संसद की प्रमुख स्थायी समितियाँ (Standing Committees)

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आज हम संसद की प्रमुख स्थायी समितियाँ (Standing Committees) के विषय में चर्चा करेंगे. वैसे यदि आप हमारे ब्लॉग के रेगुलर विजिटर हैं तो आपने हमारा यह पोस्ट जरुर पढ़ा होगा>>> संसदीय प्रक्रिया शब्दावली

भारतीय संसद की प्रमुख स्थायी समितियाँ निम्नलिखित हैं – 

याचिका समिति (The Committee on Petitions)

इस समिति में कम से कम 15 सदस्य होते हैं. लोकसभा अध्यक्ष समिति के सदस्यों का नाम-निर्देशन करता है और समिति का कार्यकाल एक वर्ष है. जनता द्वारा सदन के सम्मुख सामान्य हित से सम्बंधित जो याचिकाएँ प्रस्तुत की जाती हैं यह समिति उन याचिकाओं पर विचार कर सदन के सामने रिपोर्ट देती है.

लोक लेखा समिति (The Public Accounts Committee)

इस समिति का कार्य सरकार के सभी वित्तीय लेन-देन सम्बन्धी विषयों की जांच करना है. समिति में 22 सदस्य होते हैं, जिनमें 15 सदस्य लोकसभा से और 7 सदस्य राज्यसभा से होते हैं. समिति का कार्यकाल 1 वर्ष है और कोई मंत्री इस समिति का सदस्य नहीं होता है. इस समिति की सिफारिशों ने देश के वित्तीय प्रशासन को सुधारने में बहुत अधिक योगदान किया है.

प्राक्कलन समिति (Estimates Committee)

प्राक्कलन समिति कार्य भी शासन पर वित्तीय नियंत्रण करना है. इस समिति का कार्य विभिन्न विभागों के वित्तीय अनुमानों की जांच करना है और यह फिजूलखर्ची रोकने (to stop wasteful expenditure) के लिए सुझाव देती है. इसकी नियुक्ति प्रति वर्ष प्रथम सत्र के प्रारम्भ में की जाती है. समिति में लोकसभा के 30 सदस्य होते हैं और इसका कार्यकाल 1 वर्ष होता है. कोई मंत्री इसका सदस्य नहीं होता है.

विशेषाधिकार समिति (The Committee of Privileges)

इस समिति का कार्य सदन और उसके सदस्यों के विशेषाधिकारों की रक्षा करना है. इस उद्देश्य से यह समिति विशेषाधिकारों के उल्लंघन के मामलों की जांच करती है. इसमें 15 सदस्य होते हैं, जिन्हें सदन का अध्यक्ष मनोनीत करता है.

सरकारी आश्वासन समिति (The Committee on Govt. Assurances)

शासन और मंत्रिमंडल के सदस्यों द्वारा समय-समय पर जो आश्वासन दिए जाते हैं, इन आश्वासनों को किस सीमा तक पूरा किया जाता है, इस बात की जाँच यह समिति करती है. इस समिति का कार्य सदन की प्रक्रिया तथा उसके कार्य-संचालन के नियमों पर विचार करना तथा आवश्यकतानुसार उनमें संशोधन की सिफारिश करना है.

सदन में अनुपस्थित रहने वाले सदस्यों सम्बन्धी समिति (The Committee on absence of members from sitting of the House)

यदि कोई सदस्य सदन की बैठक से 60 या उससे अधिक दिनों तक सदन की अनुमति के बिना अनुपस्थित रहता है, तो उसका मामला समिति के पास विचार के लिए भेजा जाता है. समिति को अधिकार है की सम्बंधित सदस्य की सदस्यता समाप्त कर दे अथवा अनुपस्थिति माफ़ कर दे. इस समिति में 15 सदस्य होते हैं, जिन्हें अध्यक्ष एक वर्ष के लिए मनोनीत करता है.

संसदीय स्थायी समितियाँ क्यों आवश्यक हैं?

  • संसदीय समितियाँ वे मंच हैं जहाँ किसी प्रस्तावित कानून के ऊपर विस्तृत विचार-विमर्श होता है.
  • ऐसी समितियों में विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसदों की संख्या के अनुपात में सांसद लिए जाते हैं.
  • समितियों की बैठक बंद कमरे में होती है और सदस्यों पर दलीय व्हिप नहीं चलता है.
  • संसदीय समितियों में सदनों की तुलना में अधिक व्यापक ढंग से विचार होता है और सदस्य बिना झिझक के अपनी बात रखते हैं.
  • संसदीय समितियों से सांसदों को कार्यकारी प्रक्रिया को निकट से समझने का अवसर मिलता है.

स्थाई समितियों के प्रकार

  1. अधिकांश संसदीय समितियाँ स्थायी होती हैं क्योंकि ये अनवरत् अस्तित्व में रहती हैं और सामान्यतः प्रत्येक वर्ष पुनर्गठित होती हैं.
  2. कुछ समितियाँ किसी विशेष विधेयक पर विचार करने के लिए गठित होती हैं. अतः इन्हें “सिलेक्ट समितियाँ” कहा जाता है. सम्बंधित विधेयक के पारित होते ही यह समिति समाप्त हो जाती है.

संवैधानिक स्रोत

संसदीय समितियों की शक्ति का स्रोत दो धाराएँ हैं –

  1. पहली धारा 105 (Article 105) है जो सांसदों के विशेषाधिकार से सम्बंधित है.
  2. दूसरी धारा 118 (Article 118) है जिसमें संसद की प्रक्रिया और आचरण के विषय में संसद को नियम बनाने के लिए प्राधिकृत किया गया है.
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