अशोक मेहता समिति के बारे में जानें – Ashok Mehta Committee

RuchiraPatwari, Polity Notes

पंचायती राज को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए जनता सरकार ने 1977 में अशोक मेहता समिति का गठन किया था. अशोक मेहता समिति (Ashok Mehta Committee) ने 1978 में सरकार को अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत कर दिया.  इसकी निम्नलिखित अनुशंसा (recommendations) थीं –

Recommendations of Ashok Mehta Committee

  1. इस committee ने recommend किया कि पंचायत राज संस्थाओं में तीन स्तर (three-tier) के संगठन के स्थान पर दो स्तर (two-tier) का संगठन होना चाहिए अर्थात् जिला स्तर पर जिला परिषद् और निम्न स्तर पर “मंडल पंचायत (mandal panchayat)” जिसे कई गाँवों को मिलाकर बनाया जाना चाहिए. अशोक मेहता समिति (Ashoka Mehta Committee) ने ग्राम पंचायत (Gram Panchayat) को समाप्त करने की संस्तुति की.
  2.  मंडल पंचायत में 15 members होंगे जो गाँव की जनगणना के आधार पर ग्रामीणों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जायेंगे. इसमें दो महिलाएँ और कृषक-मजदूरों के प्रतिनिधि होंगे. अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए जनसंख्या के आधार पर स्थान सुरक्षित होंगे. इसका अध्यक्ष चुने गए सदस्यों द्वारा इन्हीं में से चार वर्ष के लिए चुना जायेगा. मंडल पंचायत कई गाँवों को मिलाकर लगभग 15,000 और 20,000 तक की जनसंख्या पर होगी.
  3. जिला परिषद् में छः प्रकार के सदस्य होंगे, जिसमें पंचायत समिति के अध्यक्ष, सहकारी समितियों और municipalities के प्रतिनिधि, दो महिला सदस्य, अनुसूचित जाती और जनजाति के सदस्य, 2 coopted सदस्य जिनमें से एक स्थानीय शिक्षक का दूसरा ग्रामीण विकास में रूचि रखने वाला व्यक्ति हो. क्षेत्र के निर्वाचित MLA और MP जिला परिषद् के पड़ें सदस्य होंगे. जिला परिषद् के अध्यक्ष का चुनाव उसके सदस्यों द्वारा 4 वर्षों के लिए किया जायेगा.
  4. पंचायती राज संस्थाओं को कर आरोपण की compulsory रूप से शक्ति प्रदान करनी चाहिए. जिससे ये संस्थाएँ राज्य सरकार के अनुदान पर ही मात्र निर्भर न रह पायें और खुद अपनी आय के स्रोत बना सकें. अशोक मेहता समिति ने कुछ क्षेत्र जैसे – व्यवसाय कर, मकान कर आदि का उल्लेख किया है. इसके लिए constitution में amendment करके इन संस्थाओं को अधिक महत्त्व और अधिकार देनी चाहिए.
  5. यह भी जरुरी है कि राज्य सरकारें राजनीतिक आधार पर पंचायती राज संस्थाओं का विघटन न करें. यदि ऐसा होता भी है तो उन संस्थाओं का चुनाव six months के अन्दर हो जाने चाहिए.
  6. पंचायती राज संस्थाओं (Panchayat Raj Institutions) के चुनावों में राजनीतिक दलों को भाग लेना चाहिए.
  7. सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के हितों की रक्षा और संवर्द्धन के लिए monitoring forum का निर्माण करना चाहिए. इन वर्गों के लिए सामजिक न्याय समितियों का गठन प्रत्येक जिला परिषद् में करना चाहिए, जिससे इनका कल्याण सुनिश्चित हो सके.

अशोक मेहता समिति में बदलाव

अशोक मेहता समिति (Ashoka Mehta Committee) ने बलवंत राय के recommendations में कुछ परिवर्तन किया, लेकिन सरकार ने इसकी एक भी संस्तुति को स्वीकार नहीं किया. आज भी भारत में पंचायत राज व्यवस्था बलवंत राय मेहता समिति द्वारा सुझाए गए recommendations पर ही कार्य कर रही है. 1986 में सिंघवी समिति (L.M.Singhvi Committee) ने पंचायतों के नियमित चुनाव का सुझाव दिया. 1989 में सरकार ने पंचायती राज संस्थाओं में सुधार लाने के लिए 64वाँ संविधान संशोधन विधयेक पारित कराने का प्रयास किया, जो कि पारित नहीं हो पाया (Rajya Sabha में इसे reject कर दिया गया).

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पंचायती राज व्यवस्था

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