बाल गंगाधर तिलक का भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में योगदान

Sansar LochanHistory, Modern History

बाल गंगाधर तिलक

भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन के इतिहास में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का विशिष्ट स्थान है. उग्र राष्ट्रीयता सर्वप्रथम महाराष्ट्र में प्रारम्भ हुई जो तिलक जैसे कर्मठ नेता तथा देशभक्त को पाकर सारे देश में फ़ैल गई.

बाल गंगाधर तिलक का बचपन

तिलक का जन्मस्थान महाराष्ट्र था, जहाँ दो सौ वर्ष पूर्व शिवाजी जैसे राष्ट्र्रीय वीर का जन्म हुआ था. वे चितपावन ब्राह्मण थे और 18वीं शताब्दी के पेशवाओं के वंशज थे. सागर की तरह गंभीर, अप्रतिहत इच्छाशक्ति एवं विलक्षण बुद्धि के तिलक बचपन में कुश्ती लड़ना, व्यायाम करना, शृंगारप्रिय विद्यार्थियों को तंग करना पसंद करते थे. साथ ही, वे मेधावी छात्र थे. 1879 ई. में उन्होंने एल.एल.बी. की परीक्षा पास की; परन्तु वकालत का पेशा उन्हें आकृष्ट नहीं कर सका. तिलक बहुत बड़े विद्वान् और सफल पत्रकार थे. वे संस्कृत, मराठी और अंग्रेजी भाषाओं के प्रकांड पंडित थे. विलक्षण प्रतिभा, प्रकांड विद्वत्ता, महान देशभक्ति एवं अदम्य इच्छाशक्ति ने उन्हें सारे भारत का छत्ररहित सम्राट् बना दिया था. तिलक का विश्वास था कि जो अपनी सहायता स्वयं नहीं करता, उसकी सहायता ईश्वर भी नहीं करते.

गंगाधर तिलक का स्वावलम्बन, सेवा और कष्टसहन

1889 ई. में लोकमान्य तिलक कांग्रेस में प्रविष्ट हुए. उस समय कांग्रेस पर उदारवादियों का प्रभाव था. लोकमान्य तिलक उग्रवादी विचारों के थे. उन्हें उदारवादियों की खुशामदपरस्ती और भिक्षावृत्ति में विश्वास नहीं था. प्रार्थना तथा आवेदनपत्रों में उनकी आस्था नहीं थी. उनका आदर्श था – स्वावलम्बन, सेवा और कष्टसहन.

तिलक जेल गए

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बाल गंगाधर तिलक का कहना था कि कांग्रेस की नरमी और राजभक्ति स्वतंत्रताप्राप्ति के योग्य नहीं. स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, जो केवल प्रस्ताव पास करके और अंग्रेजों के सामने हाथ पसारने से नहीं प्राप्त होगी, प्रत्युत  इसके लिए युद्ध होगा. उदारवादियों और उग्रवादियों में मतभेद हो गया. यह मतभेद इतना तीव्र हो गया कि 1907 ई. में सूरत कांग्रेस का अधिवेशन अशांति तथा उपद्रव के दृश्य के साथ विच्छिन्न हो गया. देशसेवा-सम्बन्धी कार्यों के कारण तिलक को तीन बार जेल की सजा दी गई. जेल में ही उन्होंने सुप्रसिद्ध ग्रन्थों – दि आर्कटिक होम ऑफ़ द वेदाज (The Arctic Home of the Vedas) और गीता रहस्य की रचना की जो उनके व्यापक ज्ञान तथा विचारों के द्योतक हैं. 1908 ई. में उन्हें राजद्रोह के आरोप में छह वर्ष की सजा मिली. 1914 ई. में वे जेल से मुक्त हुए और पुनः देशोद्धार के कार्य में लग गए.

गंगाधर तिलक और गाँधी

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श्रीमती एनी बेसेंट के साथ मिलकर उन्होंने होमरूल आन्दोलन चलाया. 1918 ई. में तिलक इंग्लैंड गए. वहाँ उन्होंने सुधार योजना के सम्बन्ध में कांग्रेस का दृष्टिकोण रखा. सुधार योजना के प्रति उनका दृष्टिकोण महात्मा गाँधी से भिन्न था. यही कारण था कि तिलक को महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन में विश्वास नहीं था. इसके बावजूद उन्होंने महात्मा गाँधी को सहयोग देने का वचन दिया था. 1920 ई. में भारत का यह कर्मठ नेता संसार से उठ गया.

तिलक के कार्यों का मूल्यांकन 

बाल गंगाधर तिलक में उग्र राष्ट्रीयतावादी आन्दोलन के जन्मदाता थे. तिलक का कहना था – “राजनीतिक अधिकार लेने के लिए लड़ना होगा और प्रभावशाली उपायों का रास्ता- विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, स्वदेशी वस्तुओं का प्रचार – अपनाना होगा.” वे यथार्थवादी राजनीतिज्ञ एवं व्यावहारिक व्यक्ति थे. सर्वप्रथम तिलक ने स्वतन्त्रता के लिए रचनात्मक कार्यों एवं सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक एवं धार्मिक सुधारों की ओर ध्यान दिया. उन्होंने नवयुवकों में आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता एवं देशभक्ति की भावना का संचार किया. उन्होंने ही सर्वप्रथम स्वराज्य का नारा लगाया और कहा – स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं उसे लेकर रहूँगा.

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