भारत का जल संसाधन (Water Resources of India)

Sansar LochanGeography, भारत का भूगोल

जल एक अमूल्य प्राकृतिक संसाधन है जो सम्पूर्ण पारिस्थितिक तन्त्र के लिए ही महत्त्वपूर्ण है, पर मानव के लिए इसके विशेष महत्त्व हैं क्योंकि पेय जल, सिंचाई, उद्योग, घरेलू कार्य, ऊर्जा सभी के लिए जल होना जरुरी है.

भारत का वार्षिक जल बजट

  • प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त कुल जल – 4000 अरब घन मीटर
  • वाष्पन से लुप्त होने वाला जल – 700 अरब घन मीटर
  • जमीन द्वारा सोखा जाने वाला जल – 700 अरब घन मीटर
  • बहकर समुद्र में चला जाने वाला जल – 1500 अरब घन मीटर
  • बचा जल – 1120 अरब घन मीटर
  • भूजल भरपाई – 450 अरब घन मीटर
  • भूजल का उपयोग – 370 अरब घन मीटर
  • संचयन के लिए बचा जल – 300 अरब घन मीटर

1500 अरब घन मीटर जल जो समुद्र में बहकर चला जाता है, सम्पूर्ण प्राप्त जल का 37.5% है. उसको नियंत्रित कर के हमें इसका उपयोग सूखा-ग्रस्त क्षेत्रों और देश के अन्य क्षेत्रों के सभी मौसमों में जल उपलब्ध कराने के लिए किया जाना चाहिए. इसके लिए नदियों को जोड़ने और समुचित भंडारण और वितरण के उपाय किए जाने आवश्यक हैं.

जल संसाधन के प्रकार

भारत में जल संसाधनों का स्रोत मुख्य रूप से वर्षा जल ही है. परन्तु कुछ भागों में हिम भी महत्त्वपूर्ण है. पर्वतों पर जमा हिम गर्मियों में पिघलकर नदियों में प्रवाहित होता है. जल संसाधन को निम्न दो भागों में बाँटा जा सकता है –

  1. सतही जल संसाधन (नदियाँ, तालाब, नाले)
  2. भूमिगत जल संसाधन

सतही जल

देश की नदी प्रणाली में 1869 अरब घन मीटर जल होने की संभावना है. सतही जल का मुख्य स्रोत नदी जल ही है. नदी को वाटरशेड भी कहा जाता है. भारत में मुख्यतः 6 नदी बेसिनों में जल वितरित है –

  1. सिन्धु
  2. गंगा
  3. ब्रह्मपुत्र
  4. पूर्वी तट की नदियाँ
  5. पश्चिम तट की नदियाँ
  6. अंत: प्रवाही बेसिन

भूमिगत जल संसाधन

देश में भूगर्भिक जल का विस्तृत भंडार है परन्तु वितरण बड़ा असमान है. चट्टानों की संरचना, धरातलीय दशा, जलापूर्ति दशा आदि कारक भूमिगत जल की मात्रा को प्रभावित करते हैं. भूमिगत जल की उपलब्धि के आधार पर भारत के तीन प्रदेश चिन्हित किये जा सकते हैं –

  1. उत्तरी मैदान (कोमल मिट्टी, प्रवेश्य चट्टानें) – 42% जल
  2. प्रायद्वीपीय पठार (कठोर अप्रवेश्य चट्टानें) – कम जल
  3. तटीय मैदान – पर्याप्त जल

भारत में भूमिगत जल क्षमता का मूल्यांकन केन्द्रीय भूमिगत जल बोर्ड करता है. इसके अनुसार भूमिगत जल का 3/4 भाग सिंचाई में प्रयोग होता है. शेष भाग औद्योगिक और अन्य कार्यों में प्रयुक्त होता है. अभी तक भूमि जल के समपूर्ण संभावित भंडार में से मात्र 37.3% ही विकसित हो पाया है. भारत के विभिन्न राज्यों में भूमिगत जल की उपयोग क्षमता में अत्यधिक भिन्नता मिलती है.

जल संसाधनों का उपयोग

जल संसाधन का बहुविध उपयोग निम्नलिखित है –

  1. कृषि क्षेत्र – जल का प्रमुख उपयोग सिंचाई में होता है. भारत का अधिकांश भाग उष्ण और उपोष्ण कटिबन्ध में स्थित है इसलिए अधिक वाष्पोत्सर्जन के कारण सिंचाई के लिए जल की आवश्यकता पड़ती है.
  2. जल से बिजली उप्तादन – यह ऊर्जा का प्रदूषणरहित और सस्ता स्रोत है. भारत में 84,000 MW जलशक्ति उत्पादन की क्षमता है.
  3. घरेलू जल आपूर्ति – राष्ट्रीय जल नीति के अनुसार, पेयजल की आपूर्ति को सबसे अधिक प्राथमिकता दी गई है.
  4. औद्योगिक उपयोग – औद्योगिक विकास के लिए पर्याप्त जल की आपूर्ति की आवश्यकता है. 2025 तक उद्योगों को 120 अरब घन मीटर जल की आवश्यकता होने का अनुमान है.

जल संसाधनों के उपयोग की समस्याएँ

  1. सभी के लिए पेय जल हेतु स्वच्छ जल का अभाव है.
  2. जलके प्रदूषण या उसकी गुणवत्ता की समस्या है.
  3. पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उ.प्रदेश में जल के अति दोहन की समस्या है.
  4. समुद्र में जाने वाले जल के उपयोग को सुलभ बनाने के लिए तकनीक का अभाव है.

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