Best optional subject का चयन कैसे करें for mains in IAS preparation

Sansar LochanCivil Services Exam, Success Mantra

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[vc_row 0=””][vc_column][vc_column_text 0=””]जब आप सिविल सेवा परीक्षा (civil services exam) में बैठने का मन बना लेते हैं तो सबसे पहले आपको एक वैकल्पिक विषय (optional subject) के चयन (selection) के बारे में सोचना पड़ता है. वर्ष 2011 के पहले परीक्षार्थियों को दो वैकल्पिक विषय रखने पड़ते थे. पर अब उसे घटा कर 1 कर दिया गया है. हालाँकि राजस्थान, झारखण्ड (2015 से) जैसे कुछ अन्य राज्यों में मुख्य परीक्षा (mains exam) में आपका मुकाबला केवल सामान्य ज्ञान से होता है. पर आज मैं विशेषकर संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की बात करने जा रहा हूँ जहाँ एक वैकल्पिक विषय का चयन करना अनिवार्य है.

जिन परीक्षार्थियों ने वर्ष 2016 में UPSC द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षा देने का मन बना लिया है, उनको मैं कहना चाहूँगा कि आपने विषय-चयन (subject selection) का सही समय चुना है क्योंकि पूरे 1 साल की तैयारी इस परीक्षा के लिए पर्याप्त समय है.

 

वैकल्पिक विषय के चयन के दौरान तीन तरह के सवाल हमारे मन में गूँजते हैं: (ambiguity while choosing upsc optional subject)—

1. क्या वह विषय (subject)लेना ठीक रहेगा जो पिछले टॉपरों (toppers) ने लिए?
2. क्या वह विषय लेना ठीक रहेगा जो अभी के चलन(trend) में है, सारे मित्रों ने भी वही लिया है, मैं क्यों नहीं? इस विषय को लेकर मैं रॉकेट की तरह लौंच होकर सीधे आई.ए.एस. बन जाऊँगा.
3. क्या वह विषय लेना ठीक रहेगा जिसमें मैंने यूनिवर्सिटी की डिग्री प्राप्त की है?

 

पहले और दूसरे सवाल का जवाब:-

मेरा मानना यह है कि बहुत हद तक विषयों का ट्रेंड (subject trend) जानने में कोई बुराई नहीं है. इस तथ्य को झुठलाया नहीं जा सकता कि कभी-कभी यू.पी.एस.सी. (UPSC) के रिजल्ट (result) में कोई ख़ास विषय का चलन अचानक बढ़ जाता है जिसमें विद्यार्थियों को अधिक मात्रा में सफलता मिल रही होती है. 2011 और 2012 का ही उदाहरण ले लीजिये. कुल सफल विद्यार्थियों में क्रमशः 20 प्रतिशत और 15 प्रतिशत ने अर्थशास्त्र विषय को चुन कर अपनी सफलता का परचम लहराया था.

इसलिए यदि आपको उस विषय पर थोड़ी-बहुत भी पकड़ हो, जो बीते वर्ष प्रचलन में थी, तो उसको अपना वैकल्पिक विषय (optional subject) बना लेने में कोई बुराई नहीं है.

परन्तु आपके मित्रगण कौन-सा विषय चयन कर रहे हैं उससे प्रभावित हो जाना मूर्खता है. अपना विवेक लगाइये. तर्क से काम करें. एक प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर भी भविष्य में आपको तर्क और विवेक की आवश्यकता जरुर पड़ेगी. आपको अपना निर्णय स्वयं लेना होगा ना कि अन्य ऑफिसर क्या कह रहा है उसका अनुसरण कर के आप निर्णय लेंगे या बदलेंगे.

 

तीसरे सवाल का जवाब:- क्या वह विषय लेना ठीक रहेगा जिसमें मैंने यूनिवर्सिटी डिग्री प्राप्त की है?

मन में गूँज रहा यह प्रश्न नैसर्गिक है. विद्यार्थियों के लिए सबसे अच्छा विकल्प यही है कि वे उस विषय (subject) का चुनाव करें जिसमें उनकी पकड़ पहले से ही बहुत अच्छी है. जिस विषय में आपने स्नातक या पोस्ट-ग्रेजुएशन किया है, उस विषय को इस प्रतिष्ठित परीक्षा के लिए चयन कर लेना सर्वश्रेष्ठ विकल्प है.

हाँ, कभी-कभी उन छात्रों को दुविधा महसूस होती है जिन्होंने स्नातक की डिग्री कोई ऐसे विषय में ली है जिसका सिविल सर्विसेज की परीक्षा (civil services exam) में नाम भी लेना पाप है, जैसे- डिग्री इन एनी वोकेशनल कोर्स…(मास कम्युनिकेशन, कंप्यूटर साइंस, फैशन डिजाइनिंग इत्यादि)

ऐसे विद्यार्थी वे होते हैं जिन्होंने स्नातक करने के बाद जाकर सिविल सर्विसेज की परीक्षा में बैठने का निर्णय लिया है. आपको बताता चलूँ कि होशियार लोग स्कूल और कॉलेज से ही सिविल सेवा परीक्षा को ध्यान में रखकर अपने मार्ग को निर्धारित कर लेते हैं. पर सच कहिये इससे कोई अधिक फर्क नहीं पड़ता. जैसा मैंने कहा कि 1 साल का कठिन परिश्रम ही सिविल सेवा परीक्षा के लिए पर्याप्त है.

 

एक अप्रोच यह भी…

कई लोग फिजिक्स या टेक्निकल बैकग्राउंड होने के बावजूद इतिहास, भूगोल विषय लेकर टॉपर हो जाते हैं. इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यदि आपने ठान लिया है कि मुझे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता तो आप कोई भी अनजाने विषय का चयन कर के भी सफल हो सकते हैं. जरुर आपको शून्य से शुरुआत करनी होगी. परन्तु स्मार्ट लर्निंग (जिसके बारे में आगे के लेख में लिखूँगा) से सफलता की सीढ़ी चढ़ी जा सकती है.

 

सदाबहार विषय (evergreen best optional subject for civil services)

इतिहास, भूगोल, पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन यह तीन विषय सदाबहार विषय हैं. सदाबहार से मेरा तात्पर्य यह है कि यह विषय कभी फ्लॉप नहीं होते. इन विषयों को लेकर साइंस, आर्ट्स, कॉमर्स, मेडिकल बैकग्राउंड वाले कई छात्र सफल हो चुके हैं.

इन तीनों विषयों की खासियत यह है कि यह प्री (prelims) और मेन्स (mains) के एक पेपर जनरल नॉलेज के पेपर्स में भी काम आ आते हैं.

 

सिलेबस (syllabus) छोटा या बड़ा 

ऐसा कहते हैं कि सिलेबस (syllabus) सिविल सेवा के परीक्षार्थियों के लिए एक धार्मिक ग्रन्थ है. विषय चयन करने के पहले एक बार हर विषय के सिलेबस (syllabus) पर नज़र दौड़ा लेने में ही समझदारी है.

संस्कृत और पाली का सिलेबस (syllabus) सबसे छोटा है. यदि आपको इन विषयों पर पकड़ है तो आप बेहिचक इन विषयों का चुनाव कर सकते हैं. पर यह भी ध्यान रखें कि इन विषयों पर पकड़ बनाने के लिए आपको गुरु/गाईडेंस की आवश्यकता पड़ेगी.

 

विषय-चयन में गुरु/गाईडेंस (guidance)की भूमिका

अधिकांशतः देखा जाता है कि परीक्षार्थी के परिवार में कोई भी ऐसा सदस्य नहीं होता जो राज्य या केन्द्रीय सिविल सेवा में कार्यरत या पदस्थापित है. दूर-दूर के रिश्तेदारों में भी कोई गाइड करने वाला नहीं मिलता. ऐसे में उन्हें ट्यूशन, कोचिंग (coaching) का सहारा लेना पड़ता है.

इसीलिए विषय-चयन (subject selection) के समय यह भी ध्यान में रखना आवयश्क है कि आपके रिश्तेदार, कोई घर का बड़ा, कोई आपके आस-पास ऐसा इंसान या गुरु है भी है या नहीं जो आपको उस विषय को पढ़ाने में सहयोग मात्र कर सके. क्योंकि शून्य से शुरुआत करने में आपका समय भी बर्बाद होगा और आपके लिए यह कठिन भी होगा.

पर यह भी याद रखें, आपको पढ़ना स्वयं है. गुरुजन आपको मात्र उत्साहित और आपके विषय की नींव को मजबूत करेंगे. सारी तैयारी आपको करनी है, परीक्षा केंद्र में आप जाइयेगा ना कि गुरु.

इसीलिए यदि उड़ नहीं पा रहे, तो दौड़िए, दौड़ नहीं पा रहे तो चलिए, चल नहीं पा रहे तो लेट कर खिसकिये, मगर जो भी कर रहे हैं उसका उदेश्य मात्र आगे बढ़ने के लिए होना चाहिए.

[Tweet “इसीलिए यदि उड़ नहीं पा रहे, तो दौड़िए, दौड़ नहीं पा रहे तो चलिए, चल नहीं पा रहे तो लेट कर खिसकिये, मगर जो भी कर रहे हैं उसका उदेश्य मात्र आगे बढ़ने के लिए होना चाहिए.”]

 

स्केलिंग (scaling) को लेकर भ्रम (scaling in upsc exam)

जब आपको प्रीलिम्स में एक विषय का चयन करना होता था तब स्केलिंग (scaling) का फंडा हुआ करता था. परन्तु प्रीलिम्स में जब से CSAT का आगमन हुआ तब से प्रीलिम्स में स्केलिंग बंद हो गयी.

सिविल सेवा परीक्षा के मेंस (civil services mains) में कभी भी स्केलिंग नहीं रही.

 

फिर “Hawk-Dove” effect क्या है? What is Hawk-Dove effect?

hawk_dove_effect_iasHawk का मतलब है बाज और dove का अर्थ हुआ कबूतर. मेंस में अभी भी अक्सर Hawk-Dove फार्मूला (formula) पर काम किया जाता है. “हॉक” वे परीक्षक कहलाते हैं जो आपको मेंस की परीक्षा में नंबर कम कर के देते हैं, थोड़ा स्ट्रिक्ट होते हैं और “डव” वे परीक्षक होते हैं जो लिबरल होकर आपको नंबर दिल खोल कर देते हैं.

तो ऐसे में यदि सोचिये….

सरोज और मनोज ने मेंस में समाजशास्त्र विषय की परीक्षा दी. सरोज का इग्जाम मनोज से कई गुणा अच्छा गया मगर सरोज का पेपर Mr. Hawk के पास चला गया और मनोज का पेपर प्यारे टीचर “dove” के पास. जब फाइनल रिजल्ट (final result) आया तो मनोज का नंबर सरोज से कहीं ज्यादा था.

इसी भिन्नता या भेदभाव को रोकने के लिए आज भी मेंस में “standardization” या “मानकीकरण” टूल का प्रयोग किया जाता है.

इस प्रक्रिया के अंतर्गत, हेड परीक्षक अतिरिक्त परीक्षकों की सहायता से अपने सम्बंधित विषय के प्रश्नपत्र का एक मॉडल आंसर शीट तैयार करते हैं. फिर यह आपसी सलाह से तय किया जाता है कि उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन में किन-किन बिन्दुओं का ध्यान रखा जायेगा. मूल्यांकन हो जाने के बाद अक्सर देखा जाता है कि किसी परीक्षक ने अधिक नंबर दे दिया तो किसी ने कम. हेड परीक्षक तब किसी अन्य परीक्षक से मूल्यांकन कराते हैं तथा अपने विवेक से औसत के आधार पर मार्क्स देते हैं.

इसलिए standardization process, जिसे बोल-चाल की भाषा में हम “मॉडरेशन” कहते हैं, कोई बुरी चीज नहीं है. परीक्षक रोबोट नहीं होते. उनके पास भी दिल है. कोई खुलकर नंबर देते हैं और कोई दबे हाथ से.

यह सारी बातें आपको मैंने सुप्रीम कोर्ट के द्वारा एक पिटिशन (PRASHANT RAMESH CHAKKARWAR द्वारा दायर) पर किये गए फैसले के आधार पर बताई है …आप खुद भी पढ़ सकते हैं, यदि कुछ नया पढ़ने को मिले तो मेरे साथ साझा अवश्य करें — Petition(s) for Special Leave to Appeal (Civil) No(s).11977-11978/2012.. (From the judgement and order dated 05/10/2010 and 29/07/2011 in WP(C)No.6586/2010 and RP No.490/2010 in WP(C) No.6586/2010 of The HIGH COURT OF DELHI AT N. DELHI) PRASHANT RAMESH CHAKKARWAR Petitioner(s) VERSUS UNION PUBLIC SERVICE COMMISSION & ORS. Respondent(s)

 

संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि आप जिन विषयों में कम्फ़र्टेबल हैं उनमें से वह एक विषय सिविल सेवा परीक्षा के लिए चुन लें जिसका सिलेबस अपेक्षाकृत छोटा है और जिसमें प्रश्नों के दुहराव की संभावना अपेक्षाकृत अधिक है. यदि आपके लिए यूनिवर्सिटी शिक्षा के दौरान पढ़ा गया ऐसा कोई भी विषय नहीं है जिसमें आप सहज अनुभव करते हों तो आपके लिए अच्छा रहेगा कि जिस विषय में आपकी थोड़ी-बहुत भी रूचि हो उसे आप अपना लीजिये एवं इसके लिए सही मार्गदर्शन लेते हुए कठिन परिश्रम शुरू कर दीजिये, सफलता अवश्य मिलेगी.

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