वजनिक क्षेत्र के 21 में से 11 बैंक PCA के दायरे में है.

इस फ्रेमवर्क के दायरे में आने के बाद —->

  1. ये बैंक शाखा विस्तार नहीं कर सकते.
  2. RBI इनको लाभांश भुगतान (dividend payment) करने से रोक सकता है.
  3. इन बैंकों द्वारा लोन देने पर भी RBI के द्वारा कई शर्तें लगाई जा सकती हैं.
  4. भारतीय रिज़र्व बैंक इन बैंकों के एकीकरण, पुनर्गठन  और बंद करने की कार्रवाई कर सकता है.
  5. RBI इन बैंकों के प्रबंधन के मुआवजे और निदेशकों के फीस पर प्रतिबंध लगा सकता है.

त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई फ्रेमवर्क (PCA Framework) के उपबंध 1 अप्रैल, 2017 को लागू किये गये थे. लागू होने के तीन वर्ष बाद इस फ्रेमवर्क की समीक्षा होनी है.

बैंक ऑफ़ बड़ौदा

  • जनवरी से मार्च (2018) की तिमाही में 3102.34 करोड़ का कुल घाटा.
  • 2017-18 की तिमाही की तुलना में बैंक का NPA 190% बढ़ा.

IDBI

  • जनवरी से मार्च (2018) की तिमाही में 566.76 करोड़ का कुल घाटा.
  • 2017-18 की तिमाही की तुलना में बैंक का NPA 28% बढ़ा.

इन बैंकों में सिर्फ बैंक ऑफ़ बड़ौदा को छोड़कर बाकी तीन बैंक RBI के PCA Framework में हैं.

Private Vs Public Banks

देश में 1980 से 2000 के बीच दस नए निजी बैंकों को लाइसेंस दिया गया. इसके बाद से बैंकिंग सेक्टर में प्रतिस्पर्धा और सेवाओं में सुधार का माहौल बना. प्राइवेट बैंकों के साथ ATM, मोबाइल बैंकिंग, इन्टरनेट बैंकिंग, SMS अलर्ट आदि जैसी सुविधाएँ भी बाजार में आयीं. इसका असर सरकारी बैंकों के कामकाज पर भी पड़ा और उनके कामकाज करने के तरीके में बुनियादी बदलाव आये.

अभी देश में 21 सार्वजनिक बैंक और 22 निजी बैंक विद्यमान हैं. इसके आलावा 56 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक हैं. देश के मौजूदा बैंकिंग बाजार में करीब 70% सरकारी बैंकों का कब्ज़ा है. Private Banks के प्रतिस्पर्धा में आने के चलते बैंकिंग सेक्टर में खर्च और मुनाफे के बीच की दूरी लगातार कम हो रही है.

एक रिपोर्ट के अनुसार प्राइवेट बैंकों का प्रति कर्मचारी मुनाफा 10.6-12.4% है जबकि सरकारी बैंकों के मामले में यह केवल 5.5%-7.00% के बीच है. देश के सभी सरकारी और निजी बैंकों में कुल मिलाकर 10 लाख अधिक कर्मचारी काम कर रहे हैं. हाल के वर्षों में सार्वजनिक क्षेत्र के हजारों बैंक कर्मचारी निजी क्षेत्र में चले गये. कर्ज देने के मामले में भी सरकारी बैंकों की विकास दर निजी क्षेत्र के बैंकों से कम है. मार्च 2017 में सार्वजनिक बैंकों की कर्ज देने की दर में केवल 0.6% की वृद्धि हुई जबकि प्राइवेट बैंकों की क्रेडिट ग्रोथ रेट मार्च 2017 में 17.1% थी.

बैंक जमा (bank deposit) के मामले में निजी बैंक आगे रहे. मार्च 2017 में सरकारी बैंकों की deposit growth rate 6.5% जबकि प्राइवेट बैंकों की deposit growth rate 19.6% रही.

बैंक विलय से क्या फायदे हैं?

जानकारों का मानना है कि आने वाले समय में बैंकिंग सेक्टर में प्रतिस्पर्धा लगातार बढ़ रही है. ऐसे में छोटे बैंकों का बाजार में टिके रह पाना आसान नहीं होगा. बैंक विलय का एक फायदा प्रबंधन खर्च में कमी है. इससे बैंकों के निदेशक समेत ऊपर के स्तर पर प्रबंधों से जुड़े लोगों की संख्या घट जाएगी. बैंक विलय के बाद प्रस्तावित बैंक में surplus employees की संख्या कम की जा सकती है. एक-दूसरे के संसाधनों का इस्तेमाल किया जा सकेगा. परिसंपत्तियों से होने वाली साझा-आय (mutual income) बैंकों के घाटे को कम करने में मददगार साबित होगी. जानकारों का मानना है कि यदि कोई बैंक लगातार घाटे में है तो उसका किसी अन्य बैंक से विलय होना आवश्यक है. अगर यदि कदम नहीं उठाये जाते हैं तो long-term में यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक साबित हो सकता है.

बैंकों के विलय का लाभ

बैंकों के लिए :-

  1. बड़े बैंक अंतर्राष्ट्रीय मानकों को अपनाने एवं कार्यक्षमता के स्वीकार्य स्तर पर जाकर नवाचारी उत्पादों एवं सेवाओं को उपलब्ध करा सकते हैं.
  2. कुछ सरकारी बैंक देश के एक निश्चित भूभाग में ही सक्रिय हैं. इनका विलय होने से ये अपनी पहुँच को अन्य क्षेत्रों में विस्तार दे सकते हैं.
  3. बड़ा हो जाने पर सरकारी बैंक अधिक से अधिक उत्पाद और सेवाएँ देने में समर्थ हो सकते हैं.
  4. विलय से व्यावसायिक मानकों में सुधार हो सकता है.
  5. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में भी आपस में बहुत नकारात्मक प्रतिस्पर्धा रहती है. विलय होने से यह समाप्त हो जायेगी.
  6. बड़े-बड़े बैंक होने से भारत के बैंकों को विश्व के बाजार में अधिक पहचान और रेटिंग मिलेगी.
  7. विभिन्न बैंकों के बीच में होने वाले लेन-देन की मात्रा घट जायेगी जिस कारण क्लीयरिंग और लेखा-सामंजस्य में समय की बचत होगी.
  8. विलय होने से बैंकों के दैनंदिन कार्यों में बोर्ड के सदस्यों के अनावश्यक हस्तक्षेप में कमी आएगी.
  9. विलय के पश्चात् बैंक कर्मियों की मोल-तोल की शक्ति बढ़ जायेगी.
  10. बैंक कर्मी भविष्य में बेहतर वेतन एवं सेवा-शर्तें प्राप्त कर सकतें हैं.
  11. अलग-अलग बैंकों में कर्मियों को मिलने वाले लाभ और उनकी सेवा-शर्तें अलग-अलग होती हैं. विलय होने से यह असमानता दूर हो जायेगी.

अर्थव्यवस्था के लिए :-

  1. व्यवसाय के संचालन की लागत में कमी.
  2. तकनीकी अकुशलता में कमी.
  3. विलय से देश के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की प्रणाली के साथ-साथ समस्त भारतीय बैंकिंग प्रणाली सशक्त होगी.
  4. विलय होने से बैंक अपनी अल्पावधि तथा दीर्घावधि तरलता की समस्या सरलतापूर्वक व्यवस्थित कर सकते हैं.
  5. विलय होने से बनने वाले बड़े बैंक की बचत बढ़ेगी और उसके लाभ में भी वृद्धि होगी.
  6. विलय के कारण CMD, ED, GM और जोनल मैनेजर के कई पद समाप्त हो जाएँगे और इससे करोड़ों रुपये बचेंगे.
  7. ग्राहकों को एक ही बैंक से कई प्रकार के उत्पाद कम दाम पर उपलब्ध होंगे.
  8. विलय से जोखिम प्रबंधन में भी लाभ होगा.

सरकार के लिए :-

  1. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को पूँजी देने का बोझ हल्का हो जाएगा.
  2. BASEL III के कठोर मानदंडों, विशेषकर पूँजी पर्याप्तता अनुपात (capital adequacy ratio), को पूरा करने में सहायता मिलेगी.
  3. बैंक कम होंगे तो सरकार को उनपर नियंत्रण रखने और उनका अनुश्रवण करने में आसानी होगी.

बैंकों के विलय से जुड़ी चिंताएँ

  • बैंकों और उनके संघों के शीर्षस्थ व्यक्तियों को समंजित करने में समस्या होगी.
  • विलय के कारण कई शाखाओं और ATM तथा नियंत्रक कार्यालयों को या तो बंद करना होगा या उन्हें स्थानांतरित करना पड़ेगा.
  • विलय के कारण कई कर्मी स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति लेंगे और नई बहाली या तो रोक दी जायेगी या कमी की जायेगी. फलतः कई नौकरियाँ जा सकती हैं जिस कारण विधि-व्यवस्था की समस्या तो होगी ही, समाज पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ सकता है.
  • हर बैंक की अपनी कार्यसंस्कृति होती है. विलय होने से इन संस्कृतियों में टकराव हो सकता है.
  • यदि कोई बड़ा बैंक घाटे में होता है तो बैंकिंग उद्योग को भी उतना ही बड़ा धक्का लग सकता है.

जरुर पढ़ें >>

NPA क्या होता है?

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