[Sansar Editorial] अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AIJS) का प्रस्ताव : एक विश्लेषण

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वर्तमान में जिला न्यायाधीशों और अवर न्याय अधिकारियों की नियुक्ति सम्बंधित राज्य सरकारें किया करती हैं. परन्तु विगत कुछ वर्षों से यह माँग उठी है कि इनकी नियुक्ति के लिए देश में एक समेकित अखिल भारतीय न्यायिक सेवा होनी चाहिए.

स्ट्रेटेजी फॉर न्यू इंडिया@75 (Strategy for New [email protected]) नामक प्रतिवेदन में नीति आयोग ने इसके लिए एक अलग न्यायिक सेवा के गठन की वकालत की है जिसका नाम अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (All India Judicial Service AIJS) होगा. इसके लिए तर्क यह दिया गया है कि ऐसा करने से न केवल न्यायिक पद रिक्तियाँ भरने में सुविधा होगी, अपितु न्यायिक संवर्ग में वंचितों का प्रतिनिधित्व नहीं होने और सर्वोत्तम प्रतिभाओं के नहीं आने की समस्याएँ भी दूर होंगी.

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अखिल भारतीय न्यायिक सेवा

AIJS का विचार सबसे पहले 1958 में भारतीय विधि आयोग के 14वें प्रतिवेदन में प्रस्तावित किया गया था जिसमें जिला न्यायाधीशों के एक एकीकृत संवर्ग के गठन का सुझाव था जिससे कि अधिक प्रतिभावान व्यक्ति इन पदों पर नियुक्त हो सकें.

1961, 1963 और 1965 में सम्पन्न मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलनों में एक अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के सृजन के पक्ष में मंतव्य दिया गया था. यहाँ तक कि पहले, आठवें, ग्यारहवें और सोलहवें विधि आयोगों ने ऐसी सेवा आरम्भ करने का सुझाव दिया था, परन्तु विपक्ष ऐसे प्रस्ताव से सहमत नहीं हुआ.

1977 में संविधान में एक संशोधन करके अनुच्छेद 312 (Article 312) के अंतर्गत एक अखिल भारतीय न्यायिक सेवा का प्रावधान किया गया था.

आजकल AIGS के सृजन के पक्ष में एक तर्क यह दिया जा रहा है कि इस प्रकार की केन्द्रीय सेवा होने से भारत भर में जिला और अवर न्यायिक सेवा में विद्यमान लगभग 5,000 पद भरे जा सकते हैं.

राज्य सरकारें और उच्च न्यायालय AIJS के पक्षधर क्यों नहीं हैं?

राज्यों और उच्च न्यायालयों को डर है कि इस प्रकार की सेवा लागू होने से अवर न्यायाधीशों को नियुक्त करने और उनपर प्रशासन करने की उनकी शक्ति छिन जायेगी.

एक बड़ा तर्क यह दिया जाता है कि राज्य सरकारों ने अपने-अपने राज्य के अन्दर आदेश लिखने और अन्य काम करने के लिए अवर न्यायालयों को स्थानीय भाषाओँ का प्रयोग करने की अनुमति दे रखी है. फलस्वरूप यदि कोई न्यायाधीश किसी दूसरे राज्य में जाता है तो उसे न्यायिक करने में असुविधा हो सकती है.

यह भी आशंका व्यक्त की जाती है कि न्यायिक सेवा को अखिल भारतीय बनाने से राज्य न्यायिक सेवा के अधिकारियों की प्रोन्नति बाधित हो सकती है.

विरोधियों का यह भी कथन है कि अलग-अलग राज्यों में कई स्थानीय कानून एवं प्रथाएँ हैं जिनका पालन अखिल भारतीय सेवा नहीं कर पाएगी और इसके लिए न्यायाधीशों को अलग से प्रशिक्षित करने की आवश्यकता होगी.

सामाजिक न्याय की दृष्टि से की गई आपत्तियाँ

वर्तमान में न्यायिक पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया में कुछ विशेष समुदायों के लिए आरक्षण है. ये समुदाय नहीं चाहेंगे कि AIJS जैसी कोई सेवा बने. उदाहरण के लिए कोई समुदाय किसी एक राज्य में OBC है तो हो सकता है कि वह AIJS के अन्दर OBC नहीं रह जाए. यदि ऐसा होता है तो OBC समुदाय को घाटा होगा.

AIJS के पक्ष में यह एक तर्क दिया जा रहा है कि इससे वंचित समुदायों के प्रतिनिधित्व में कमी को दूर किया जा सकेगा. परन्तु उल्लेखनीय है कि कई राज्य वंचित समुदायों और स्त्रियों के लिए पदों का आरक्षण करते ही हैं.

भाषाई दृष्टि से की गई आपत्तियाँ

अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (All India Judicial Service – AIJS) से नियुक्त होने वाले न्यायाधीश उस प्रदेश की स्थानीय भाषा नहीं जान सकते हैं जहाँ उन्हें पदस्थापित किया जाएगा. जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है कि कुछ राज्य सरकारों ने अपने-अपने न्यायालयों में स्थानीय भाषा के प्रयोग का आदेश दे रखा है. इसलिए अखिल भारतीय न्यायिक सेवा उचित नहीं प्रतीत होती है.

अन्य आपत्तियाँ

अखिल भारतीय न्यायिक सेवा से केंद्र और राज्य में अनबन हो सकती है. अभी ही 9 उच्च न्यायालय इस प्रस्ताव का विरोध कर चुके हैं.

न्यायिक अधिकारियों की प्रोन्नति के मार्ग बहुत सीमित होते हैं और दूसरी ओर, उच्च न्यायालयों में जिला संवर्ग के न्यायाधीशों की नियुक्ति मात्र एक तिहाई पदों पर ही हो पाती है और शेष पद वकीलों से भरे जाते हैं.

निष्कर्ष

अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AIJS) को लागू करना न्यायिक पद रिक्तियों का कोई अच्छा समाधान नहीं है. अच्छा होगा कि ऐसी रिक्तियों के विषय में सम्यक विश्लेषण के उपरान्त ही कोई निर्णय लिया जाए. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दो बार AIJS का सुझाव देने के पश्चात् भी इसका विरोध उच्च न्यायालय और प्रशासन संवर्ग भी कर रहा है. अतः AIJS की रूपरेखा इस प्रकार गढ़ी जाए कि इसकी सारी कमियाँ और इसके प्रति उठाये गये आक्षेपों को दूर किया जा सके.

न्यायाधीशों की नियुक्तियाँ भरीं जाएँ, इसके लिए AIJS के माध्यम से बहुत बड़ी संख्या में न्यायाधीशों की नियुक्ति होनी चाहिए जैसा कि IAS, IPS, IFS और अन्य सिविल सेवाओं के लिए होती है. इसके अतिरिक्त चयन के पश्चात् न्यायिक सेवा के अधिकारी को अपना काम संभालने के लिए समुचित प्रशिक्षण देना भी आवश्यक है. इसमें कोई संदेह नहीं कि आज न्यायिक सेवा में प्रतिभा को प्राथमिकता देना अत्यावश्यक है और यह तभी संभव हो सकेगा जब इसके लिए नियुक्ति की प्रक्रिया को प्रतिस्पर्धात्मक बनाए जाए.

Tags : All India Judicial Service (AIJS) explained in Hindi.

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