विदेशी यात्री – Foreign Travellers in Indian History

Dr. SajivaAncient History, History

foreign travellers in india

आज हम भारत के प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक काल में विदेशों से आये यात्रियों की list आपको बताने वाले हैं. ये विदेशी यात्री (foreign travellers) भारतीय इतिहास में बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं. इनमें से कई यात्रियों की किताबें (books) भारत के अमूल्य इतिहास को ताजा करती हैं. उनकी किताबों से हमें पता चलता है कि उस समय भारत की आर्थिक और सामाजिक स्थिति क्या थी. चलिए जानते हैं भारत में उन विदेशी यात्रियों (foreign travellers who came in India) के विषय में.

List of foreign travellers who came in India in Hindi

मैगस्थनीज

मौर्यकालीन इतिहास (Mauryan History) जानने का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत मैगस्थनीज (Megasthenes) द्वारा लिखी गई पुस्तक इंडिका है. मैगस्थनीज यूनानी था, जिसे यूनानी शासक सेल्यूकस ने अपना दूत बनाकर चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा था. वह 302 ई.पू. से 298 ई.पू. तक मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र में रहा. दुर्भाग्यवश उसका मूल ग्रन्थ नष्ट हो गया है, किन्तु बाद के यूनानी यात्रियों – स्ट्रेबो, प्लिनी, एरियन आदि के द्वारा दिए गए उद्धरणों से मैगस्थनीज के विवरण के सम्बन्ध में जानकारी मिलती है. शानबैक ने उसके द्वारा दिए गए विवरण का संग्रह कर अंग्रेजी अनुवाद किया है.

डायमेकस

इसे सीरिया के शासक एंटिओकस प्रथम (Antiochus I) के द्वारा बिंदुसार के दरबार में दूत बनाकर भेजा गया था. स्ट्रेबो के लेखों में हमें डायमेकस के द्वारा दिए गए विवरण प्राप्त होते हैं. उसके विवरण के अनुसार बिंदुसार ने सीरियन नरेश से अंजीर, मीठी शराब और यूनानी दार्शनिक मौर्य दरबार में भेजने को कहा था. सीरियन नरेश ने मीठी शराब और अंजीर तो भेज दी, पर यूनानी दार्शनिक भेजने में असमर्थता व्यक्त की.

डायोनिसियस (Dionysius)

यह मिस्र के राजा टॉलमी फिलाडेल्फस का राजदूत था, जो मौर्य सम्राट् बिंदुसार के दरबार में आया था. डायमेकस की ही भाँति स्ट्रैबो आदि परवर्ती यूनानी लेखकों के विवरणों में इसके तत्कालीन सामाजिक और आर्थिक दशाओं पर उद्धरण मिलते हैं.

फाह्यान

Fahien नामक चीनी बौद्ध यात्री चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय में भारत आया था. इसका मुख्य उद्देश्य बौद्ध ग्रन्थों का अध्ययन और अनुशीलन करना था. धार्मिक प्रवृत्ति का होने के कारण इसने भारत की धार्मिक अवस्था विशेषकर बौद्ध धर्म की स्थिति पर विशेष प्रकाश डाला है. यहाँ तक कि अपने वृत्तान्त में वह भारतीय सम्राट् के नाम का उल्लेख तक नहीं करता. उस समय की सामाजिक व्यवस्था का इसके द्वारा विशेष वर्णन मिलता है.

ह्वेनसांग

यह बौद्ध चीनी यात्री (Chinese traveller) सम्राट हर्षवर्द्धन के शासनकाल में भारत आया था. यह चौदह (629-43 ई.) वर्ष भारत में रहा. उसने लगभग सम्पूर्ण भारत का परिभ्रमण किया. वह कुछ वर्ष सम्राट हर्षवर्धन के दरबार (कन्नौज) में रहा. उसने अपने अनुभवों को “सी-यू-की” नामक पुस्तक में लेखबद्ध किया. ह्वेनसांग (Hwen Ts’ang) का विवरण ऐतिहासिक दृष्टिकोण से कहीं अधिक तथ्यात्मक है.  ह्वेनसांग के अनुसार – सम्राट शीलादित्य (हर्ष) अपने राज्य की 3/4 आय धार्मिक कार्यों पर व्यय करता था, सती प्रथा का चलन था, दंड विधान कठोर था, लोग ईमानदार थे और मांस, प्याज व मद्यपान का सेवन नहीं करते थे, जाति प्रथा कठोर थी. ह्वेनसांग को तीर्थयात्रियों का राजकुमार (prince of pilgrims) कहा जाता है.

इत्सिंग 

I-tsing चीनी (671-95 ई.) बौद्ध यात्री (Buddhist traveller) था. इसने अपनी पुष्तक प्रमुख बौद्ध भिक्षुओं की आत्मकथाएँ में समकालीन भारत का वर्णन किया है.

अलबरुनी

11वीं शताब्दी में महमूद गजनवी का प्रमुख दरबारी उसके साथ भारत आया था. अपने ग्रन्थ “तहकीक-ए-हिन्द” में इसने भारत के सबंध में अपना विस्तृत विवरण दिया है. Alberuni के अनुसार भारतीय समाज 16 जातियों में विभाजित था. उसकी किताब में ब्राह्मणों को विशेषाधिकार, वैश्य जाति की दशा में गिरावट, बाल विवाह, सती प्रथा और विधवा विवाह जैसी कुप्रथाओं का वर्णन है.

मार्को पोलो

मार्को पोलो एक इटली का यात्री (Italian traveller) था जो 13वीं शताब्दी में विश्व भ्रमण के उद्देश्य से निकला और 1292 ई. में भारत के पांड्य राज्य के कयाल बंदरगाह पर आया. उस समय वहाँ पांड्य शासिका रुद्रम्बा देवी शासन कर रही थी. उसने अपने यात्रा वृत्तांत को “The Travels” नामक पुस्तक में लिखा, जिसमें दक्षिण के राज्यों की आश्चर्यजनक आर्थिक समृद्धि, विदेशी व्यापार और वाणिज्य का वर्णन किया गया है. इसने भारत भ्रमण 1292-93 ई. में किया था. इसकी एक अन्य पुस्तक सर मार्कोपोलो की पुस्तक में भारत के आर्थिक इतिहास (Economic history of India) का वर्णन है.

चाऊ जू कुआ

यह चीनी व्यापारी (1225-54 ई) था जिसने चु-फाण-ची नामक पुस्तक  में भारत का व्यापारिक वर्णन किया है.

निकोलो कोंटी

Niccolò de’ Conti विजयनगर आने वाला पहला विदेशी यात्री था. निकोलो कोंटी इटली का निवासी था जिसने विजयनगर साम्राज्य की यात्रा की. वह विजयनगर के राजा देवराय प्रथम के शासनकाल में 1420-21 ई. में पहुँचा. उसने अपनी यात्रा के विवरणों को लैटिन भाषा में लिखा. मूल विवरण खो चुके हैं. उसने विजयनगर साम्राज्य के विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारी दी है. इसने यहाँ के शहर, राजदरबार, प्रथाओं, त्योहारों का वर्णन किया है.

अब्दुररज्जाक

यह फारस का राजदूत था और 1442-43 ई. में विजयनगर के राजा देवराज द्वितीय के दरबार में आया था. उसने अपने विवरण में विजयनगर राज्य के व्यापार, उद्योगों, बन्दरगाहों, कृषि, निवासियों के रहन-सहन और रीति-रिवाजों, खजाने आदि का अच्छा वर्णन किया है. उसने लिखा है, “राजा के महल में कई तहखाने हैं और उनमें सोना इस प्रकार भरा हुआ है कि वह ढेर लगता है.” विजयनगर के विषय में इसने लिखा कि “मैंने पूरे विश्व में इसके समान दूसरा नगर नहीं देखा.”

बारबोसा

पुर्तगाली यात्री (Portuguese traveller) डुआर्ट बारबोसा (Duarte Barbosa) कृष्णदेव राय के समय में विजयनगर की यात्रा पर आया था. यह (1510-16 ई.) पुर्तगाली गवर्नर अल्बुकर्क का दुभाषिया (translator) था. विजयनगर की सामाजिक दशा, अर्थव्यवस्था और राज्य की नीतियों आदि के बारे में उसके द्वारा दिया गया विवरण ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है. कृष्णदेव राय की प्रशंसा करते हुए उसने लिखा है “राजा इतनी स्वतंत्रता देता है कि कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा से आ-जा सकता है.” इसने अपना यात्रा का वृत्तांत The book of Duarte Barbosa” नामक पुस्तक में लिखा है. इसने सती प्रथा का वर्णन है.

डोमिनगोस पेरेज

यह एक पुर्तगाली था जो 1510 ई. में विजयनगर के शासक कृष्णदेव राय के दरबार में आया. उसने अपने यात्रा विवरण में विजयनगर का तथ्यपूर्ण वर्णन किया है. उसने तत्कालीन सामाजिक बुराइयों का वर्णन अपनी पुस्तक डोमिनगोस की कथा (Story of Domingos) में – बलि प्रथा, पशु यज्ञों, सती प्रथा, जातिगत बंधन, वेश्यावृत्ति, देवदासी प्रथा आदि का स्पष्ट वर्णन किया है.

विलियम हॉकिन्स

विलियम हॉकिन्स इंग्लैंड के राजा जेम्स प्रथम द्वारा भेजा गया राजदूत था जो 1608 ई. में जहाँगीर के दरबार में पहुंचा. वह 1611 ई. तक जहाँगीर के दरबार में रहा. यही सवाल कौन बनेगा करोड़पति में पूछा गया था कि जहाँगीर के समय कौन यात्री हेक्टर नामक जहाज से अहमदाबाद आया था और KBC के विजेता  ने सही उत्तर देकर 7 करोड़ जीता था. 🙂

विलियम फिंच

फिंच हाकिंस के साथ ही 1608 में सूरत बंदरगाह पर उतरा था. उसने 17वीं शताब्दी के भारत के व्यापारिक मार्गों, सूरत, बुरहारनपुर, उज्जैन, फतेहपुर सीकरी जैसे विख्यात नगरों, दुर्गों और जेलों, धार्मिक परम्पराओं आदि का विस्तृत वर्णन किया है. सलीम और अनारकली की कथा का उल्लेख करने वाला वह एकमात्र विदेशी यात्री था.

थॉमस रो

ब्रिटिश दूत था, जिसने 1615 ई. में जहाँगीर के साथ मांडू और अहमदाबाद की यात्रा की. उसने मुग़ल साम्राज्य और अपनी यात्रा का विवरण अपनी पुस्तक A voice to East Indies में दिया है. उसने मुग़ल दरबार में होने वाले षड्यंत्रों और भ्रष्टाचार के विषय में लिखा है. यह भारत में चार वर्ष रहा.

बर्नियर 

यह भारत में 1658-1668 ई. के बीच रहा. यह फ्रेंच यात्री (French traveller), जो पेशे से चिकित्सक था, औरंगजेब के शासनकाल में भारत आया. इसने लगभग पूरे भारत की यात्रा की थी. इसने अपने ग्रन्थ “Travels in the Mughal Empire” में तत्कालीन हिंदू-मुस्लिम समाज के तौर-तरीकों और रस्म-रिवाजों और व्यापार-वाणिज्य आदि का सजीव और तथ्यपूर्ण विवरण लिखा है.

इतिहास के सभी नोट्स यहाँ मिलेंगे >> 

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