भारत सरकार अधिनियम – Government of India Act, 1935

Dr. Sajiva#AdhunikIndia, Indian Constitution, Polity Notes

ब्रिटिश शासन के द्वारा भारतीय जनता को संतुष्ट करने के लिए सन् 1861, 1892, 1909, 1919 और 1935 में कानून पास किये गए लेकिन ये सुधार भारतीय जनता को कभी संतुष्ट नहीं कर सके. 1935 का भारतीय सरकार/शासन अधिनियम (Government of India Act, 1935) भारतीय संविधान का एक प्रमुख स्रोत रहा है. भारत के वर्तमान संविधान की विषय-सामग्री और भाषा पर इस अधिनियम का प्रभाव स्पष्टतय देखा जा सकता है. संघ और राज्यों के बीच शक्ति-विभाजन और राष्ट्रपति के संकटकालीन अधिकारों के सम्बन्ध में व्यवस्था 1935 के अधिनियम जैसी ही है.

1935 का भारतीय शासन/सरकार अधिनियम 

  1. एक अखिल भारतीय संघ की स्थापना की जाएगी जिसमें ब्रिटिश भारत के प्रान्तों के अतिरिक्त देशी नरेशों के राज्य भी सम्मिलित होंगे.
  2. प्रान्तों को स्वशासन का अधिकार दिया जाएगा. शासन के समस्त विषयों को तीन भागों में बाँटा गया –
  1. संघीय विषय, जो केंद्र के अधीन थे;
  2. प्रांतीय विषय, जो पूर्णतः प्रान्तों के अधीन थे; और
  3. समवर्ती विषय, जो केंद्र और प्रांत के अधीन थे.

परन्तु यह निश्चित किया गया कि केंद्र और प्रान्तों में विरोध होने पर केंद्र का ही कानून मानी होगा. प्रांतीय विषयों में प्रान्तों को स्वशासन का अधिकार था और प्रान्तों में उत्तरदायी शासन की स्थापना की गई थी अर्थात् गवर्नर व्यवस्थापिका-सभा के प्रति उत्तरदायी भारतीय मंत्रियों की सलाह से कार्य करेंगे. इसी कारण से यह कहा जाता है कि इस कानून द्वारा प्रांतीय स्वशासन (provincial autonomy) की स्थापना की गई.

  1. केंद्र या राज्य सरकार के लिए द्वैध शासन (dual-government/diarchy) की व्यवस्था की गई जैसे 1919 ई. के कानून के अंतर्गत प्रान्तों में की गई थी.
  2. भारतीय सरकार अधिनियम, 1935 के अंतर्गत एक संघीय न्यायालय (federal court) की स्थापना की गई.
  3. एक केन्द्रीय बैंक (Reserve Bank of India) की स्थापना की गई.
  4. बर्मा और अदन को भारत के शासन से अलग कर दिया गया.
  5. सिंध और उड़ीसा के दो नवीन प्राप्त बनाए गए और उत्तर-पश्चिमी सीमा-प्रांत को गवर्नर के अधीन रखा गया.
  6. गवर्नर-जनरल और गवर्नरों को कुछ विशेष दायित्व (special responsibilities), जैसे भारत में अंग्रेजी राज्य की सुरक्षा, शान्ति, ब्रिटिश सम्राट और देशी नरेशों के सम्मान की रक्षा, विदेशी आक्रमण से रक्षा आदि प्रदान किए गए.
  7. इस कानून के द्वारा भी निर्वाचन में साम्प्रदायिकता प्रणाली का ही उपयोग किया गया पर परन्तु केंद्र और प्रांत दोनों के लिए मत देने की योग्यता में कमी कर दी गई जिसके परिणामस्वरूप मतदाताओं की संख्या बढ़कर 13% हो गई, जबकि 1919 ई. के कानून के अंतर्गत यह केवल 3% थी.

Government of India Act, 1935 के कुछ महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों पर विस्तारपूर्वक विचार करना आवश्यक है, क्योंकि भारत के नवीन संविधान की रुपरेखा का निर्माण बहुत हद तक इसी कानून ने किया.

1935 ka adhiniyam

1935 का भारत शासन अधिनियम के मुख्य उपबंध

1935 का भारत शासन अधिनियम (Government of India Act, 1935) बहुत लम्बा और जटिल था. अधिनियम में 451 धाराएं और 15 परिशिष्ट थे. अधिनियम के इतने लम्बे और पेचीदा होने का मूल कारण यह था कि एक ओर तो भारत में बढ़ती हुई राष्ट्रीयता के कारण भारत के लोगों को सत्ता का पर्याप्त हस्तांतरण आवश्यक हो गया था, दूसरी ओर ब्रिटिश सरकार शक्ति हस्तांतरण के साथ-साथ अपने हितों की रक्षा की पूरी व्यवस्था कर लेना चाहती थी. इस अधिनियम के लिए निम्नलिखित मसविदों की सहायता ली गयी –

  • साइमन आयोग रिपोर्ट
  • सर्वदलीय कांग्रेस (नेहरू समिति) रिपोर्ट एवं जिन्ना का 14 सूत्र
  • तीनों गोलमेज कांग्रेस में हुए वाद-विवाद
  • श्वेत पत्र
  • संयुक्त प्रवर समिति रिपोर्ट
  • लोथियन रिपोर्ट जिसमें चुनाव संबंधी प्रावधानों का विवरण था. इस अधिनियम के तीन प्रमुख अंग हैं –
  1. अखिल भारतीय संघ
  2. संरक्षणों सहित उत्तरदायी सरकार
  3. भिन्न-भिन्न साप्रंदायिक तथा अन्य वर्गों के लिए पृथक प्रतिनिधित्व

मूल्यांकन

जवाहर लाल नहेरू ने इस अधिनियम के सम्बन्ध में हा था कि “यह अधिनियम दासता का घोषणा पत्र है.” वस्तुतः यह एक ऐसा अधिनियम था जिसने भारतीयों को शक्ति देने के बदले सम्पूर्ण शक्ति अंग्रेजों के हाथ में ही रखी थी. इसमें प्रस्तावित संघ की रूपरेखा ऐसी बनायी गयी है कि किसी भी प्रकार का वास्तविक विकास असंभव हो जाए . 1935 के अधिनियम में जिस अखिल भारतीय संघ का प्रस्ताव किया गया था, यद्यपि उसमें संघ के सभी आधारभूत लक्षण जैसे शक्तियों का विभाजन, लिखित और कठोर संविधान एवं निष्पक्ष न्यायिक सत्ता की स्थापना विद्यमान थे, लेकिन इसके साथ ही इसमें कुछ ऐसे गंभीर दोष थे जिनके कारण यह स्वीकार्य नहीं हो सकता था. संघ में आकार, जनसंख्या, महत्त्व और राजनीतिक प्रणाली की दृष्टि से नितान्त भिन्न प्रकार की इकाइयों के मेल का प्रयत्न किया गया था. भारतीय व्यवस्थापिका को विधान में संशोधन करने का अधिकार नहीं था और इससे भी अधिक आपत्तिजनक बात यह थी कि अवशेष शक्तियां गवर्नर के पास थीं.

प्रांतीय व्यवस्थापिका के सभी सदस्य निर्वाचित होते थे और कार्यपालिका को व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी बनाया गया था. मताधिकार का भी विस्तार किया गया था. लेकिन वास्तव में यह सब एक भ्रम मात्र था. गवर्नर जनरल और गवर्नरों के व्यापक व विशेष उत्तदायित्वों के कारण प्रांतीय स्वशासन एक मजाक बनकर रह गया था. प्रांतीय शासन की वास्तविक धुरी मुख्यमंत्री नहीं वरन सम्राट द्वारा नियुक्त और उसका प्रतिनिधि गवर्नर ही था. उपर्युक्त कारणों से ही पंडित जवाहरलाल नहेरू ने इसे “अनैच्छिक, अप्रजातांत्रिक और अराष्ट्रवादी” संविधान की संज्ञा दी तथा इस ऐक्ट को, “अनेक ब्रेकों वाली मगर इंजन रहित मशीन” की संज्ञा दी. बंगाल के मुख्यमंत्री फजल उल हक ने कहा कि, “न तो यह हिन्दू राज है और न ही मुस्लिम राज है.” यद्यपि यह बात नितांत स्पष्ट हो गई थी कि सांप्रदायिक चुनाव प्रणाली भारत के लिए अहितकर है और सबने एक स्वर से इसकी निंदा की थी, फिर भी न केवल इसको कायम रखा गया बल्कि इसका विस्तार भी किया गया. इस अधिनियम में नवीन संविधान के स्वविकसित होने या भारतीयों द्वारा अपने भाग्य का निर्णय करने का कोई प्रबंध नहीं था. यह अधिनियम ब्रिटिश संसद ने बनाया था और भारत की आगे की प्रगति का निर्णायक भी ब्रिटिश संसद ही थी. 1935 के अधिनियम के द्वारा भारत पर ब्रिटिश संसद या भारत मंत्री के नियंत्रण में भी कोई कमी नहीं की गयी. मि. एटली ने ठीक ही कहा था कि, “भारत सरकार अधिनियम, 1935 में भारत के भविष्य की राजनीतिक प्रगति का कोई कार्यक्रम नहीं हैं.

Quick points of 1935 Adhiniyam
  • इसने एक अखिल भारतीय संघ की स्थापना की. (इसे कभी लागू नहीं किया गया)
  • विषयों को तीन सूची में विभाजित किया गया – (संघीय, राज्य और समवर्ती)
  • अवशिष्ट शक्तियां वायसराय को दी गईं.
  • प्रांतों में द्वैध शासन व्यवस्था समाप्त कर दी गई, तथा प्रांतीय स्वायत्तता शुभारम्भ हुआ
  • केंद्र में द्वैध शासन व्यवस्था शुरू कर दी गई
  • अनुसूचित जातियों, महिलाओं और मजदूरों के लिए अलग से निर्वाचन की व्यवस्था कर साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था का विस्तार किया गया.
  • मताधिकार का विस्तार किया गया.
  • RBI अधिनियम 1934 के अनुसार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना की गई.
  • संघीय लोक सेवा आयोग, प्रांतीय लोक सेवा आयोग और संयुक्त लोक सेवा आयोग की स्थापना की गई.

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