क्या हैं Equity, IPO, Securities, Bonds? निवेश-शेयर से सम्बंधित जानकारियाँ

Sansar LochanEconomics Notes, Finance

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आज हम Share/शेयर, Bonds/बांड्स, Equity/इक्विटी, IPO/आईपीओ, Venture capitalist/वेंचर कैपिटलिस्ट, Underwriter/अंडरराइटर, Junk Bonds/जंक बांड्स, Bearer bonds/बेयरर बांड्स, Angel Investor/एंजेल इन्वेस्टर, Gilt Edged Securities/गिल्ट एज्ड प्रतिभूतियाँ etc. के विषय में चर्चा करेंगे. ये शब्द तो हम रोज़ अखबारों में पढ़ते हैं मगर कम ही लोग इनके विषय में जानकारी रखते हैं. चूँकि हम विद्यार्थी हैं तो इन शब्दों के अर्थ, इनकी उपयोगिता के बारे में हमें पता होना चाहिए.

यदि मैं कोई चादर बनाने की कंपनी खोलना चाहता हूँ तो मुझे क्या चाहिए होगा?

जमीन– फैक्ट्री बनाने के लिए
श्रम– मशीन और काम करने के लिए मजदूर
पूँजी– कपड़े बनाने की मशीन खरीदने के लिए, धागे, रंग इत्यादि.
उद्यम– इन सभी चीजों को करने के लिए रिस्क लेने के लिए.
  • ये चारों उत्पादन के कारक factors of production कहलाते हैं.
  • मैं स्वयं रिस्क लेने के लिए तैयार हूँ और बहुत आशावादी इंसान हूँ, मुझे लगता है कि मेरी बिजनेस चलेगी ही चलेगी.
  • मगर मुझे तीन चीजों के लिए — जमीन, श्रम  और पूँजी के लिए अपार धन की आवश्यकता है जो कहाँ से आएगी भगवान् जाने.

मुझे कंपनी चलाने के लिए कैश कहाँ से मिलेगा?

  • या तो मैं बैंक की डकैती कर लूँ.
  • या तो मैं कोई कोचिंग खोलकर बच्चों की जेब ढीली कर दूँ और पढ़ाने के नाम पर रोज क्लास में दाँत निकाल कर खड़ा हो जाऊँ.
  • या तो क्रिकेट खिलाड़ी बन जाऊँ और एक-एक विज्ञापन के डेढ़ करोड़ लूँ क्योंकि कुश्ती खिलाड़ी बनने से भारत में कोई मुनाफा है नहीं.

ऊपर के तीनों विकल्पों में दिक्कतें क्या आएँगी?

  • बैंक में डकैती कैसे कर लूँ? न तो मेरे पास इसका कोई अनुभव है और डकैती सच मानिए तो बहुत खर्चीली चीज भी है. इसमें साथ में तीन-चार और आदमी चाहिए, बन्दूक चाहिए, मास्क चाहिए, भाड़े की या चोरी की हुई गाड़ी चाहिए जिसकी डिक्की बड़ी हो….और सबसे बड़ी बात है कि इसमें जेल जाने का रिस्क भी है, इसलिए इसके लिए दिल भी बड़ा चाहिए.
  • कोचिंग खोलना भी कोई खेल नहीं है. उसमें भी जमीन, कैश और उद्द्यम चाहिए.
  • अब इस उम्र में क्रिकेट खिलाड़ी कैसे बनूँ? क्रिकेट तो मैंने बस कॉलेज टाइम तक खेली है. रणजी तो दूर की बात है.

अब, मेरे पास कानूनी रूप से कंपनी स्टार्ट और उसे चलाने के लिए केवल दो रास्ते हैं. पहला है ऋण/उधार और दूसरा इक्विटी (equity).

Debt-vs-Equity-chart

 

मेरी कंपनी को कैसे फाइनेंस किया जाए: ऋण (Debt) या इक्विटी (Equity)

बांड्स के तीन प्रमुख प्रकार हैं…. गिल्ड एज्ड बांड्स/प्रतिभूतियाँ, जंक बांड्स और कूपन बांड्स.

1: Debt- bond

  • आप किसी से भी पैसे ऋण के रूप में ले सकते हो, चाहे बैंक से, या किसी रिश्तेदार से, या मुम्बैया भाई से, या किसी अजनबी से.
  • मैं पेपर में लिखूंगा कि: “जो भी मुझे हज़ार रूपया देगा, उसको मैं 10% वार्षिक ब्याज दूँगा (Rs.100) और पाँच साल के बाद पूरा का पूरा पैसा भी लौटा दूँगा. ये मेरा वचन है”
  • यह एक तरह का सिक्यूरिटी पेपर है जिसको हम बांड/BOND कहते हैं….
  • यदि आपके पास यह बांड है, मैं आपको पैसे लौटाने के लिए सम्पूर्ण रूप से उत्तरदायी हूँ और मैं इस मामले में कुछ भी नहीं कर सकता, कोई धोखा नहीं, कोई छल-कपट नहीं…. भले ही मेरी कंपनी टाटा-बिरला जैसी हो जाए या किंगफिशर जैसी डूब जाए, मुझे आपको हर साल सूद देना ही है और सारे पैसे लौटाने ही हैं.

जंक बांड्स vs गिल्ट एज्ड सिक्यूरिटी

  • ऊपर के केस में मैंने आपको 10% इंटरेस्ट रेट के साथ पैसे लौटाने का वादा किया था. मगर असल जिंदगी में, CRISIL, S&P, Moody’s etc जैसी क्रेडिट रेटिंग कम्पनी होती हैं  जो एक बांड को क्रेडिट रेटिंग देती है. (i.e. क्या मैं आपको पैसे लौटाने के लिए समर्थ हूँ?”) ये रेटिंग एजेंसीज यही चेक करती हैं.
  • उनकी रेटिंग कुछ इस तरह होती हैं —AA,A, BBB, BB,C,D etc. जैसे आजकल सीबीएसई बोर्ड में बच्चों को मिलती हैं.

जंक बांड्स

  • यदि मेरे बांड को “C” or “D” रेटिंग मिलती है, इसका मतलब कि मैं ऋण लायक नहीं हूँ, मैं डिफाल्टर भी हो सकता हूँ, मैं लोन लेकर भाग भी सकता हूँ. इसीलिए मेरे बांड पर कोई समझदार इंसान इन्वेस्ट नहीं करेगा.
  • पर मैं आपको मेरे बांड लेने के लिए कैसे अकार्षित करूँगा? मैं आपको अपने कबाड़ा बांड लेने के लिए कैसे उकसाऊंगा? कोई तो उपाय होगा?
  • या तो शहर में बड़े-बड़े बैनर लगा दूंगा कि आप मुझे हजार रूपया दो, मैं आपको 25% प्रतिशत वार्षिक ब्याज दूँगा.
  • इन बांड्स को “High Yield Bond” भी कहा जाता है क्योंकि इसको लेकर अधिक प्रॉफिट कमाने का ज्यादा चांस होता है.

गिल्ट एज्ड सिक्योरिटीज

  • जैसे मैंने चादर बनाने की फैक्ट्री खोलने के लिए बांड्स बेचने का सोचा….जिससे कोई “बेचारा” फसें और मुझे मदद करे …उसी तरह सरकार को भी फाइनेंस की जरुरत पड़ती है जब वह परेशान होती है, जब टैक्स कलेक्शन कम होता है, आर्थिक संकट का माहौल रहता है तब वह तात्कालिक रूप से लोगों से फण्ड की मदद चाहती है.
  • तब सरकार ट्रेज़री बांड इशू करती है. RBI सरकार की तरफ से ट्रेज़री बांड इशू करती है.
  • मगर गवर्नमेंट मेरी तरह नहीं है, वह पैसा लौटाने के लिए सक्षम है. इसलिए गवर्मेंट के पास higher क्रेडिट रेटिंग रहती है जैसे –(AA). इसलिए उसे आपको अपने बांड खरीदने के लिए उकसाने की जरुरत नहीं है, वह आपको कम से कम रेट पर बांड ऑफर करेगी, जैसे 2%.
  • उसी तरह बड़ी-बड़ी कंपनियां कम इंटरेस्ट रेट पर बांड इशू करती है क्योंकि उन पर आँख मूँद कर लोग भरोसा करते हैं और उनकी क्रेडिट रेटिंग (AA) भरोसेमंद रहती है.
  • यदि आपको रिस्क नहीं लेना है तो आप इनपर इन्वेस्ट करोगे ही करोगे. यही बांड्स  ‘gilt-edged securities’ कहलाती हैं.

बेयरर बांड्स (specially for black money lovers)

  • भारतीय सिनेमा में किडनैपर लड़की को अगवा करके उसके अमीर बाप से 10 लाख रूपया मांगता है और यह भी शर्त रखता है कि नोट्स Rs.5/10/50  के रूप में होना चाहिए….आपको पता है वे ऐसा क्यों करते हैं? क्योंकि उन्हें पैसे आपस में बांटने में आसानी होती है और पुलिस और बैंक्स को अलग-अलग नोट्स में दिए गए अलग-अलग नंबर से उन्हें पकड़ने में मुश्किल होती है.
  • Same way, in Hollywood Spy-thriller movies, the Villain will ask you to pay 10 million dollars in Bearer bonds (बेयरर प्रतिभूति) .
  • बेयरर बांड्स रेगुलर बांड्स के तरह ही होते हैं मगर उनमें “धारक का नाम” नहीं होता. बेयरर बांड्स में कूपन संलग्न होता है. यदि आप पूरे पैसे एक साथ नहीं निकलना चाहते तो कूपन कट कर के मनचाहा अमाउंट निकाल सकते हैं.
  • उदहारण के लिए 100रु. इंटरेस्ट 1 जून, 2016 को दिया जाना है मगर आप जनवरी 2016 को भी कूपन ब्रोकर को बेच सकते हैं. यद्यपि आपको वह पूरे 100रु. नहीं देगा मगर 90 रु. या 95 रु. दे सकता है. ऐसा क्यों? आप खुद सोचिए.
  • खैर यहाँ पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि किसने पैसे निकाले, इसकी ट्रैकिंग कोई नहीं कर सकता है, कौन खरीद रहा है, कौन बेच रहा है….”किसी का भी नाम नहीं है” ….न कोई पता है….और न ही कोई रिकॉर्ड….. ब्लैक मनी लवर्स इन बांड्स को खरीदना बेचना पसंद करते हैं क्योंकि यह गोपनीय होता है.
  • नीचे बेयरर बांड का सैंपल दे रहा हूँ जो Palestine गवर्मेंट का है. इसमें देखिएगा कि इसमें धारक का नाम है ही नहीं और नीचे तीन कूपन संलग्न हैं.

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  • महत्त्वपूर्ण सवाल: सरकार बेयरर बांड इशू क्यूँ करेगी? क्योंकि जब सरकार को पैसे की जरुरत पड़ती है, या कोई इमरजेंसी हो, या युद्ध छिड़ी हो और सैन्य सामग्री खरीदने के लिए और पैसे की जरुरत हो….इसलिए सरकार सामान्य बांड के लम्बे प्रोसेस, जिसमें धारक का पता, उसका स्टेटस, उसका मोबाइल नंबर, उसके सभी डिटेल्स आदि पूछने के पचड़े में नहीं पड़ना चाहती. वह आसान तरीका अपनाती है और बेयरर बांड इशू कर देती है.
  • वैसे सामान्य जीवन में बेयरर बांड लागू नहीं किया जाता. क्योंकि ज्यादातर बांड्स आजकल इलेक्ट्रॉनिक फॉर्मेट (DEMAT) में ही हैं जिसमें बैंक को बस आपको अपना पैन कार्ड और अन्य डिटेल देना होता है जिससे आप बांड/शेयर्स/shares खरीद-बेच सको. इसलिए आजकल काला धंधा करने वाले पेमेंट- सोना, चांदी, हीरा या अन्य कीमती मेटल्स में चाहते हैं ताकि कोई रिकॉर्ड न हो.

2: Equity: IPOs and Shares

  •  अभी तक हमलोगों ने देखा कि हम अपने चादर की फैक्ट्री सेट-अप के लिए फाइनेंस की खोज में पैसे “borrow”कर रहे थे अथवा “ऋण”  ले रहे थे और पैसे की ऐवज़ में इंटरेस्ट भी देने को तैयार थे. (Debt ->Bonds).
  • दूसरा आप्शन मेरे पास यह है कि मैं आपसे पैसे ले लूँऔर बदले में आपको पार्टनरशिप का ऑफर दूँ. यही Equity है.
  • सोचिए मुझे 1 करोड़ रुपये की जरुरत है और मेरे पास सेविंग अकाउंट में पहले से 30 लाख रूपये हैं. इसलिए मैं पेपर में लिखूंगा कि–“ मैं उस इंसान को अपनी कंपनी में 0.0001% का  हिस्सा  दूंगा  जो  भी मुझे  १ हज़ार रूपये  देगा 
  • यह एक सिक्यूरिटी पेपर  जैसा ही हो गया. मगर मैं यहाँ अपनी कंपनी की हिस्सेदारी आपको दे रहा हूँ. हम इसे “Share”कहेंगे.
  • फिर मैं 10,000 ऐसे पेपर्स प्रिंट करूँगा. ये पेपर्स के वैल्यू क्या हैं?
  • 10,000 Papers x Rs.1000 each =1 crore. आई ला…. इतना पैसा ही तो मैं मांगता था रे!!!
  • चूंकि मेरे पास पहले से ही सेविंग अकाउंट में Rs.30 lakhs हैं, मैं 3000 shares खरीद लूँगा. (क्योंकि  3000 papers Rs. 1000 each = 30 lakhs)
  • इसलिए  10,000 कुल शेयर्स जो मैंने प्रिंट किए…उसमें मेरा हिस्सा 3,000 shares का होगा….यानी percentage wise मैं कम्पनी के इक्विटी का  30% का हकदार हुआ.

शयेर होल्डर्स और बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स के रोल

  • चूँकि मैं Company law के निर्देशानुसार शेयर (Equities) इशू कर रहा हूँ…मुझे एक बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स बनाना होगा और शेयर होल्डर्स/share holders के साथ सालाना मीटिंग अरेंज करनी होगी.
  • पालिसी से सम्बंधित फैसले/निर्णय लेने के लिए मुझे शेयर होल्डर्स, बोर्ड मेम्बर्स के राय लेने पड़ेंगे. संक्षेप में मैं उनके सवाल का उत्तरदायी हूँगा. वे मेरे हर एक्टिविटी पर नज़र रखेंगे.
  • पहला साल मैंने 25 लाख का प्रॉफिट कमाया…..बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स मीटिंग करेंगे कि ये Rs. 10 lakhs शेयर होल्डर्स/share holders के बीच कैसे बाटे जायेंगे और बचे हुए Rs. 15 lakhs को पुनः कंपनी को विस्तृत करने के लिए कम्पनी के कामों जैसे आटोमेटिक सिलाई मशीन, मजबूत धागे या किसी और शहर में एक नयी फैक्ट्री के सेट-अप इत्यादि में इन्वेस्ट किया जायेगा.
  • इसमें मजेदार बात यह है कि मैं कंपनी का CEO होऊँगा और कहूँगा कि मुझे सैलरी सिर्फ Rs.1 ही मिलती है. जबकि मैं हर महीने Rs.3 lakh कमा रहा हूँ.
  • कैसे? क्योंकि मेरे पास कंपनी का 30% शेयर/share है  इसलिए जब Rs.10 lakh dividend शेयर होल्डर्स/share holders के बीच बांटा जायेगा… मैं भी 30% पाऊंगा = 3 lakhs, और साथ-साथ एक कंपनी के एम्प्लोयी के रूप में Rs.1 salary भी .

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  • नीचे Colorado की एक कंपनी “The Wapiti Mining Company” के शेयर/share का फोटो दिया गया है.

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यहाँ कंपनी के मालिक John Family के पास कंपनी के 499995 शेयर्स हैं. ऊपर टोटल शेयर 500,000 लिखा है और हर एक शेयर (share) का मूल्य $10 है. जिसका मतलब हुआ की जॉन फैमिली के पास  कम्पनी का 499995/ 500,000 x 100 =99.999% स्टॉक अपने पास है.  बाकी के 5 शयर्स वह खुले बाज़ार में बेच रहा है. प्रत्येक शेयर का मूल्य $10 है.

आप जब ये शेयर (shares) खरीदोगे तो आपको इस तरह का रंगीन कागज़ नहीं मिलेगा. आपको शेयर electronic dematerialized format में मिलेगाजो आपके DEMAT account में चला जायेगा.
Primary vs Secondary Market

  • प्राइमरी मार्केट/Primary market =यह वह जगह है जहाँ IPOs बेची जाती हैं.
  • सेकेंडरी मार्केट/Secondary Market= यह वह जगह है जहाँ IPOs share के रूप में फिर से बेची जाती हैं.
  • व्यवहार में ये दोनों चीजें एक ही जगह पर की जाती हैं e.g. BSE (Bombay Stock Exchange) मगर ये वर्गीकरण चीजों को ट्रैक, सांख्यिकीय विश्लेषण आदि करने में मदद करती है.

वेंचर कैपिटलिस्ट और एंजेल इन्वेस्टर्स/Venture Capitalist and Angel Investors

Equity financers के दो अन्य प्रकार.

वेंचर कैपिटल/Venture Capital क्या है?

  • वेंचर कैपिटल एक कंपनी है जो आपको कंपनी स्टार्ट या उसको विस्तार करने के लिए धन देती है मगर बदले में वह आपके कंपनी में अपना हिस्सा चाहती है.
  • Venture capital बड़ी कंपनियाँ होती हैं जो सिर्फ बड़े प्रोजेक्ट, बड़े इन्वेस्टमेंट के लिए बनी होती हैं. वे मुझे चादर बनाने की फैक्ट्री खोलने में मदद नहीं करने वाली.
  • वेंचर कैपिटलिस्ट, टेक्नोलॉजी बेस्ड व्यापारों में इन्वेस्ट करती है जैसे मोबाइल टेक्नोलॉजी, टेलिकॉम, सॉफ्टवेर इत्यादि.
  • उनका इन्वेस्टमेंट का स्केल बहुत बड़ा होता है —US $ 250,000 to US $ 1.5 million.

मगर उनके पास इतने पैसे कहाँ से आते हैं?

  • हम सब जानते हैं कि पैसे पेड़ में नहीं उगते…ये Venture Capitalist companies दूसरे कम्पनीज से पैसा लेते हैं जैसे mutual funds, pension funds etc…. या हो सकता है अपना कोई बांड निकालती हो कि आओ भाई मेरे बांड्स खरीदो.

ये अपना काम कैसे करते हैं?

  • उनके पास अपना मैनेजमेंट विंग होता है, एक्सपर्ट्स होते हैं, कॉर्पोरेट वकील होते हैं, चार्टर्ड एकाउंटेंट्स होते हैं, बिज़नस कंसल्टेंट्स होते हैं….वे आपके बिजनेस प्लान को पूरी तरह से परखते हैं, जांचते हैं और फिर जाकर आपको मनी इशू करते हैं.
  • वे अपनी जरूरत और सुविधा के अनुसार आपसे आपकी कंपनी के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स में अपनी जगह और हक़ की मांग रखते हैं…

एंजेल इन्वेस्टर/Angel Investor कौन होते हैं?

  • ये बड़े लोग होते हैं, अमीर लोग….ये आसमान से टपके वे जेंटलमैन होते हैं जो आपको आपकी कंपनी स्टार्ट-उप के लिए इनिशियल फाइनेंस में मदद करते हैं जैसे बैंक या बड़े इन्वेस्टर्स करते हैं. आपसे कुछ सालों बाद return की आशा रखते हैं.  ये आपको  debt (i.e. just like moneylenders and banks) या Equity (i.e. partial ownership) दे/ले सकते हैं. मगर ज्यादातर ये equity field में  ही इन्वेस्ट करते हैं.

आखिर एंजेल इन्वेस्टर्स की जरुरत ही हमें क्यों पड़ेगी?

  • अभी तक हमने पढ़ा कि आप बैंक से मनी प्राप्त कर सकते हो, बांड्स (debt) से मनी पा सकते हो…या IPO/Venture Capitalist (Equity) से….
  • मगर जरुरी नहीं है कि आपके प्रोजेक्ट पे इतने दिग्गज बड़े लोग इन्वेस्ट करें ही….खासकर मेरे केस में…मेरा चादर बनाने का सपना अधूरा ही समझो.
  • कल्पना करिये कि फेसबुक का मालिक जुकरबर्ग फेसबुक पार्ट 2 ओपन करने हेतु लोन के लिए SBI बैंक मैनेजर के पास पहुँचता है .
  • उसी दौरान जुकरबर्ग  फेसबुक पार्ट 2 के लिए NewYork Stock exchange में IPO की शुरुआत करता है.
  • मगर अचानक Sunny Leone नामक सुन्दर और अमीर नवयुवती एंजेल इन्वेस्टर के रूप में कूद पड़ती है और फेसबुक के प्रीवियस सक्सेस रिकॉर्ड को देखते हुए जुकरबर्ग को पैसे देने का ऑफर करती है और 1/3rd ownership भी कम्पनी की ले लेती है.
  • एंजेल इन्वेस्टर्स अच्छे आईडिया, यूनिक आईडिया वाले नई या छोटी कम्पनी पर इन्वेस्ट करने से नहीं हिचकिचाते.
  • अमेज़न online shopping website और Starbucks coffee chain को एंजेल इन्वेस्टर्स ने ही खड़ा किया था.

क्या शेयर कैपिटल (Share Capital) और शेयर एसेट्स (Share Assets) एक ही है?

एक व्यक्ति जिसके पास कम्पनी का 45% share capital है उसके पास कंपनी के एसेट्स का 45 % नहीं है. यह बात यहाँ समझना होगा. कम्पनी के share के बेचने और एसेट्स के बेचने में अंतर है.

  • ऐसा कैसे?
  • ज्यादातर कम्पनी सीधे IPO / Shares से शुराआत नहीं करती. एक entrepreneur अपने छोटे कंपनी की शुरुआत अपनी सेविंग किए हुए मनी से करती है, या किसी दोस्त, रिश्तेदार से मांगकर या बैंक से लोन उठाती है या उसके यूनिक आईडिया को किसी एंजेल इन्वेस्टर का सहारा मिल जाता है.
  • जब बिज़नस शिखर पर पहुँच जाता है और खूब कमाई होने लगती है तो वह कम्पनी को बढ़ाने के लिए IPO लांच करता है जिससे उसे एक्स्ट्रा फण्ड मिलता है.
  • इसलिए IPO लांच करने से पहले ही उसके पास बिल्डिंग, मशीनरी, वाहन इत्यादि होते हैं.

इसे एक बेकार example से समझते हैं. 

  • मानिए मेरे पास सेविंग अकाउंट में Rs.30 हैं, और मैं Rs.20 (Debt) किसी से उधार लेता हूँ और  Rs.50 में अपनी कंपनी स्टार्ट करता हूँ.
  • कुछ साल बाद मुझे अपने बिजनेस को बढ़ाने के लिए और भी  Rs.50 की जरुरत पड़ती है इसलिए मैं IPO लांच करता हूँ:- Total 50 share papers worth Rs. 1 each (Equity).
  • अब आप मेरी कंपनी का 10 शेयर 10रु. में खरीद लेते हैं. जिसका मतलब हुआ कि आपके पास कम्पनी का 10/50th = 20% शेयर/shares/stocks/equity/ IPO  है —चाहे जो भी नाम दे दीजिए….
  • मगर कंपनी का कुल एसेट्स=Rs. 50 जो मेरे पास पहले से है (saving+debt) plus Rs. 50 from IPO = कुल Rs.100
  • So, आपके पास मेरी कंपनी का 20% assets नहीं है, क्योंकि आपने तो मुझे सिर्फ Rs.10 दिया है! जबकि मेरी कंपनी का टोटल एसेट्स Debt +Equity दोनों द्वारा फाइनेंस किया गया है.
  • बिल्कुल उसी तरह यदि आप जेट एयरवेज का 10% share खरीदते हैं तो इसका मतलब यह नहीं हो जाता की आप उनके सारे एयरप्लेन और बिल्डिंग्स के 10 % के हकदार हैं.

Underwriter कौन हैं?

  • अभी तक हमने देखा कि
  • पैसे पाने के लिए मैंने या तो  (debt, Bond) के रूप में उधार लिया और या तो मैंने (equity, IPOs/shares) लांच किया.
  • मगर यहाँ एक दिक्कत है….मैं ये सिक्यूरिटी पेपर्स अपने घर के सस्ते इंकजेट प्रिंटर में प्रिंट नहीं कर सकता.
  • सबसे पहले मुझे लम्बा चलने वाला लीगल प्रोसेस से गुजरना होगा और एकाउंटिंग पेपर वर्क को पूरा होना होगा जिसके लिए मुझे चार्टर्ड अकाउंटेंट, कॉर्पोरेट वकीलों की जरुरत पड़ेगी.
  • इसलिए मुझे एक underwriter के पास जाना होगा जो मुझसे कमीशन लेगा और साथ-साथ वादा करेगा कि वह सारी टेक्निकल चीजों, पेपर वर्क, SEBI रेगुलेशन, IPO/Bonds sale  की खरीद बिक्री विक्रय etc. सारी चीजों को देखेगा.
  • वही underwriter मुझे insurance भी ऑफर करेगा कि यदि कोई मेरी कंपनी का IPO/Bonds नहीं खरीदता, तो वह उसे खरीद लेगा…
  • Kotak Mahindra, ICICI ऐसे underwriting services को ऑफर करते हैं.

Debt vs Equity: अच्छाई और खराबी/Pros and Cons

  • असल जिंदगी में एक कम्पनी फाइनेंस की जरूरतों के लिए एकमात्र सोर्स पर depend नहीं करती…. वह कुछ कैश Debt (Borrowing) लेकर और कुछ कैश IPOs (Equity) इशू कर के arrange करती है.
  • सभी के पास अपना advantage और disadvantage है. चलिए check करते हैं.
अच्छाई: Bonds vs Shares
Debt (Bond) Equity (IPO/Shares)
  • कंपनी पर मेरा सम्पूर्ण अधिकार है. मैं ही सर्वेसर्वा हूँ.
  • मुझे प्रॉफिट किसी के साथ शेयर नहीं करना है. मैं ही पूरे प्रॉफिट का उपभोग करूँगा और कोई नहीं.
  • मैं इनकम टैक्स को घटाने के लिए दावा कर सकता हूँ.
  • पेपरवर्क की कम आवश्यकता है. या तो बैंक से लोन ले लो या दोस्त से उधार ….Share market (SEBI permission, board of directors etc.) ये सब की जरूरत नहीं….
  • यदि कंपनी को घाटा पहुँचता है तो मुझे शेयर होल्डर को पैसे देने की चिंता नहीं है….just like Kingfisher.
  • इंटरेस्ट पेमेंट से बचा रहूँगा क्योंकि मैंने तो कोई लोन लिया ही नहीं. इसलिए मुझे सूद समेत पैसे लौटाने का टेंशन नहीं रहेगा.

 

बुराई: Bonds vs Shares
Debt (Bond) Equity (IPO/Shares)
  • यदि मुझे प्रॉफिट हुआ भी नहीं फिर भी मुझे इंटरेस्ट अमाउंट देना होगा क्योंकि यह होम लोन और कार लोन के जैसा ही लोन होता है. चाहे कमाओ या भाड़ में जाओ, इंटरेस्ट/EMI तो समय पर देना ही होगा.
  • हो सकता है कि मशीनरी या बिल्डिंग या अन्य असेट्स बंधक (mortgage) के रूप में रखना होगा जिससे मुझे लोन मिल सके. ताकि जब मेरी कंपनी लुट जाए तो वे मेरा सामान, बिल्डिंग, ऑफिस, मशीनरी जब्त कर लें.
  • मैं कंपनी का पूरा मालिक नहीं बन पाता…बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स घुस जाते हैं, मेरे काम, मेरे निर्णय में अड़ंगे डालते हैं….और डाले भी क्यूँ नहीं, उनका पैसा जो मैंने लिया है और मेरी कंपनी में उनकी हिस्सेदारी भी है.
  • वे मुझे CEO के पद से हटा भी सकते हैं.
  • इसमें paperwork की बहुत अधिक आवश्यकता होती है. SEBI से परमिशन चाहिए होगी और भी बहुत कुछ करना होगा.

इसलिए अच्छा यह होगा कि हमें फाइनेंस का एक पार्ट debt से और दूसरा पार्ट equity से पूरा करना चाहिए.

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