देश में बच्चों की शिक्षा की दशा-दिशा का जायजा – ASER 2019 रिपोर्ट

Sansar LochanSansar Editorial 2020

देश में बच्चों की शिक्षा की दशा-दिशा का जायजा लेने से जुड़ी एक रिपोर्ट 14 जनवरी को जारी हुई है. इस रिपोर्ट का नाम है एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट, 2019 अर्ली ईयर अर्थात् “असर/ASER” 2019 अर्ली ईयर्स.

यह रिपोर्ट छोटे बच्चों पर केंद्रित है. इसमें 4 से 8 आयु वर्ग के बच्चों के पूर्व प्राथमिक और प्राथमिक विद्यालयों में नामांकन के बारे में जानकारी है. रिपोर्ट में बच्चों की क्षमताओं से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण विकासात्मक पहलू को लेकर भी जानकारी शामिल है.

असर (ASER) 2019 रिपोर्ट

8 साल तक की उम्र किसी भी मनुष्य के शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक और भावनात्मक विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है. रिपोर्ट में इन सभी पहलुओं की पड़ताल की गई है. असर 2019 रिपोर्ट के लिए देश के 24 राज्यों के 26 जिलों में सर्वेक्षण किया गया. सर्वेक्षण में कुल 1514 गावों, 30,425 घरों और 4 से 8 साल के आयु वर्ग के 36,930 बच्चों को शामिल किया गया. इसके जरिये बच्चों के प्री-स्कूल और स्कूल में नामांकन की स्थिति के बारे में जानकारी ली गई है. इसके लिए बच्चों ने कुछ बौद्धिक, प्रारम्भिक भाषा और गणित के साथ सामाजिक और भावनात्मक विकास की गतिविधियाँ की.

Annual Status of Education Report 2019 के आँकड़े

असर रिपोर्ट 2019 के आँकड़े बताते हैं कि 4 से 8 आयु वर्ग के 90% से अधिक बच्चे किसी प्रकार की शैक्षणिक संस्थान में नामांकित हैं. नामांकन में बच्चों की उम्र के साथ बढ़ोतरी की गई है. सैंपल जिलों में 4 वर्ष के 91.3% और 8 वर्ष के 99.5% बच्चे नामांकित हैं. एक ही उम्र के बच्चे अलग-अलग प्रकार के एक शैक्षणिक संस्थानों में नामांकित हैं. 5 वर्ष के 70% बच्चे आंगनवाड़ी या प्री-स्कूल कक्षाओं में हैं. लेकिन 5 वर्ष के ही 21.6% बच्चे स्कूल में कक्षा एक में नामांकित हैं. उसी तरह 6 वर्ष के 32.8% बच्चे आंगनवाड़ी या प्री-स्कूल कक्षाओं में हैं तो 40.4% कक्षा एक और 18.7% बच्चे कक्षा दो या उससे आगे की क्लास में है.

4 से 8 आयु वर्ग के लड़कों और लड़कियों के नामांकन पैटर्न अलग दिखे. लड़के निजी और लड़कियां सरकारी संस्थानों में ज्यादा नामांकित हैं. उम्र के साथ यह अंतराल और बढ़ता जाता है. 4 और 5 वर्ष के बच्चों में से 56.8% लड़कियां और 50.4% लड़के सरकारी प्री-स्कूल या स्कूल में नामांकित हैं. वहीं 43.2% लड़कियां और 49.6% लड़के निजी स्कूलों में नामांकित हैं. 6 से 8 वर्ष के बच्चों में सभी लड़कियों में से 61.1% लड़कियां और सभी लड़कों में से 52.1% लड़के सरकारी स्कूल में हैं. गौर करने वाली बात यह है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 4 और 5 आयु वर्ग के बच्चों को प्री-स्कूल में होने की सिफारिश करती है 

चूंकि यह रिपोर्ट गांव के बच्चों पर है तो यह जान लें कि सैंपल जिलों में 4 वर्ष के सभी बच्चों में से लगाकर आधे बच्चे और 5 वर्ष के सभी बच्चों में से एक चौथाई से अधिक बच्चे आंगनबाड़ी में नामांकित हैं. इन बच्चों में निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की तुलना में संज्ञानात्मक कौशल और बुनियादी क्षमताएं कम विकसित हिन्. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जिन बच्चों की मां ने 8 या उससे कम वर्षों के लिए स्कूली शिक्षा ली है उन बच्चों का आंगनवाड़ी या सरकारी स्कूल में जाने की संभावना ज्यादा है. यानी जिन बच्चों की मां ने 8 वर्षों से अधिक स्कूली शिक्षा पूरी की है उनके निजी स्कूलों में पड़ने की संभावना अधिक है.

आंगनवाड़ी बहुत बड़ी संख्या में छोटे बच्चों के लिए प्री-स्कूल में जाने से पहले अलग-अलग सुविधा मुहैया कराती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इस नजरिये से आंगनबाड़ी को और मजबूत बनाए जाने की जरूरत है. कम आयु के बच्चों को सीधे प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ाने से भी नुकसान होता है. इस हालात को रोकने की जरूरत है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पढ़ाते या सिखाते समय खेल-आधारित गतिविधियों पर ध्यान देने से बच्चों में याद करने की क्षमता बढ़ती है, तार्किक और रचनात्मक सोच का विकास होता है और समस्या समाधान जैसे कौशल का विकास होता है.

शिक्षा का अधिकार कानून 2009 के मुताबिक बच्चों को 6 साल की आयु में कक्षा 1 में प्रवेश लेना चाहिए. लेकिन देश के कई राज्य 5+ वर्ष की आयु में भी बच्चों को कक्षा 1 में नामांकन की अनुमति देते हैं. सैंपल जिलों के ग्रामों में कक्षा 1 में हर 10 बच्चों में से 4 बच्चे 5 वर्ष से छोटे या 6 वर्ष से अधिक आयु के हैं. कक्षा एक में 41.7% बच्चे 6 वर्ष की RTE एक्ट निर्धारित आयु के हैं, वहीं 36.4% बच्चे सात या आठ पर के हैं और 21.9% बच्चे चार या पांच वर्ष के हैं. सरकारी स्कूलों में कक्षा एक में पढ़ने वाले बच्चों की आयु निजी स्कूलों की कक्षा एक में पढने वाले बच्चों की तुलना में कम है 

अर्ली ईयर्स एनुअल सर्वे ऑफ़ एजुकेशन रिपोर्ट, 2019 में बच्चों की शिक्षा की तस्वीर उजागर की गई है. यह रिपोर्ट 4 से 8 वर्ष तक के बच्चों पर किए गए सर्वे पर केंद्रित है. यह सर्वे देश के 24 राज्यों के 26 जिलों में किया गया. कक्षा 1 से 3 में पढ़ने वाले छात्र छात्राओं की समझ को लेकर किए गए इस सर्वे में ग्रामीण इलाकों के बच्चों को शामिल किया गया है. इनसे बात करके अलग-अलग पैमाने पर बच्चों के ज्ञान को परखा गया है. इस सर्वे में सभी राज्यों के कम से कम 1 जिले को जरूर शामिल किया गया है. जबकि मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से 2-2 जिलों को शामिल किया गया है. इन बच्चों के ज्ञान को समझने के लिए अलग-अलग सवाल इनसे पूछे गए जिसमें शब्दों की पहचान, संख्याओं की समझ को परखा गया.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2019 का प्रारूप

  • सभी प्रकार के शैक्षणिक पहलों और कार्यक्रमों को सक्षम बनाने के साथ ही केंद्र और राज्यों के बीच चलने वाले प्रयासों के बीच तालमेल बैठाने के लिए एक राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के गठन का प्रस्ताव भी किया गया है जिसके अध्यक्ष भारत के प्रधानमंत्री होंगे.
  • इसके साथ ही उच्च शिक्षा में अनुसंधान क्षमता के निर्माण के लिए एक नेशनल रिसर्च फाउंडेशन के निर्माण की योजना गठित करने की बात भी कही गई है.
  • प्रारूप में कहा गया है कि निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों का समानता के आधार पर मूल्यांकन किया जाना चाहिए. इसमें उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने, वयस्कों और आजीवन सीखने वालों की भागीदारी को बढ़ाने के साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में सभी प्रकार की विसंगतियों को समाप्त करने की सिफारिश की गई है.
  • इसके साथ ही भारतीय और शास्त्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के अलावा पाली, फारसी और प्राकृत के लिए तीन नए राष्ट्रीय संस्थानों और एक भारतीय अनुवाद और व्याख्या संस्थान की स्थापना की सिफारिश भी की गई है.
  • नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रारूप में छात्रों, शिक्षकों और शैक्षणिक संस्थाओं में क्षमताओं के आधार पर जरूरी बदलाव पर जोर दिया गया है ताकि इस देश में एक सक्षम और मजबूत शैक्षणिक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण किया जा सके.

अधिक जानकारी के लिए पढ़ें > राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2019

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