नगर निगम या महानगर पालिका के विषय में विस्तृत जानकारी

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भारतवर्ष की स्थानीय संस्थाओं को मोटे तौर से दो श्रेणियों में रखा जा सकता है – i) नगरों की देखभाल करने वाली संस्थाएँ ii) ग्रामीण क्षेत्रों की देख-रेख करने वाली संस्थाएँ. नगरों को देखभाल करने वाली संस्थाओं का वर्गीकरण कुछ इस प्रकार से किया जा सकता है:- i) नगर निगम (Municipal Corporation) ii) नगरपालिका (Municipal Board) iii) नगर-क्षेत्र व सूचित क्षेत्र समितियाँ (Town Area and Notified Area Committees).

नगर निगम (Municipal Corporations)

नगर निगम को ही सिटी कारपोरेशन या महानगर पालिका या महानगर निगम (Municipal Corporation) कहते हैं. भारत में सबसे पहले सन 1687 ई. में मद्रास में कॉर्पोरेशन (नगर निगम) की स्थापना की गई थी. इसके बाद बम्बई और कलकत्ता के नगर निगम संगठित किये गए.

नगर निगमों (महानगर पालिकाओं) का संगठन

प्रत्येक नगर निगम में नागरिकों के द्वारा चुने गए प्रतिनिधि होते हैं. इन प्रतिनिधियों का चुनाव मताधिकार द्वारा होता है. नगर निगम के लिए सभासद (Councilor) की संख्या सरकार द्वारा निश्चित की जाती है. कुछ स्थान विशेष जातियों के लिए सुरक्षित रखे जाते हैं. कुछ विशिष्ट सभासदों का भी चुनाव किया जाता है. इन विशिष्ट सभासदों का चुनाव जनता द्वारा चुने गए सभासद करते हैं. हर 9 सभासद पर एक विशिष्ट सभासद (Councilor) होता है. सभासद होने के लिए यह आवश्यक है कि वह कोई पागल या दिवालिया न हो और महानगर पालिका के किसी लाभ के पद या सरकारी नौकरी में न हो.

प्रत्येक नगर निगम में एक नगरप्रमुख और एक अपर-नगरप्रमुख होता है. नगर प्रमुख के चुनाव के लिए यह आवश्यक नहीं कि वह नगर निगम (Municipal Corporation) का निर्वाचित सदस्य ही हो. उसमें निम्नलिखित योग्यताएँ होनी चाहिए –

  1. उसकी आयु 30 वर्ष से कम न हो
  2. उसमें सभापद के लिए उल्लिखित योग्यताएँ हों
  3. यदि वह सभापद अथवा विशिष्ट सभापद होने के लिए निर्वाचन में हार गया हो तो उसके बाद से 6 माह का समय बीत चुका हो

नगरप्रमुख का चुनाव 1 वर्ष के लिए होता है. इसके अतिरिक्त एक उप-नगरप्रमुख होता है जिसका कार्यकाल महानगर पालिका (Municipal Corporation) कार्यालय के बराबर अर्थात् 5 वर्ष होता है.

विभिन्न समितियाँ

नगर महापालिकाओं के दिन-प्रतिदिन के कार्य-भार को हल्का करने के लिए कुछ समितियों का गठन किया जाता है. इन समितियों में मुख्य हैं :-

i) कार्यकारिणी समिति – कार्यकारिणी समिति में 12 सदस्य होते हैं जिनका निर्वाचन महानगर पालिका अपने सभासदों एवं विशिष्ट सभासदों में से करती है. इस समिति का अध्यक्ष उप-नगरप्रमुख होता है. यह समिति महानगर पालिका के कार्यों को सुचारू रूप से चलाने के लिए उत्तरदायी होती है.

ii) विकास समिति – विकास समिति में भी 12 सदस्य होते हैं. इसमें 10 सदस्य सभासदों और विशिष्ट सभासदों में से निर्वाचित होते हैं.

मुख्य नगर अधिकारी 

प्रत्येक महानगर पालिका के लिए राज्य सरकार एक मुख्य प्रशासकीय अधिकारी की नियुक्ति करती है. यह एक बहुत ही अनुभवी अधिकारी होता है. इसकी नियुक्ति तीन वर्ष के लिए की जाती है और बाद में इसकी कालावधि को बढ़ाया भी जा सकता है. महानगर पालिका, मुख्य प्रशासकीय अधिकारी के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पास करके उसे हटा भी सकती है. महानगर पालिका की कार्यपालिका शक्ति इसी अधिकारी के हाथ में होती है. मुख्य लेखा परीक्षक को छोड़कर अन्य सभी अधिकारी उसके नियंत्रण में कार्य करते हैं. मुख्य नगर अधिकारी के अतिरिक्त महानगर पालिका में अन्य कर्मचारी भी होते हैं जिनमें प्रमुख हैं – उपनगर अधिकारी, सहायक नगर अधिकारी, नगर अभियंता, नगर स्वास्थ्य अधिकारी, मुख्य नगर लेखा परीक्षक.

नगर निगम के कार्य

नगर निगम (Municipal Corporation) मुख्य रूप से 4 प्रकार के कार्य करती है –

1. सार्वजनिक रक्षा – सडकों एवं गलियों का निर्माण व मरम्मत, रौशनी का प्रबंध, जल का प्रबंध, आग से बचाव का प्रबंध आदि.

2. सार्वजनिक स्वास्थ्य – जनता और स्वास्थ्य के लिए भी नगर निगम उत्तरदायी होती हैं जैसे संक्रामक रोगों की रोकथाम, दवाईखानों एवं चिकित्सालयों का प्रबंध आदि.

3. सार्वजनिक शिक्षा

4. सार्वजनिक सुविधाएँ

आय के साधन

नगर निगम (Municipal Corporation) के आय के साधन हैं – संपत्ति कर, सवारी गाड़ियों पर कर, चुंगी, मकान एवं भूमि कर, पानी एवं बिजली कर, सफाई पर कर, शिक्षा शुल्क, मनोरंजन आदि पर कर, राज्य के सहायता, ऋण, व्यापार आदि.

महापलिकाओं पर राज्य सरकार का नियंत्रण

प्रत्येक महानगर पालिका पर राज्य सरकार का नियंत्रण होता है. राज्य सरकार महानगर पालिका (Municipal Corporation) अथवा उसकी किसी भी समिति की किसी भी कार्रवाही के सम्बन्ध में सूचना माँग सकती है. वह महानगर पालिका अथवा उसके किसी विभाग के निरीक्षण हेतु कर्मचारियों को नियुक्त करके रिपोर्ट माँग सकती है. उसे यह भी अधिकार है कि महानगर पालिका को किसी भी कार्य को करने का आदेश दे. यदि सरकार किसी प्रस्ताव को जनहित की दृष्टि से उचित नहीं समझती तो वह उसे लागू होने से रोक सकती है. राज्य सरकार, यदि यह समझती है कि महानगर पालिका अपने कार्यों को ठीक प्रकार से नहीं कर रही है अथवा अपने अधिकार का दुरूपयोग कर रही है तो वह नगर निगम को भंग भी कर सकती है. इस प्रकार यह स्पष्ट है कि महानगर पालिका पर राज्य सरकार का काफी नियंत्रण रहता है और महापलिकाएँ राज्य सरकार की इच्छा के विपरीत कार्य नहीं कर सकती.

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